आज से होगा राष्ट्रमंडल खेलों का आगाज

महिला वर्ग में 136 तो पुरुष वर्ग में 134 स्वर्ण दांव पर
बर्मिंघम।
आज से बर्मिंघम में राष्ट्रमंडल खेलों का आगाज होगा। यह खेल आठ अगस्त तक आयोजित किए जाएंगे। राष्ट्रमंडल खेल 2022 में 283 अलग-अलग मेडल इवेंट शामिल हैं। इस साल 72 टीमें हिस्सा ले रही हैं। इन खेलों के लिए लगभग 6,500 एथलीट और सपोर्ट स्टाफ बर्मिंघम पहुंचे हैं। राष्ट्रमंडल खेलों में पहली बार महिला टी-20 क्रिकेट को शामिल किया गया है। 
1930 में शुरू हुए राष्ट्रमंडल खेलों का यह 22वां संस्करण है। पहला कॉमनवेल्थ गेम्स 1930 में कनाडा के शहर हैमिल्टन में हुआ था। 1930 में 11 देशों के लगभग 400 खिलाड़ियों ने राष्ट्रमंडल खेलों में हिस्सा लिया था। एथलीट्स ने तब छह खेलों के 59 इवेंट्स में अपना दमखम दिखाया था। 1930 के बाद से हर चार साल पर इसका आयोजन होता रहा है।
हालांकि, द्वितीय विश्व-युद्ध के कारण 1942 और 1946 में राष्ट्रमंडल खेलों का आयोजन नहीं हो सका था। भारत 18वीं बार इन खेलों का हिस्सा बन रहा है। भारत ने अब तक इन खेलों में 181 स्वर्ण, 173 रजत और 149 कांस्य पदक जीते हैं। भारत 2002 मैनचेस्टर खेलों से लगातार हर राष्ट्रमंडल खेलों में पदक हासिल करने के मामले में शीर्ष पांच देशों में शामिल रहा है।
इस दौरान बीस वर्षों में उसने 131 स्वर्ण सहित 350 पदक जीते हैं। इस सदी में भारत की सफलता में बड़ा योगदान निशानेबाजों का रहा है। इस बार इन खेलों में निशानेबाजी शामिल नहीं है, ऐसे में शीर्ष पांंच में आना भारत के लिए बड़ी चुनौती होगी। एलेक्जेंडर स्टेडियम में आज होने वाले उद्घाटन समारोह के साथ 11 दिन चलने वाले इन खेलों का शुभारंभ होगा। इंग्लैंड पिछले 20 वर्षों में तीसरी बार इन खेलों का आयोजन कर रहा है। राष्ट्रमंडल खेलों में आबादी के लिहाज से सबसे बड़े देश भारत के लिए ये खेल पदक बटोरने के लिहाज से काफी लाभप्रद साबित होते आ रहे हैं।
इस बार राष्ट्रमंडल खेलों में कुछ नया होगा। पहली बार ऐसे किसी आयोजनों में पुरुषों की तुलना में महिलाओं को अधिक स्वर्ण पदक मिलेंगे। इस बार 11 दिन तक चलने वाले राष्ट्रमंडल खेलों में महिलाओं को 136 स्वर्ण पदक, जबकि पुरुषों को 134 स्वर्ण पदक मिलेंगे।  मिश्रित स्पर्धाओं में कुल 10 स्वर्ण पदक दांव पर लगे होंगे।
इस तरह की कई खेल वाली प्रतियोगिता में पहली बार ऐसा होगा कि महिलाओं को पुरुषों की तुलना में अधिक स्वर्ण पदक हासिल करने का मौका मिलेगा। इस बार राष्ट्रमंडल खेलों का आकर्षण महिला क्रिकेट भी होगा, जिसे पहली बार इन खेलों में शामिल किया गया है। क्रिकेट में विश्व चैंपियन ऑस्ट्रेलिया को स्वर्ण पदक का प्रबल दावेदार माना जा रहा है। भारत भी दावेदारों में शामिल है। भारतीय टीम पिछले टी-20 विश्व कप में उपविजेता रही थी। 
1930 से 1950 तक इन खेलों को ब्रिटिश एम्पायर गेम्स कहा जाता था। 1954 से 1966 तक ब्रिटिश एम्पायर एंड कॉमनवेल्थ गेम्स कहा गया। 1970 और 1974 में इसका नाम बदलकर ब्रिटिश कॉमनवेल्थ गेम्स किया गया। 1978 में जाकर इन खेलों का नाम राष्ट्रमंडल खेल यानी कॉमनवेल्थ गेम्स पड़ा। तब से लेकर आज तक यह इसी नाम से जाना जाता रहा है।
चार साल पहले ऑस्ट्रेलिया के गोल्ड कोस्ट में हुए इन खेलों में निशानेबाजों ने भारत के कुल 66 पदकों में से 25 प्रतिशत का योगदान किया था। निशानेबाजों ने सात स्वर्ण पदक दिलाए थे। सबसे बड़ा सवाल यही है कि भारत किस तरह निशानेबाजी की कमी की भरपाई करेगा। भारोत्तोलन, बैडमिंटन, मुक्केबाजी, कुश्ती और टेबल टेनिस में अच्छे पदक मिलने की संभावना व्यक्त की जा रही है।
भारत ने इन खेलों के 72 साल के इतिहास में एथलेटिक्स में 28 पदक हासिल किए हैं। इस बार ट्रैक एंड फील्ड से अच्छे पदकों की उम्मीद की जा रही थी, लेकिन ओलंपिक चैंपियन नीरज चोपड़ा के चोटिल होकर नाम वापस लेने से भारत को झटका लगा है।
भारत की दिग्गज एथलीट और एथलेटिक्स फेडरेशन की उपाध्यक्ष अंजू बॉबी जॉर्ज का कहना है कि नीरज के हटने से अंतर पड़ा है, लेकिन एथलीटों का फोकस अपने लक्ष्य पर है। निशानेबाजों के न होने से नुकसान होगा, लेकिन ट्रैक एंड फील्ड में सात से आठ पदक मिलने से उसकी कुछ हद तक भरपाई हो सकेगी। महिला भालाफेंक, लंबी कूद में अच्छे प्रदर्शन की उम्मीद है। महिला भालाफेंक में अन्नू रानी ने हाल ही में विश्व चैंपियनशिप के फाइनल में प्रवेश किया था। उनका मनोबल ऊंचा होगा।
महिलाओं की 100 मीटर और चार गुणा 100 मीटर रिले टीम में शामिल सेकर धनलक्ष्मी और लम्बी और तिहरी कूद में ऐश्वर्या बाबू के डोपिंग में विफल होने से भी 36 सदस्यीय भारतीय ट्रैक एंड फील्ड को झटका लगा है। तेजिंदर पाल सिंह तूर भी चोट के कारण नहीं उतरेंगे। कुश्ती में भारत को कई स्वर्ण मिलने की उम्मीद की जा रही है। भारत के 12 पहलवानों में गत चैंपियन विनेश फोगाट और बजरंग पूनिया के पोडियम पर पहुंचने की पूरी उम्मीद है। पिछली बार गोल्ड कोस्ट में पहलवानों ने पांच स्वर्ण सहित 12 पदक दिलाए थे।
भारोत्तोलकों ने चार साल पहले पिछले संस्करण में पांच स्वर्ण सहित नौ पदक दिलाए थे। ओलंपिक रजत पदक विजेता मीराबाई चानू की अगुवाई में भारोत्तोलक फिर अच्छा प्रदर्शन करने की क्षमता रखते हैं। बैडमिंटन में दो ओलम्पिक पदक जीत चुकीं पीवी सिंधु महिला एकल में स्वर्ण की दावेदार हैं। इसके अलावा पुरुष एकल, महिला युगल और मिश्रित टीम स्पर्धा में भी पदक जीतने की पूरी संभावना है। भारतीय दल में सिंधु के अलावा विश्व चैंपियनशिप के पदक विजेता किदांबी श्रीकांत और लक्ष्य सेन शामिल हैं।
भारतीय दृष्टिकोण से हॉकी का पदक काफी मायने रखता है। भारत पुरुष और महिला दोनों वर्गों में हिस्सा ले रहा है। पिछली बार हमें पदक नहीं मिला था, लेकिन पिछले वर्ष टोक्यो ओलंपिक में ऐतिहासिक कांस्य पदक जीतने के बाद मनप्रीत की अगुवाई में भारतीय टीम ऑस्ट्रेलिया का दबदबा तोड़ने की कोशिश करेगी। टोक्यो ओलंपिक में चौथे स्थान पर रहने वाली महिला हॉकी टीम शीर्ष तीन में आना चाहेगी।
गोल्ड कोस्ट में भारत ने आठ पदक टेबल टेनिस में जीते थे जिसमें आधे अकेले मनिका बत्रा ने दिलाए थे। उस प्रदर्शन को दोहराना बड़ी चुनौती होगी लेकिन दो स्वर्ण पदक की उम्मीद की जा रही है। अनुभवी शरथ कमल अपने पांचवें और अंतिम राष्ट्रमंडल खेलों में हिस्सा ले रहे हैं। उनका लक्ष्य एकल में स्वर्ण पदक जीतना होगा जिसे उन्होंने 16 साल पहले हासिल किया था। गैर ओलंपिक खेलों में स्क्वॉश में एकल वर्ग में पहला पदक जीतना लक्ष्य होगा। मिश्रित युगल और महिला युगल से दो स्वर्ण पदक मिल सकते हैं। ये खेल ऐसे समय में हो रहे हैं जबकि कोविड-19 के मामले सामने आ रहे हैं। मेजबान इंग्लैंड के लिए कोरोना की रोकथाम और इनसे बचाव एक चुनौती होगी।
74 अरब का खर्च हो रहा है बर्मिंघम में  
2012 में हुए लंदन खेलों के बाद इस आयोजन को ब्रिटेन में सबसे खर्चीली स्पर्धा बताया जा रहा है। रिपोर्टों के अनुसार बर्मिंघम खेलों पर 778 मिलियन पौंड (74.93 अरब) के खर्च का अनुमान है। दरअसल इन खेलों के संचालन में होने वाले अत्यधिक खर्च के कारण राष्ट्रमंडल खेल महासंघ नए मेजबान को आकर्षित नहीं कर पा रहा है। बर्मिंघम ने भी 2017 में दक्षिण अफ्रीका के इन खेलों के संचालन में पीछे हटने के बाद 2022 के लिए देर से ही दावेदारी पेश की थी। बर्मिंघम 2022 के सीईओ इयान रीड का कहना है कि हमें इन खेलों को कम खर्चीला बनाने की जरूरत है, ताकि ये ऐसे शहरों में हो सकें, जिन्होंने अभी तक इसकी मेजबानी नहीं की है। 

रिलेटेड पोस्ट्स