मुफलिसी भी नहीं तोड़ पाई गुरुनायडू सनापथि के इरादे

भारोत्तोलन में 16 साल के युवा ने बढ़ाया भारत का मान
खेलपथ संवाद
नई दिल्ली।
कहते हैं कि यदि इंसान में संघर्षों से जूझने का माद्दा है तो एक न एक दिन वह इतिहास सृजन जरूर करता है। यही साबित किया है युवा भारतीय भारोत्तोलक गुरुनायडू सनापथि ने। विश्व यूथ वेटलिफ्टिंग चैम्पियनशिप में देश को पहली बार स्वर्ण पदक दिलाने वाले 16 साल के गुरुनायडू सनापथि को कभी दो वक्त का खाना नसीब नहीं होता था। पिता दूसरे के खेतों में काम करते थे लेकिन गुरुनायडू को वेटलिफ्टिंग का शौक लग चुका था। 
वेटलिफ्टिंग के लायक खाना नहीं मिलने के बावजूद गुरुनायडू ने इस खेल को नहीं छोड़ा। उनके भाई सनापथि रामकृष्ण उनके साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़े रहे। आखिर उनकी यह मेहनत रंग ला गई। उन्होंने स्नैच (104 किलो) में अपना अब तक का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन कर 55 भार वर्ग का स्वर्ण अपने नाम किया। उन्होंने कुल 230 किलो वजन उठाया। गुरुनायडू ने बताया कि उनके लिए यह स्वर्ण बेहद अहम है। कभी सोचा नहीं था कि इतनी गरीबी के बावजूद इस खेल को जारी रख पाऊंगा। 
आंध्र प्रदेश के विजयनगरम जिले में पड़ते चंद्रमपेटे गांव के गुरुनायडू बताते हैं कि वह 11 साल के थे तो स्कूल में सीनियर को वेटलिफ्टिंग करते देखा। यहीं से उन्होंने यह खेल करने की ठान ली। शुरुआत में काफी दिक्कतें आईं। इस खेल के लायक खाना नहीं मिलता था, लेकिन भाई उन्हें निराश नहीं होने देते थे। 2017 में आर्मी ब्वाएज, सिकंदराबाद में उनका चयन हो गया। यहां जाने के बाद उनकी खाने की दिक्कतें दूर हुईं। तब उन्होंने दोगुनी मेहनत शुरू कर दी। गुरुनायडू खुद वेटलिफ्टिंग करते हैं, लेकिन उनका छोटा भाई बॉक्सिंग कर रहा है।
कोच की उम्मीद से किया बेहतर प्रदर्शन
गुरुनायडू के कोच देश को राष्ट्रमंडल चैम्पियनशिप में स्वर्ण दिलाने वाले यूकार सीबी हैं। यूकार बताते हैं कि गुरुनायडू से उन्हें स्नैच में 100 किलो वजन उठाने की उम्मीद थी, लेकिन उसने वहां 104 किलो उठाकर अपना सर्वश्रेष्ठ दिया। यही उसके स्वर्ण जीतने का कारण है। यूकार के मुताबिक गुरुनायडू की इच्छाशक्ति बेहद मजबूत है। अभी वह 16 साल का है। आगे और कमाल दिखा सकता है। गुरुनायडू भी कहते हैं कि उनका लक्ष्य ओलम्पिक, एशियाई और राष्ट्रमंडल खेल हैं। 

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