आओ मध्य प्रदेश में खेलों से खेलवाड़ पर ताली पीटें

किसके लिए हैं 17 एस्ट्रोटर्फ हॉकी मैदान?

श्रीप्रकाश शुक्ला

ग्वालियर। पिछले डेढ़ दशक में खेलों के विकास और खेल आयोजनों पर कई अरब रुपये खर्च करने वाले मध्य प्रदेश में सब कुछ ठीकठाक नहीं चल रहा है। जिस प्रदेश में 17 एस्ट्रोटर्फ हॉकी मैदान हों, सरकार नेशनल खेलों के आयोजन का दम्भ भरती हो वहां ओलम्पिक साल में राज्यस्तरीय हॉकी प्रतियोगिताएं मिट्टी के मैदान में होना चिन्ता की बात है। इन दिनों इटारसी के गांधी मैदान में हॉकी होशंगाबाद के प्रयासों से राज्यस्तरीय अंतर जिला हॉकी प्रतियोगिता खेली जा रही है। मैदान और आयोजन के निम्न स्तर से सवाल उठते हैं कि क्या हॉकी मध्य प्रदेश खिलाड़ियों के लिए इससे बेहतर नहीं कर सकती?

मानव के समग्र विकास में जहां खेलों की अहम भूमिका है वहीं सही सोच और बेहतर आयोजनों से हम समाज में खेल संस्कृति को भी पल्लवित पोषित कर सकते हैं। खेल विभाग और खेल संगठन एक-दूसरे के पूरक हैं। इनमें आपसी सामंजस्य बनाना खिलाड़ी का नहीं बल्कि संगठन पदाधिकारियों और आला खेल अधिकारियों का काम है। अफसोस की बात है कि मध्य प्रदेश इस दिशा में अभी बहुत पीछे है। हॉकी की बात करें तो पिछले डेढ़ दशक में उड़ीसा और मध्य प्रदेश सरकारों ने ही पुश्तैनी खेल पर सबसे अधिक पैसों की बरसात की है।

इन पैसों से मध्य प्रदेश में कृत्रिम हॉकी मैदानों के साथ दीगर खेल अधोसंरचनाएं आबाद हुईं। इन मैदानों की सार्थकता तब है जब इनमें खिलाड़ियों को खेलने के पर्याप्त अवसर मिलें। हॉकी मध्य प्रदेश को इस दिशा में ठोस पहल करनी थी। इटारसी में खेली जा रही राज्यस्तरीय अंतर जिला हॉकी प्रतियोगिता के लिए खेल मुरीदों को हॉकी होशंगाबाद के अध्यक्ष प्रशांत जैन, कार्यकारी अध्यक्ष शिरीष कोठारी तथा हॉकी मध्य प्रदेश के सह सचिव दीपक जेम्स को बधाई देनी चाहिए कि वह कम से कम खिलाड़ियों की पीठ तो ठोक रहे हैं। हॉकी मध्य प्रदेश के अध्यक्ष नितिन धिमोले, सचिव लोक बहादुर और खजांची ललित नायक का यह दायित्व तो बनता ही था कि वह भी इटारसी गए होते तथा खिलाड़ियों की खैर-खबर और खिलाड़ियों को दी जा रही सुविधाओं पर नजर फरमाते।

देखा जाए तो हॉकी ही नहीं मध्य प्रदेश के लगभग सभी खेल संगठनों में पदलोलुपता चरम पर है। वर्षों से सांगठनिक कुर्सियों में जमे लोग नहीं चाहते कि सही सोच और खेलों का भला चाहने वाले लोग आगे आएं। इस नूरा-कुश्ती से जहां खिलाड़ियों का नुकसान हो रहा है वहीं राष्ट्रीय स्तर पर प्रदेश भी शर्मसार हो रहा है। बुनियादी स्तर पर खेल सम्बन्धी सुविधाएं उपलब्ध कराना, खेलों में लोगों को बढ़-चढ़कर हिस्सा दिलाना, खेल और शिक्षा का एकीकरण, प्रारम्भिक स्तर पर प्रतिभा पहचान कर उसे निखारना, बेहतरीन खिलाड़ियों को देश-विदेश में उच्च स्तर का प्रशिक्षण दिलाना, खिलाड़ियों की दुनिया भर में आयोजित प्रतियोगिताओं में हिस्सेदारी, खेलों की समुचित जानकारी प्रदान कराना तथा खिलाड़ियों को उचित चिकित्सा सम्बन्धी सुविधाएं उपलब्ध कराना आखिर किसका काम है? माना कि यह सब सरकार का काम है तो फिर मुझे कोई बताए कि आखिर खेल संगठन पदाधिकारियों का क्या काम है?  

कोई भी प्रदेश या राष्ट्र सिर्फ सरकारी प्रयासों से ही खेलों में उन्नति नहीं कर सकता। इसके लिए खेल संगठन पदाधिकारियों को भी अपनी सोच बदलनी चाहिए। आयोजन का मतलब खानापूर्ति नहीं बल्कि खिलाड़ियों को सर्वसुविधायुक्त माहौल देना होना चाहिए ताकि खिलाड़ी अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन दे सके। मध्य प्रदेश खेल के क्षेत्र में प्रगति कर रहा है लेकिन उस गति से नहीं जिस गति से पैसे जाया हो रहे हैं। खेल सुविधाओं को विकसित करने, खेलों में जन भागीदारी बढ़ाने और खिलाड़ियों को प्रोत्साहित करने की दिशा में न ही सरकार ने कोई ठोस कदम उठाए न ही खेल संगठनों ने रत्ती भर कोशिश की।

कहने को मध्य प्रदेश में खिलाड़ियों को सरकारी सेवाओं में रोजगार के अवसर दिए जाने लगे हैं लेकिन कैसे अवसर मिल रहे हैं, उस पर नए सिरे से विचार करने की जरूरत है। विक्रम अवार्डी खिलाड़ी को चतुर्थ श्रेणी की सेवा में रखना खेल और खिलाड़ी के साथ भद्दा मजाक है। मध्य प्रदेश में खेल प्रतिभाओं की कमी नहीं है, जरूरत है उन्हें उचित मंच और सुविधाएं मिलें। खेलों में आधुनिक तकनीक के बढ़ते प्रयोग को देखते हुए मध्य प्रदेश में खेल विज्ञान केंद्रों की स्थापना होनी चाहिए ताकि खिलाड़ियों को उच्चस्तरीय प्रशिक्षण दिया जा सके। मध्य प्रदेश के हर जिले में खेलों के महत्व और रुचि के हिसाब से खेल हब बनाने की दिशा में भी ठोस कदम उठाने की जरूरत है। हास्यास्पद है कि खेल संघ पदाधिकारी सरकार से तो खिलाड़ियों को बेहतर सुविधाएं देने की मांग करते हैं लेकिन स्वयं के आयोजनों में खिलाड़ी भूखे पेट न खेलें इसकी चिन्ता इन्हें कतई नहीं होती। इटारसी में हो रही हॉकी की टंकार से हॉकी मध्य प्रदेश बेशक प्रफुल्लित हो, खिलाड़ी काफी मायूस हैं।

जब भारत की पुरुष और महिला हॉकी टीमें ओलम्पिक क्वालीफाई कर चुकी हों वैसे में हॉकी मध्य प्रदेश का मिट्टी के मैदानों में प्रतियोगिताएं कराना समझ से परे है। बेहतर होता हॉकी मध्य प्रदेश सिस्टम से सब-जूनियर, जूनियर तथा उसके बाद सीनियर प्रतियोगिताएं कराता। इटारसी में चल रही प्रतियोगिता में शामिल टीमों का स्तर परिणाम देखकर सहज ही लगाया जा सकता है। इस प्रतियोगिता के बाद सीनियर महिला हॉकी प्रतियोगिता दमोह में खेली जाएगी, जहां खिलाड़ियों का पहुंचना ही काफी कठिन होगा। मध्य प्रदेश में खेलों में बदलाव की झलक दिख सकती है बशर्ते हम स्वयं अपनी सोच में बदलाव करके तो देखें। हम बदलेंगे तो मध्य प्रदेश भी बदलेगा।

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