पुजारा-रहाणे प्रतिभाशाली क्रिकेटरों की राह का रोड़ा

दो साल में महज 25 की औसत से बनाए रन 
खेलपथ संवाद
नई दिल्ली।
हमारे देश में खेलों की कोई नीति न होने से कई दिग्गज खिलाड़ी प्रतिभाशाली खिलाड़ियों के भविष्य की राह का रोड़ा हैं। क्रिकेट की बात करें तो अजिंक्य रहाणे और चेतेश्वर पुजारा पिछले दो साल से लचर बल्लेबाजी के बाद भी ढोए जा रहे हैं। इन खिलाड़ियों की वजह से कई प्रतिभाशाली खिलाड़ी टीम इंडिया में प्रवेश से वंचित हैं।
चेतेश्वर पुजारा और अजिंक्य रहाणे एक बार फिर फेल हो गए। साउथ अफ्रीका के खिलाफ जोहान्सबर्ग टेस्ट मैच की पहली पारी में पुजारा पुजारा 3 रन बनाकर और रहाणे बिना खाता खोले पवेलियन लौट गए। दोनों बल्लेबाज लंबे समय से आउट ऑफ फॉर्म चल रहे हैं। जनवरी 2021 से पुजारा ने 15 टेस्ट मैचों में महज 27.11 की औसत से बनाए हैं। शतक एक भी नहीं। वहीं, रहाणे ने और भी खराब औसत (19.95) से बल्लेबाजी की है। इनके नाम भी कोई शतक नहीं है। 2020 से इनका परफॉर्मेंस स्टोरी के साथ लगे पहले ग्राफिक्स में देख लीजिए। आलोचक से लेकर फैंस तक सवाल उठा रहे हैं कि इतने कमजोर परफॉर्मेंस के बावजूद दोनों अब तक टीम में क्यों हैं? इन्हें बाहर क्यों नहीं किया जा रहा?
हम जिन कमजोरियों का हवाला देकर पुजारा और रहाणे की बलि चाह रहे हैं उसी कमजोरी से हमारे कप्तान विराट कोहली खुद भी जूझ रहे हैं। पिछले 1 साल टेस्ट क्रिकेट में विराट कोहली ने 28.21 की औसत से बल्लेबाजी की। उनके नाम भी कोई शतक नहीं है। तो फिर सिर्फ पुजारा और रहाणे ही बाहर क्यों हों, कप्तान को क्यों छोड़ दिया जाए? इसलिए कि वे कप्तान हैं और टीम को जीत दिलाते हैं? फिर तो यह भी कहा जा सकता है कि जब विराट नहीं थे तब भी टीम जीती, ऑस्ट्रेलिया में। वह भी मेलबर्न और गाबा में। 
टी-20 के जमाने में खिलाड़ियों की फिटनेस लम्बे फॉर्मेट के लिहाज से कमजोर हुई है। अपने नए-नए वनडे और टी-20 के कप्तान रोहित शर्मा तो हर तिमाही में एक बार निश्चित रूप से चोटिल हो रहे हैं। विराट की फिटनेस सुप्रीम थी। अब वे भी पीठ पकड़कर बाहर बैठ गए हैं। इनके उलट पुजारा और रहाणे लगातार अवलेबल रहे हैं। पिछले दो साल में टीम इंडिया ने 19 टेस्ट मैच खेले। पुजारा ने ये सभी 19 टेस्ट खेले। रहाणे 16 में खेले। दूसरी ओर विराट 14 टेस्ट मैच ही खेल सके। रोहित शर्मा सिर्फ 11 में खेले।
टीम के कप्तान विराट कोहली जरूर हैं लेकिन, वे फील्ड पर कई अहम फैसले पुजारा और रहाणे की सलाह से लेते हैं। किसी बल्लेबाज के खिलाफ प्लान ए फेल हो रहा हो तो प्लान बी ये सभी मिलकर तैयार करते हैं। 
दुनिया के हर कंडीशन में खेल चुके होने के कारण हर ग्राउंड के लिए इनके पास इनपुट होते हैं। साथ ही पुजारा और रहाणे स्लिप के बेहतरीन फील्डर भी हैं। स्लिप फील्डिंग ऐसा क्षेत्र है जिसमें रातों-रात स्पेशलिस्ट नहीं बनाए जा सकते। इसमें समय लगता है। बल्लेबाजी में पुजारा और रहाणे भले रिप्लेस किए जा सकते हैं, लेकिन स्लिप कॉर्डन में इनकी बराबरी का रिप्लेसमेंट अभी नहीं है हमारे पास।
पुजारा और रहाणे भले ही बड़ा स्कोर नहीं बना पा रहे हैं, लेकिन बल्ले से इन्होंने काफी उपयोगी कंट्रीब्यूशन किया है। पिछले ऑस्ट्रेलिया दौरे से ही देख लीजिए। विराट तो पिता बनने के कारण 36 रन पर ऑल आउट हुई टीम को छोड़कर वापस भारत लौट आए थे। वहां से पहले रहाणे और फिर पुजारा ने मोर्चा संभाला। रहाणे ने मेलबर्न में सेंचुरी जमाई। फिर आगे भी अच्छी पारियां खेलीं। पुजारा ने सिडनी और गाबा में किला लड़ा दिया। शरीर पर चोटें खाईं लेकिन टस से मस नहीं हुए।
अब इंग्लैंड चलिए। लॉर्ड्स टेस्ट में भारत मुश्किल स्थिति में था। यहां से पुजारा और रहाणे ने सेंचुरी पार्टनरशिप कर टीम को मजबूत किया। वो पार्टनरशिप नहीं होती तो बाद में मोहम्मद शमी और बुमराह की पार्टरनशिप शुरू होने तक मैच जाता ही नहीं। बुमराह और शमी के फाइटबैक ने उस टेस्ट में सुर्खियां बटोरी थीं, लेकिन उससे पहले पुजारा और रहाणे की फाइट ने वापसी की जमीन तैयार की थी।
यह कारण सबसे महत्वपूर्ण है। कोई बल्लेबाज आखिर हमें फॉर्म में क्यों चाहिए होता है? इसलिए कि वह रन बनाए और हमारी टीम जीते। अब पुजारा और रहाणे भले रेगुलर रन नहीं बना रहे हैं, लेकिन टीम जीत तो रही है। एक ही साल में हमने ऑस्ट्रेलिया, इंग्लैंड और न्यूजीलैंड के खिलाफ टेस्ट सीरीज जीती है। साउथ अफ्रीका में भी अब तक तो हम ही आगे हैं। जब जीत रहे हैं तो जीतने वाली टीम को क्यों बदला जाए?
ऊपर दिए पांच पॉइंट्स यह समझने में मददगार हो सकते हैं कि पुजारा और रहाणे खराब फॉर्म के बावजूद टीम में क्यों हैं, लेकिन जितनी बार ये दिग्गज फेल होते जाएंगे फैंस और आलोचकों की समझने की क्षमता भी फेल होती जाएगी। गावस्कर ने भी कह दिया है कि इनके पास अपना करियर बचाने के लिए सिर्फ 1 पारी शेष है। यानी जोहान्सबर्ग टेस्ट में भारत की दूसरी पारी। तलवार सिर पर लटक गई है। अब इनको अच्छा खेलना ही होगा। हालांकि, यह भी याद रखिए.. ऐसी तलवारें उनके सिर पर पहले भी कई बार लटकी हैं और हर बार ये चकमा देने में कामयाब रहे हैं। कोई ताज्जुब मत करिएगा अगर जोहान्सबर्ग टेस्ट की दूसरी पारी में ये रन बना दें और उन रनों की बदौलत हम मैच जीत लें।
 

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