खेलों में आसान नहीं बेटियों की राहः सानिया मिर्जा

बेटियों को स्वयं चुनने दें अपना खेल
लड़कियों को कोचिंग देना मुश्किल काम
खेलपथ प्रतिनिधि
हैदराबाद।
भारत की अनुभवी महिला टेनिस खिलाड़ी सानिया मिर्जा खेलों में भारतीय बेटियों की राह आसान नहीं मानतीं। सानिया कहती हैं कि यह खुशी की बाति है कि हमारे देश में क्रिकेट से इतर बेटियां बहुत से खेलों में अपने पराक्रम और कौशल से मुल्क का नाम रोशन कर रही हैं। हालांकि सानिया को लगता है कि देश में महिलाओं के लिए खेलों को वास्तविक करियर के रूप में देखने में अभी कुछ और समय लगेगा।
छह बार की ग्रैंडस्लैम विजेता ने सानिया ने माता-पिता की भूमिका और महिला खिलाड़ियों के प्रति कोचों के रवैये पर भी बेबाक बात की। सानिया ने कहा, ‘मैं इस बात से गर्व महसूस करती हूं कि क्रिकेट से इतर देश में सबसे बड़े खेल सितारा महिलाएं हैं। उन्होंने कहा, ‘यह इस बात का संकेत है कि चीजें बदली हैं लेकिन अभी हमें उस स्थिति में पहुंचने के लिए लम्बी राह तय करनी है जबकि एक लड़की मुक्केबाजी के ग्लब्स पहने या बैडमिंटन रैकेट पकड़े या कहें कि ‘मैं पहलवान बनना चाहती हूं.’ मेरे कहने का मतलब है कि प्रगति नैसर्गिक होनी चाहिए।’
सानिया लड़कियों के 15 या 16 साल के बाद टेनिस छोड़ देने पर कहती हैं यह भारतीय संस्कृति से जुड़ा गम्भीर मसला है। उन्होंने कहा, ‘दुनिया के इस हिस्से में माता-पिता खेल को सीधे तौर पर नहीं अपनाते। वे चाहते हैं कि उनकी बेटी चिकित्सक, वकील, शिक्षिका बने लेकिन खिलाड़ी नहीं। हालांकि पिछले 20-25 वर्षों में चीजें बदली हैं लेकिन अब भी बेटियों को लम्बा रास्ता तय करना है।’
सानिया कहती हैं कि भारत की कई महिला खिलाड़ियों ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी विशेष छाप छोड़ी है इनमें ओलम्पिक पदक विजेता बैडमिंटन खिलाड़ी पीवी सिंधू, साइना नेहवाल, छह बार की विश्व चैम्पियन मुक्केबाज एमसी मैरीकॉम, एशियाई खेलों की चैम्पियन पहलवान विनेश फोगाट, पूर्व विश्व चैम्पियन भारोत्तोलक मीराबाई चानू आदि प्रमुख हैं। सानिया ने महिला खिलाड़ियों के सामने आने वाली कई चुनौतियों पर बात की।
उन्होंने कहा, ‘लड़कियों के लिए कुछ चीजें तय कर दी जाती हैं। यहां तक कि मैंने सब कुछ हासिल कर दिया तब भी मुझसे पूछा जाता था कि मैं कब बच्चे के बारे में सोच रही हूं और जब तक मैं मां नहीं बनूंगी मेरी जिंदगी पूर्ण नहीं होगी। हम लोगों से गहरे सांस्कृतिक मुद्दे जुड़े हैं और इनसे निजात पाने में अभी कुछ पीढ़ियां और लगेंगी।’ सानिया ने इसके साथ ही कहा कि लड़कियों को प्रशिक्षण देते हुए कोचों को अधिक समझदारी दिखानी चाहिए। बकौल सानिया, ‘लड़कियों को कोचिंग देना अधिक मुश्किल है। बेटियां जब 13-14 साल की होती हैं तब उन्हें पता नहीं होता है कि वे क्या हैं। उनके शरीर में बदलाव हो रहा होता है। उनके शरीर में हार्मोन संबंधी बदलाव होते हैं जोकि उनकी पूरी जिंदगी होते रहते हैं।’ गौरतलब है कि सानिया ने साल 2020 की शुरुआत खिताबी जीत के साथ की थी। उन्होंने जनवरी में यूक्रेन की नादिया किचेनोक के साथ जोड़ी बनाकर होबार्ट इंटरनेशनल टेनिस टूर्नामेंट का महिला युगल खिताब जीता था।

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