रवि ने देश को उम्मीद से ज्यादा दिया

पहले ही ओलम्पिक में चांदी का पदक जीतना बड़ी बात
खेलपथ संवाद
नई दिल्ली।
टोक्यो ओलम्पिक में भारतीय पहलवान रवि कुमार दहिया ने भारत की झोली में एक और रजत पदक डाल दिया। इसी के साथ वे ओलम्पिक में रजत पदक पाने वाले दूसरे भारतीय बन गए। इनसे पहले यह कीर्तिमान सुशील कुमार के नाम था। रवि को पूर्व पहलवान उम्मीद भरी नजरों से देख रहे हैं। उनका मानना है कि रवि ने पहले ओलम्पिक में उम्मीद से ज्यादा बेहतर प्रदर्शन कर देश को काफी कुछ दिया है। अगर वे ऐसे ही मेहनत करते रहे, तो आने वाला वक्त उन्हीं का है। 
रवि कुमार दहिया के प्रदर्शन पर इंदौर के पहलवान पप्पू यादव ने बताया कि वह भारत का भविष्य है। रवि ने बहुत बड़ी सफलता हासिल की है। यह जीत सिर्फ रवि के लिए ही नहीं, बल्कि पूरे देश के लिए काफी अहमियत रखती है। जबसे सुशील कुमार ने ओलम्पिक में मेडल जीता, तभी से हर टूर्नामेंट में हमने पहले से बेहतर प्रदर्शन किया। रवि जैसे युवा पहलवान इस बात का सबूत है कि हमारे देश में कुश्ती को लेकर अभी काफी स्कोप है।
रवि अपना पहला ओलम्पिक खेल रहे थे। पहली बार में उन्होंने फाइनल में जगह बनाई। उनका मुकाबला दो बार के विश्व विजेता से हुआ। इसके बावजूद उन्होंने कड़ी टक्कर दी। मैच में बने रहे। कोशिश करते रहे। इस बार रजत पदक जीता है। अगली बार जरूर स्वर्ण पदक लाएंगे। ओलम्पिक शुरू होने से पहले किसी को भी उम्मीद नहीं थी कि रवि यहां तक पहुंचेंगे। विनेश फोगाट और दीपक पूनिया की बात तो हर कोई कर रहा था, लेकिन रवि यहां तक पहुंचेंगे इसकी उम्मीद किसी ने नहीं की थी। सबकी उम्मीदों से परे हटकर उन्होंने अपनी मेहनत के दम पर यह मुकाम हासिल किया है। इसकी जितनी तारीफ की जाए, कम है।
रवि के प्रदर्शन से एक बात तो साफ है कि हमारे देश में कुश्ती अभी और ऊंचाइयों को छुएगी। आज देश के बच्चे-बच्चे की जुबान पर रवि का नाम है। इससे उन्हें प्रेरणा मिलेगी और वे भी रवि की तरह देश का नाम रोशन करना चाहेंगे। आज जिन युवा खिलाड़ियों ने रवि को रजत पदक के साथ देखा होगा, वे भी ऐसे बड़े मंच पर देश को गौरवान्वित करना चाहेंगे।
हम यहां तक तो आ गए हैं, लेकिन अब इसे और आगे ले जाना है। अभी कुश्ती के लिए सिर्फ सोनीपत में सेंटर है। इसे देश के अन्य राज्यों में भी ले जाने की जरूरत है। कुश्ती, वेटलिफ्टिंग जैसे खेलों के लिए शुरुआत से ही बच्चों को तैयार करना होगा। खिलाड़ी एक दिन में तैयार नहीं होते। इसके लिए हमें जीरो से शुरुआत करनी होगी, तब जाकर हम बड़े मंच में सोना जीत पाएंगे।
कुश्ती में हार-जीत के लिए पहलवान कुछ भी करने को तैयार रहते हैं। कजाक पहलवान को पता था कि रवि मैच जीतने की कगार पर है। अगर उनकी पकड़ ढीली पड़ जाती, तो मैच का पासा पलट सकता था। इसलिए उसने हर दांव खेला। हमारे पहलवान ने दर्द सहकर भी मुकाबला अपने नाम किया। 
पप्पू कहते हैं कि हरियाणा में बच्चों को शुरुआत से ही ट्रेनिंग दी जाती है। ऐसे में अन्य राज्यों में भी सुविधाएं बढ़ानी होंगी। महाराष्ट्र, पंजाब और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में कुश्ती जैसे खेलों की बहुत संभावनाएं हैं। हमारे मध्यप्रदेश में भी टैलेंट की कमी नहीं है। अगर ऐसे राज्यों में खेल सुविधाएं बढ़ाई जाएं, तो नए-नए खिलाड़ी उभरकर सामने आएंगे।

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