उम्रदराज खिलाड़ियों ने उड़ाया खेलो इंडिया यूथ गेम्स का मजाक

विभिन्न राज्यों के 40 फीसदी खिलाड़ी 18 साल से अधिक उम्र के खेले

इस सौदागिरी में खेल संघ पदाधिकारी, प्रशिक्षक और खिलाड़ी शामिल

श्रीप्रकाश शुक्ला

ग्वालियर। नौ साल पहले सरकार ने संसद में खेलों से बेईमानी मिटाने को एक विधेयक पेश किया था। तब लगा था कि इससे राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय स्तर पर खेलों का भला होगा। भलाई की कौन कहे खेलों में पिद्दी भारत दुनिया के बेईमान राष्ट्रों की लिस्ट में तीसरे स्थान पर है। इस समय हरियाणा में खेलो इंडिया यूथ गेम्स का स्वांग चल रहा है, इस स्वांग में 40 फीसदी से अधिक बालक-बालिका खिलाड़ी 18 साल से अधिक उम्र के शामिल रहे।  

हमारे देश में बेईमानी और कदाचार कोई नई बीमारी नहीं है। हाल ही उजागर हुए कुछ कदाचार मामलों ने खेलतंत्र की नींद हराम कर दी है। महिला खिलाड़ियों के यौन उत्पीड़न के आरोपों ने प्रशिक्षकों को जहां कटघरे में खड़ा किया है वहीं जूनियर स्तर की खेल प्रतियोगिताओं में उम्रदराज खिलाड़ियों की पैठ ने उन प्रतिभाओं के हौसले पस्त किए हैं जोकि भारत को उत्कृष्ट खेल राष्ट्र बनाने को दिन-रात मेहनत कर रहे हैं। देखा जाए तो हर प्रदेश में नियमों को ताक पर रख बड़े स्तर पर खेल की सौदागिरी चल रही है। इस सौदागिरी में खेल संघ पदाधिकारी, प्रशिक्षक और खिलाड़ी शामिल हैं।

खेल संगठन पदाधिकारी जहां खिलाड़ियों से राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय खेल प्रतियोगिताओं में प्रतिभागिता कराने के नाम पर मोटी रकम वसूलते हैं वहीं कुछ निकृष्ट प्रशिक्षक खिलाड़ी बेटियों के जिस्म का सौदा करने से भी गुरेज नहीं करते। बेईमानी का आलम यह है कि टीम की तरह सर्टिफिकेट बनाने के लिए भी बड़े-बड़े सौदे किए जाते हैं तथा सरकार के ग्रेडिंग सिस्टम को फेल किया जाता है। सरकारी नियमों का बखूबी इस्तेमाल कर सर्टिफिकेट बनाने में दमकर बेईमानी की जाती है। इसके आधार पर खिलाड़ी को ग्रेड मिलता है ताकि वह पढ़ाई से लेकर नौकरी तक हर जगह आरक्षण ले सके।

हॉकी, कबड्डी, हैंडबाल, बॉस्केटबॉल, मार्शल आर्ट्स के खेलों जूडो, कराटे, ताइक्वांडो, वुशू आदि के खिलाड़ियों से बातचीत में टीम चयन के पीछे की असली कहानी पता चली। हरियाणा में चल रहे खेलो इंडिया यूथ गेम्स में खिलाड़ियों के चयन में जुगाड़ के साथ-साथ पैसे का भी खेल हुआ। उम्रदराज खिलाड़ियों की उम्र कम कर उन्हें खेलाया गया। नेशनल का सर्टिफिकेट और बी ग्रेड हासिल करने का पूरा खेल टीम चयन के दौरान होने वाली साठगांठ पर निर्धारित करता है। टीम में आने के बाद कैम्प लगता है। कैम्प के खत्म होने के बाद टीम में करीब 25 फीसदी खिलाड़ियों को डीलिंग करके रखा जाता है। ये खिलाड़ी विभिन्न चैम्पियनशिपों में खेलने जाते हैं।

खिलाड़ी मैदान पर मुकाबला करे या न करे, लेकिन सहभागिता करने पर सर्टिफिकेट जरूर मिलता है। इसी के आधार पर खेल विभाग बी ग्रेड देता है। यहां स्पष्ट कर दें कि सर्टिफिकेट के लिए सेटिंग करने वाले खिलाड़ी राज्य व जिला स्तर पर गोल्ड मेडल जीत चुके होते हैं लेकिन नेशनल के लिए उन्हें जुगाड़ लगानी पड़ती है। खेल जानकारों की मानें तो टीम का चयन हो या फिर सर्टिफिकेट बनवाना। किसी भी मामले में कोई अधिकारी कार्रवाई नहीं कर सकता। वजह यह पूरा खेल सीमित खिलाड़ी और नियमों का इस्तेमाल करके होता है। एक खेल अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि चैम्पियनशिप के दौरान फोटो, खिलाड़ी का लिस्ट में नाम, दस्तावेज व अंत में सर्टिफिकेट, ये सभी चीजें ईमानदारी से तैयार की जाती हैं जबकि वास्तविकता यह है कि नेशनल में गोल्ड जीतने वाला और मैच न खेलने वाला, दोनों को एक ही ग्रेड दिया जाता है।

इन दिनों देश और प्रदेशों में विभिन्न नामों से कई खेल संगठन बने हैं। गौर करने वाली बात यह है कि कई खेल ऐसे हैं, जो एक ही खेल का हिस्सा हैं, लेकिन छोटे-छोटे स्टेप के नाम से अलग बना दिए हैं। फिर स्टाइल और वेरिएशन से नया संगठन खड़ा कर दिया। अगर एक खेल को चीन में किसी दूसरे नाम से जाना जाता है, तो भारत में उसी नाम से संगठन बनता है। खेल जानकारों की मानें तो मार्शल आर्ट्स, जूडो, कराटे व वुशू में थोड़ा-बहुत अंतर है जबकि संगठन सभी के अलग-अलग हैं।

देखा जाए तो खिलाड़ी को एक बार ग्रेड मिलने से जीवन भर फायदा होता है। मान लीजिए किसी खिलाड़ी ने एक वर्ष में तमाम प्रदर्शन की बदौलत बी ग्रेड हासिल किया। इस ग्रेड की बदौलत खिलाड़ी कभी भी नौकरी अथवा किसी भी शैक्षणिक संस्थान में स्पोर्ट्स कोटे का फायदा उठा सकता है। खैर, हरियाणा में चल रहे खेलो इंडिया यूथ गेम्स से पहले डोप टेस्ट को लेकर जो चोचलेबाजी हुई थी उसकी हवा तो निकली ही उम्रदराज खिलाड़ियों ने भी जमकर पदक बटोरे हैं। बेईमानी के इस खेल में हर राज्य शामिल है, मेजबान हरियाणा को भी दूध का धुला नहीं मान सकते। सरकार से मेरा सवाल है कि यदि सब-जूनियर में जूनियर और जूनियर में सीनियर खिलाड़ी ही खेलने हैं तो जनता की गाढ़ी कमाई खेलों के भव्य आयोजनों में खर्च करने की क्या जरूरत है?

 

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