खेलों में हरियाणा से नसीहत लें दूसरे राज्य

प्रशिक्षकों को भूखा सोने को मजबूर मत करो
खिलाड़ियों का स्वल्पाहार स्वयं नहीं डकारो
श्रीप्रकाश शुक्ला
ग्वालियर।
तीर-तुक्के से कोई चैम्पियन नहीं बनता। चैम्पियन बनना है तो हरियाणा की तरह खिलाड़ियों तथा प्रशिक्षकों को सम्मान और सुविधाएं मिलें। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी खेलों में भारत को शक्तिमान बनाने का सपना देख रहे हैं, केन्द्रीय खेल मंत्रालय राज्यों को हरमुमकिन आर्थिक मदद भी कर रहा है लेकिन जमीनी हकीकत देखने वाला कोई नहीं होने से खेलों की बागड़ उसके रखवाले ही विनष्ट कर रहे हैं। लाख अव्यवस्थाओं के बीच हरियाणवी खिलाड़ी यदि राष्ट्रीय स्तर पर चैम्पियन बन रहे हैं तो हरियाणा सरकार को इसके लिए बधाई देनी चाहिए क्योंकि वह अपनी तरफ से भी खेलों के उन्नयन के प्रयास कर रही है।
खेलो इंडिया यूथ गेम्स में हरियाणा की चौधराहट से साबित हुआ कि राज्य के खिलाड़ियों में जीत का दमखम उम्मीदों भरा है। निश्चित रूप से पदक तालिका में नम्बर वन आना बताता है कि राज्य में जो खेल संस्कृति विभिन्न सरकारों के दौरान विकसित हुई, उसकी प्रतिष्ठा की फसल अब राज्य को नसीब होने लगी है। राज्य के खिलाड़ी ओलम्पिक, विश्व स्पर्धाओं, एशियाड व कॉमनवेल्थ खेलों में अपने खेल-कौशल का प्रदर्शन गाहे-बगाहे करते रहे हैं, इन खेलों की पदक तालिका में टॉप पर आना उसी का विस्तार है। इस कामयाबी के कई निष्कर्ष भी हैं। 
दूध-दही के खाणे ने खिलाड़ियों को जो ऊर्जा-खेल क्षमता दी है वह शेष राज्यों से विशिष्ट है। यह भी कि राज्य के युवा हृष्ट-पुष्ट हैं व शारीरिक ताकत हासिल करना उनकी प्राथमिकता है। निस्संदेह, विजयी खेल संस्कृति विकसित होने में लम्बा वक्त लगता है। ऐसा भी नहीं है कि शेष देश में खेल प्रतिभाओं की कमी है या दमखम का अभाव है। विगत में हरियाणा में जो खेल-नीति बनी और जिस बेहतर ढंग से उसका क्रियान्वयन हुआ, वह भी काफी मायने रखता है। कोई खिलाड़ी रातों-रात तैयार नहीं होता। खिलाड़ी का संकल्प, घर का सहयोग और स्कूल-काॅलेजों में खेलने के बेहतर अवसर प्रतिभा को निखारते हैं। निस्संदेह, इस सफलता में राज्य के तमाम खेल संस्थानों, नीति-नियंताओं और प्रशिक्षकों का भी योगदान है। फिर युवाओं की जीवटता सोने पर सुहागे का काम करती है। 
विगत में हरियाणा सरकार ने जो बड़े-बड़े नगद ईनाम घोषित किये, उसने भी राज्य के खिलाड़ियों में नया जोश भरा। जो अन्य राज्यों के खिलाड़ियों को भी सोचने को बाध्य करता है कि काश हम भी हरियाणा के लिये खेलते। जाहिर तौर पर एक खिलाड़ी के खेल का काल सीमित होता है। खेल की क्षमता में गिरावट के बाद उसे रोजगार के नये विकल्प तलाशने पड़ते हैं। ऐसे में राज्य सरकार की वह नीति सराहनीय है जिसमें अंतरराष्ट्रीय स्पर्धाओं में पदक जीतने वालों को नौकरी देने का प्रावधान है। निस्संदेह, इस साल सम्पन्न खेलो इंडिया यूथ गेम्स में हरियाणा द्वारा 52 स्वर्ण पदकों के साथ कुल 137 पदक जीतने की महक में हरियाणा के खिलाड़ियों का खून-पसीना भी शामिल है।
खेल मानवीय जीवन की सुंदरतम अभिव्यक्ति है जो एक सामान्य व्यक्ति की विशिष्ट बनने की प्रक्रिया भी है। कहावत भी है कि सुबह जिसकी हुई सचमुच वो सारी रात नहीं सोया होगा। एक तपस्या की तरह होता है किसी खेल में शिखर की उपलब्धि हासिल करना। अपने आराम, सुख-सुविधाओं का परित्याग करना होता है। तब जाकर साधारण से विशिष्टता हासिल होती है। सैकड़ों दौड़ने वालों में एक ही गोल्ड मेडल जीतता है। उसमें भी तमाम जोखिम होते हैं। इन खेलों के दौरान ग्यारह सौ से अधिक खिलाड़ियों का चोटिल होना बताता है कि खेलों में कितने जोखिम हैं। 
जो यह भी बताता है कि हमारे खिलाड़ियों को पूरी तरह प्रशिक्षण नहीं मिल पाया कि वे चोटों से अपना बचाव कर सकें। इस दिशा में हरियाणा सरकार को भी गंभीरता से सोचना होगा। कई बार कोई गंभीर चोट खिलाड़ी का करिअर खराब कर देती है और उसकी टीस जीवनपर्यंत सालती रहती है। हरियाणा सरकार को भी चीन, अमेरिका, रूस, जापान, कोरिया व आस्ट्रेलिया के खेल पैटर्न का अध्ययन करना चाहिए कि कैसे ये देश अंतरराष्ट्रीय स्पर्धाओं में पदकों की झोली भरकर ले जाते हैं। चीन आदि देशों में बच्चों को कड़े अनुशासन में खेलों का प्रशिक्षण दिया जाता है तभी सोने का तमगा जीतने वाले खिलाड़ी तैयार होते हैं। राज्य के तमाम इलाकों में ऐसे गुदड़ी के लालों को तलाशा जाना चाहिए। उन्हें मुफ्त प्रशिक्षण व खेल के संसाधन उपलब्ध कराये जाने चाहिए। 
हरियाणा सरकार की वह पहल सराहनीय है, जिसमें कहा गया है कि राज्य में राष्ट्रीय खेल अकादमी बनेगी। साथ ही राज्य में ग्यारह सौ खेल नर्सरी खोली जाएंगी। खेलो इंडिया यूथ गेम्स में हासिल स्वर्णिम सफलता से पैदा हुआ उत्साह कम नहीं होना चाहिए जिससे आगे हमारे खिलाड़ी और बेहतर प्रदर्शन कर पाएं। हरियाणा की इस शानदार सफलता पर नुक्ताचीनी करने की बजाय सभी राज्यों के खेलनहारों को बधाई देते हुए यह संकल्प लेना चाहिए कि वह भी हरियाणा के पैटर्न पर काम करेंगे। प्रशिक्षकों और उनके परिवारों को भूखे सोने को मजबूर नहीं करेंगे तथा खिलाड़ियों का स्वल्पाहार स्वयं नहीं डकारेंगे।

 

रिलेटेड पोस्ट्स