जोश, जुनून और जिद से जीता थॉमस कप

भारतीय शटलरों के पराक्रम को हिन्दुस्तान का सलाम
श्रीप्रकाश शुक्ला
नई दिल्ली।
भारतीय युवाओं में अब असम्भव को सम्भव कर दिखाने का गुण पैदा हो चुका है। वे लगातार अपने जोश, जुनून और हार न मानने की जिद से उस मिथक को तोड़ रहे हैं जिसे कल तक असम्भव की संज्ञा प्राप्त थी। किसी ने सपने में भी नहीं सोचा था कि 73 साल से बैरंग लौट रहे भारतीय इस बार थॉमस कप के साथ लौटेंगे। आज हर भारतीय गौरवान्वित है कि उसके युवाओं ने टीम भावना से उस मुराद को पूरा किया है, जिस पर कुछ देशों का ही कल तक राज था।
15 मई, 2022 का दिन भारतीय बैडमिंटन के इतिहास में स्वर्णिम अक्षरों में लिखा जाएगा। इस दिन भारत के बैडमिंटन खिलाड़ियों ने 14 बार की चैम्पियन इंडोनेशिया को हराकर पहली बार थॉमस कप अपने नाम किया। इस मैच में भारत के खिलाड़ियों ने लगातार तीन मैच जीते और इंडोनेशिया को 3-0 से हरा दिया। पहले लक्ष्य सेन ने जीत हासिल की फिर सात्विक-चिराग की जोड़ी जीती और अंत में किदांबी श्रीकांत ने अपना मैच जीतकर भारत को पहली बार चैम्पियन बना दिया। यहां हम भारतीय टीम के सभी सितारों के बारे में बता रहे हैं, जिनकी वजह से भारतीय टीम ने इतिहास रचा है। 
16 अगस्त, 2001 को उत्तराखंड के अल्मोड़ा में जन्मे लक्ष्य विमल कुमार, पुलेला गोपीचंद और योंग सू यू जैसे दिग्गजों से ट्रेनिंग ले चुके हैं। उन्होंने प्रकाश पादुकोण बैडमिंटन एकेडमी में भी प्रशिक्षण लिया है। लक्ष्य के भाई चिराग सेन भी बैडमिंटन खिलाड़ी हैं। पिता डीके सेन भी बैडमिंटन खिलाड़ी थे। प्राथमिक स्तर पर उन्होंने ही लक्ष्य को बैडमिंटन के गुर सिखाए। जूनियर कैटेगरी में पहले दुनिया के नम्बर एक खिलाड़ी रहे लक्ष्य ने विश्व चैम्पियनशिप में कांस्य पदक जीता था। वह यह कारनामा करने वाले सबसे युवा भारतीय खिलाड़ी हैं। लक्ष्य इंडिया ओपन में सुपर 500 का खिताब जीत चुके हैं। थॉमस कप में लक्ष्य सेन ने पांच में से दो मैच जीते, लेकिन इंडोनेशिया के खिलाफ फाइनल मैच में उन्होंने पहला मैच जीतकर भारत के इतिहास रचने की नींव रखी। इसके बाद श्रीकांत और सात्विक-चिराग की जोड़ी ने काम पूरा किया। 
आंध्र प्रदेश में एक तमिल परिवार में जन्मे श्रीकांत के बड़े भाई भी बैडमिंटन खिलाड़ी थे, उन्हें देखकर ही श्रीकांत ने यह खेल सीखा। शुरुआत में वो अपने खेल को लेकर ज्यादा गंभीर नहीं थे, लेकिन जब पुलेला गोपीचंद की एकेडमी में उन्होंने प्रवेश लिया तो उनका जीवन बदल गया। गोपीचंद कुछ दिन में ही समझ गए थे कि श्रीकांत में विश्व चैम्पियन बनने की क्षमता है। 2013 में श्रीकांत ने दुनिया के नम्बर आठ खिलाड़ी बूनसंक पॉन्सना को हराकर थाइलैंड ओपन का खिताब जीता फिर सीनियर नेशनल चैम्पियनशिप में पी. कश्यप को हराकर तहलका मचा दिया।
2014 में उन्होंने वर्ल्ड चैम्पियन और दो बार के ओलम्पिक गोल्ड मेडलिस्ट लिन डैन को हराकर चाइना ओपन का टाइटल जीता फिर 2015 में स्विस ओपन जीतने वाले पहले भारतीय पुरुष खिलाड़ी बने। श्रीकांत ने विक्टर ऐक्सल्सन को हराकर इंडिया ओपन का खिताब भी जीता था। थॉमस कप में किदांबी श्रीकांत ने छह मैच खेले और हर मैच में जीत हासिल की। भारत को चैम्पियन बनाने में सबसे बड़ा योगदान श्रीकांत की रहा। उन्होंने फाइनल मैच में जीत के साथ ही भारत को चैम्पियन बनाया। 
17 जुलाई, 1992 को जन्मे एचएस प्रणय की पढ़ाई अक्कुलम के केन्द्रीय विद्यालय से हुई। तिरुवनंतपुरम के रहने वाले प्रणय जून 2018 में बैडमिंटन रैंकिंग में आठवें नम्बर के खिलाड़ी रह चुके हैं। वो हैदराबाद में गोपीचंद बैडमिंटन एकेडमी में ट्रेनिंग ले रहे हैं। उनका नाम श्रीकांत या लक्ष्य सेन की तरह ज्यादा सुर्खियों में नहीं रहा, लेकिन भारत को थॉमस कप जिताने में उनका बहुत अहम योगदान है। 2010 में ग्रीष्मकालीन युवा ओलम्पिक में रजत पदक जीतकर वह पहली बार सुर्खियों में आए। इसके बाद वे चोट से जूझते रहे। 2013 में वह टाटा ओपन चैलेंज के फाइनल में पहुंचे, लेकिन सौरभ वर्मा से हार गए। 2014 में उन्होंने दो ऑल इंडिया सीनियर चैम्पियनशिप जीतीं। इसके साथ ही चार अंतरराष्ट्रीय टूर्नामेंट में वह सेमीफाइनल तक पहुंचे। इसी साल वे वियतनाम ओपन के फाइनल तक पहुंचे। इसके बाद इंडोनेशिया ओपन में फिरमान अब्दुल खोलिक को हराकर उन्होंने तहलका मचा दिया। 2015 में भी उन्होंने इंडिया ओपन और इंडिया सुपर सीरीज में अच्छा प्रदर्शन किया। 2016 में उन्होंने स्विस ओपन जीता। 2017 और 2018 में भी उनका प्रदर्शन अच्छा रहा और 2021 में उन्होंने विक्टर एक्सलेसन को हराकर फिर सनसनी मचाई। थॉमस कप में प्रणय ने पांच मैच खेले और सभी में जीत हासिल की। फाइनल में उन्हें खेलने का मौका नहीं मिला, लेकिन सेमीफाइनल मैच में उन्होंने टखने की चोट के बावजूद जीत हासिल की और इतिहास रच दिया। भारत को फाइनल में पहुंचाने के लिए प्रणय की जीत जरूरी थी और उन्होंने किसी को निराश नहीं किया। 
चिराग शेट्टी और सात्विकसाईराज रंकीरेड्डी की जोड़ी लगातार भारत के लिए कमाल कर रही है। थाईलैंड ओपन बैडमिंटन खिताब जीतकर इतिहास रचने वाले इन खिलाड़ियों की कहानी काफी दिलचस्प है। इन दोनों ने जब साथ में खेलना शुरू किया था, तब साथ में काफी मैच हारे। हालात यहां तक आ गए कि दोनों ने अलग होने के बारे में सोचना शुरू कर दिया। इसके बाद यह जोड़ी चमकी और पीछे मुड़कर नहीं देखा। यह बीडब्ल्यूएफ सुपर 500 बैडमिंटन टूर्नामेंट जीतने वाली पहली भारतीय पुरुष जोड़ी है। चिराग महाराष्ट्र और रंकीरेड्डी आंध्र प्रदेश के रहने वाले हैं। दोनों ग्लास्गो कॉमनवेल्थ गेम्स में सिल्वर मेडल भी जीत चुके हैं। चिराग को राफेल नडाल पसंद हैं तो सात्विक रोजर फेडरर के फैन हैं। थॉमस कप में इस जोड़ी ने छह में चार मैच जीते और भारत को चैम्पियन बनाने में अहम योगदान दिया। फाइनल मैच में भी लक्ष्य सेन के जीतने के बाद इस जोड़ी ने जीत का सिलसिला जारी रखा और भारत की जीत लगभग तय कर दी थी। पांच में से दो मैच जीतने के बाद भारत की जीत लगभग तय थी और श्रीकांत ने इस पर मुहर लगाई। 
प्रियांशू राजावत ने अपने करियर में अब तक कुछ खास नहीं किया था, लेकिन थॉमस कप में उन्होंने भी अहम योगदान दिया। थॉमस कप में प्रियांशू राजावत को सिर्फ एक मैच खेलने का मौका मिला और इसी मैच में उन्होंने भारत को जीत दिलाई। कनाडा के विक्टर लाल के खिलाफ उन्होंने 21-13, 20-22, 21-14 के अंतर से जीत दर्ज की। विष्णुवर्धन गौड़ पंजाला-कृष्ण प्रसाद गर्ग की युवा जोड़ी इस टूर्नामेंट से पहले कमजोर साबित हुई थी। दोनों ने साथ में कुछ खास नहीं किया था, लेकिन इस टूर्नामेंट में अच्छा प्रदर्शन किया। थॉमस कप में इस जोड़ी ने तीन में से सिर्फ एक मैच जीता, लेकिन इन दोनों खिलाड़ियों ने उम्मीद से बेहतर प्रदर्शन किया। आने वाले समय में भी इस जोड़ी से बेहतर प्रदर्शन की अपेक्षा है।
इस टूर्नामेंट से पहले एमआर अर्जुन और ध्रुव कपिला की जोड़ी ने भी कुछ खास नहीं किया था, लेकिन थॉमस कप में दो में से एक मैच में जीत हासिल की। नतीजे के लिहाज से इस जीत का ज्यादा महत्व नहीं था, लेकिन इस बड़े टूर्नामेंट में दोनों ने जरूरी अनुभव और आत्मविश्वास हासिल किया। आने वाले टूर्नामेंट में इस जोड़ी से भी बेहतर प्रदर्शन की उम्मीद होगी।  

 

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