चैम्पियन प्रीतम तैयार कर रहीं चैम्पियन हॉकी बेटियां
मिल चुका द्रोणाचार्य, अर्जुन व भीम अवॉर्ड
वर्ष 1987 में थामी थी हॉकी
खेलपथ संवाद
सोनीपत (हरियाणा)। प्रीतम सिवाच महिला हॉकी का वह नाम है, जिसने पहले खुद देश को चैम्पियन बनाया और अब इस खेल की पूरी फौज ही तैयार कर डाली। देश में महिला हॉकी को क्षितिज पर ले जाने के लिए वह लगातार प्रयासरत हैं। वह देश को बेशक ओलम्पिक का पदक नहीं दिला सकीं, लेकिन अपने उसी सपने को साकार करने के लिए भारतीय महिला हॉकी टीम की पूर्व कप्तान व प्रशिक्षक प्रीतम सिवाच सोनीपत जिले में हॉकी की बेहतरीन पौध तैयार करने में लगी हैं।
उनसे प्रशिक्षित तीन लड़कियों ने टोक्यो ओलम्पिक में देश को पहली बार सेमीफाइनल तक ले जाने में सफलता पाई है। उनके प्रयास से लड़कियां घरों की चहारदीवारी से बाहर निकलकर हॉकी के मैदान में उतर रही हैं। उनकी तराशी खिलाड़ी हॉकी में राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय फलक पर चमक रही हैं। प्रीतम सिवाच 18 साल से प्रशिक्षण दे रही हैं। वह देश को महिला हॉकी में ओलम्पिक पदक दिलाने से चूक गई थीं। अपने उसी सपने को पूरा करने के लिए उन्होंने सोनीपत के औद्योगिक क्षेत्र में लड़कियों को प्रशिक्षण देना शुरू किया था।
वह 2004 से लड़कियों को प्रशिक्षण दे रही हैं। उनकी ख्वाहिश है कि उनकी देखरेख में प्रशिक्षण लेकर खिलाड़ी देश को ओलम्पिक का पदक दिलाएं। इस समय उनकी देखरेख में डेढ़ सौ से अधिक बेटियां नियमित रूप से हॉकी का अभ्यास कर रही हैं। वह ज्यादातर जरूरतमंद खिलाड़ियों को प्रशिक्षण दे रही हैं। वह उन्हें स्वयं हर स्तर की सुविधा उपलब्ध कराती हैं।
हरियाणा के गुरुग्राम के गांव झाड़सा में जन्मी प्रीतम सिवाच ने वर्ष 1987 में हॉकी थामी थी। उस समय वह सातवीं कक्षा की छात्रा थीं। उन्होंने 1990 में पहली राष्ट्रीय प्रतियोगिता में भाग लिया, जिसमें सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी का खिताब मिला। उन्होंने 1992 में जूनियर एशिया कप में पहली बार अंतरराष्ट्रीय स्पर्धा में भाग लिया था।
प्रीतम सिवाच को द्रोणाचार्य, अर्जुन व भीम अवॉर्ड मिल चुके हैं। उनसे प्रशिक्षित खिलाड़ी नेहा गोयल, निशा वारसी, किरण दहिया, ज्योति रूमावत व महिमा अंतरराष्ट्रीय फलक पर चमक रही हैं वहीं रेलवे की ज्यादातर महिला खिलाड़ियों को उन्होंने प्रशिक्षण दिया है। वह खेल से ज्यादा प्रशिक्षण के कार्य को अधिक चुनौती भरा मानती हैं।
प्रीतम कहती हैं कि खिलाड़ी को स्वयं के अंदर जज्बा पैदा करना होता है, लेकिन एक प्रशिक्षक को तो दूसरे के अंदर खेलभावना को जगाना पड़ता है। प्रीतम सिवाच का कहना है कि अर्जुन व द्रोणाचार्य अवॉर्ड मिलना गौरव की बात है। इससे ओर बेहतर काम करने की प्रेरणा मिलती है। मैंने हमेशा अपने काम को ईमानदारी से किया और देश के लिए बेहतर खिलाड़ी तैयार किए। खेल के प्रति ईमानदारी और कर्तव्यनिष्ठा ने ही यह मुकाम दिलाया है। प्रीतम सिवाच बताती हैं कि उन्हें वर्ष 1998 में अर्जुन अवॉर्ड मिला था। 15 वर्ष के लम्बे अंतराल के बाद किसी महिला खिलाड़ी को अर्जुन पुरस्कार मिला था।
ये हैं प्रीतम सिवाच की उपलब्धियां
1992 में पहले अंतरराष्ट्रीय मुकाबले में जूनियर एशिया कप में बेस्ट प्लेयर का खिताब। 1998 में एशियाड में देश की कप्तानी करते हुए बैंकाक में 15 वर्ष बाद प्रतियोगिता का रजत पदक। 2002 में मैनचेस्टर इंग्लैंड में हुए राष्ट्रमंडल खेलों में स्वर्ण पदक। 2010 राष्ट्रमंडल खेलों में भारतीय महिला हॉकी टीम की प्रशिक्षक बनीं। चाइना में एशियन गेम व अर्जेंटीना में हुए विश्व कप में टीम को प्रशिक्षण दिया। 2017 एशिया कप स्वर्ण पदक विजेता टीम को प्रशिक्षण दिया। वर्ष 2021 में हॉकी में द्रोणाचार्य अवॉर्ड प्राप्त करने वाली देश की पहली महिला कोच बनीं।