नेशनल फुटबॉलर अविनाश शर्मा सड़क किनारे बेच रहा चाय

योगी सरकार ध्यान दे
खेलपथ ने पहले भी उत्तर प्रदेश के संविदा खेल प्रशिक्षकों की तरफ ध्यान दिला चुका है
बरेली। फुटबॉल को अपना जीवन मानने वाले अविनाश शर्मा ने कभी भारतीय टीम से खेलने का सपना देखा था। यह सपना पूरा नहीं हुआ तो बतौर एनआईएस कोच वो नई पौध तैयार करने में जुट गए लेकिन कोरोना के कारण नौकरी ही नहीं रही। चार नेशनल और तीन इंटर यूनिवर्सिटी खेलने वाले अविनाश अब चाय बेचने को मजबूर हैं। अविनाश की कहानी कोरोना में खिलाड़ियों और प्रशिक्षकों पर टूटे आर्थिक संकट की गवाही है।
एनआईएस का प्रतिष्ठित डिप्लोमा करने वाले अविनाश को सत्र 2019-20 में पीलीभीत स्पोर्ट्स स्टेडियम में एडहॉक कोच के रूप में तैनाती मिली। अविनाश को लगा कि अब उनकी जिंदगी पटरी पर आ रही है लेकिन मार्च से लॉकडाउन हो गया। लॉकडाउन में स्टेडियम बंद कर दिए गए। किसी भी एडहॉक कोच का नवीनीकरण नहीं हुआ। अविनाश के रोजी-रोटी से जुड़े रास्ते बंद हो चुके थे। मजबूरी में उन्होंने आईवीआरआई ओवर ब्रिज के नीचे चाय की एक छोटी सी दुकान चलानी शुरू कर दी। अब चाय की दुकान ही जीवन चलाने का जरिया रह गई है। 
स्पोर्ट्स कालेज से नेशनल तक का सफर
राजेंद्र नगर में किराए के मकान में रहने वाले अविनाश ने स्पोर्ट्स कॉलेज लखनऊ से 2010 में इंटर किया। लखनऊ यूनिवर्सिटी से उन्होंने तीन इंटर यूनिवर्सिटी फुटबॉल प्रतियोगिता में हिस्सा लिया। अंडर-17 सुब्रतो कप, अंडर-19 स्कूल नेशनल, अंडर-21 नेशनल सहित उन्होंने 4 राष्ट्रीय फुटबॉल प्रतियोगिता में भाग लिया। सहारा और सनराइज जैसे क्लब से फुटबॉल खेली। आर्थिक संकट से जूझते हुए भी बीपीएड और एमपीएड किया। उनके खेल और कोचिंग की सभी तारीफ करते हैं। 
लोन लेकर किया था एनआईएस डिप्लोमा
28 साल के अविनाश का जीवन हमेशा ही संघर्ष से भरा रहा। मेधावी होने के कारण उन्होंने स्कॉलरशिप के माध्यम से अपनी पढ़ाई पूरी की। एनआईएस डिप्लोमा करने के लिए उन्हें अपने करीबी से लगभग एक लाख रुपये का लोन लेना पड़ा। अभी भी उन पर करीब 50 हजार रुपये का लोन बकाया है। 
चाय बेच नए खिलाड़ियों को कैसे करूं मोटिवेट
अविनाश सुबह-शाम रोड नंबर 4 पर खिलाड़ियों को प्रैक्टिस कराते हैं और खुद भी प्रैक्टिस करते हैं। कहते हैं कि मुझे चाय बेचने में कोई शर्म नहीं है। बस इस बात की चिंता रहती है कि मैं नए खिलाड़ियों को फुटबॉल खेलने के लिए कैसे मोटिवेट करूं। यदि वह मेरे करियर के बारे में पता करेंगे तब खुद ही उनका फुटबॉल से मोह भंग हो जाएगा। चार बार नेशनल खेलने और एनआईएस करने के बाद भी मैं आर्थिक रूप से मजबूर हूं। मेरे जैसे पूरे प्रदेश में करीब 500 एनआईएस कोच हैं जो भुखमरी की दहलीज पर खड़े हैं। सरकार ने उन्हें राहत देने के बारे में कभी सोचा ही नहीं। जबकि वो हमेशा आपके प्रदेश का नाम रोशन करते रहे हैं।
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