तीरंदाजी में सपनों की उड़ान भर रहीं झारखंड की बेटियां

खेलपथ प्रतिनिधि
रांची। कहा जाता है कि काम करो ऐसा कि पहचान बन जाये, हर कदम चलो ऐसा कि निशान बन जाये, यह जिंदगी तो सब काट लेते हैं, जिंदगी ऐसा जियो कि मिसाल बन जाये. कुछ ऐसा ही कर दिखाया है झारखंड के गांवों की लड़कियों ने. इसमें कोई ड्राइवर की बेटी है, तो कोई गार्ड की, तो किसी के पिता किसान हैं.
मधुमिता, सिंपी, बबीता हो या सविता, सबकी अपनी कहानी है. ये बेटियां अपने हौसले से मुकाम हासिल कर रही हैं. बेहतर कल पर निशाना साध रही हैं. अंतरराष्ट्रीय फलक पर पहचान बना रही हैं. इनकी मदद की सिल्ली स्थित बिरसा मुंडा तीरंदाजी अकादमी ने. मुख्य कोच प्रकाश राम और शिशिर महतो की वर्षों की मेहनत ने इनको इस मुकाम तक पहुंचाया है.
सिल्ली की बेटी अनिता तीरंदाजी में पहली बार अंतरराष्ट्रीय स्तर के टूर्नामेंट में निशाना साधेंगी. बिरसा मुंडा तीरंदाजी सेंटर की अनिता कुमारी का चयन भारतीय तीरंदाजी टीम में एशिया कप स्टेज टूर्नामेंट के लिए हुआ है. हालांकि यहां तक पहुंचने का सफर आसान नहीं था. अनिता के पिता बुद्धेश्वर बड़ाइक रांची स्थित एक चर्च में गार्ड हैं. घर की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं है. यहां तक कि खेलने के लिए पैसे भी नहीं मिल पाते हैं, लेकिन अकादमी के प्रयास से यहां तक पहुंच पायी हैं. अनिता कहती हैं : मैं अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पदक जीतकर झारखंड का नाम रोशन करूंगी. वह अभी तक राष्ट्रीय स्तर पर गोल्ड, सिल्वर और ब्रांज मेडल अपने नाम कर चुकी हैं.
50 से अधिक राष्ट्रीय पदक जीत चुकी हैं मधुमिता
वेस्ट बोकारो की रहने वाले मधुमिता अब तक 50 से अधिक राष्ट्रीय पदक अपने नाम कर चुकी हैं. वर्ष 2008 में मधुमिता ने तीरंदाजी करियर की शुरुआत की. हालांकि करियर के शुरुआती दौर में इनके हाथ खाली रहे. फिर 2010 में सुदेश महतो और नेहा महतो द्वारा सिल्ली में चलाये जा रहे बिरसा मुंडा तीरंदाजी सेंटर में मधुमिता ने एडमिशन लिया. फिर तो इनके करियर में पंख लग गये. 2010 और 2012 में मधुमिता राष्ट्रीय चैंपियन बनी.
इसके बाद मंगोलिया में हुई अंतरराष्ट्रीय तीरंदाजी प्रतियोगिता में शामिल होने का मौका मिला. अभी तक पांच अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिता में हिस्सा ले चुकी हैं. इसमें जूनियर वर्ल्ड चैंपियनशिप, वर्ल्ड कप स्टेज वन और टू और वर्ल्ड कप स्टेज फोर शामिल है. इसके अलावा अगस्त में मधुमिता एशियन गेम्स खेलने जकार्ता जायेंगी.
दूसरे के घरों में कभी बर्तन मांजती थी तीरंदाज कलावती
यह कहानी तीरंदाज कलावती की है. बचपन में मां-बाप का साया उठ गया. पेट भरने के लिए दूसरों के घरों में बर्तन मांजने लगी. फिर स्थानीय लोगों की मदद से इसका नाम सिल्ली के कस्तूरबा स्कूल में लिखवाया गया.
साथ ही तीरंदाजी से गहरे लगाव को देखते हुए बिरसा मुंडा तीरंदाजी सेंटर में दाखिला दिलाया गया. इसके बाद कलावती ने पीछे मुड़कर नहीं देखा. जूनियर नेशनल और नेशनल प्रतियोगिता में कलावती मेडल पर सटीक निशाना साध चुकी हैं. उनका तीरंदाजी सेंटर ही घर बन गया. इसी घर ने पिछले दिनों उसके हाथ पीले किये और नम आंखों से बेटी की तरह विदा किया. सिल्ली की बबीता वारेंदर (सोनाहातू) गांव की है जहां डायन बिसाही के नाम पर महिलाओं के साथ गलत व्यवहार किया जाता था. वहीं बबीता ने अपनी तीरंदाजी के बदौलत गांव को अलग पहचान दिलवायी.
बांग्लादेश में हुई एशियन आर्चरी चैंपियनशिप में स्वर्ण और कांस्य पदक जीतकर यह साबित कर दिया कि यदि प्रतिभा हो, तो कोई भी मुकाम हासिल किया जा सकता है. बबीता के पिता बिंदेश्वर महतो किसान हैं. अपने बच्चों को पढ़ाने में असमर्थ थे. लेकिन बबीता ने सिल्ली स्थित तीरंदाजी अकादमी में एडमिशन लिया. दो साल कड़ी मेहनत की. फिर नेशनल चैंपियनशिप में सात पदक हासिल किये.
सिल्ली के पास के गांव टांगटा की रहने वाली सविता भी बबीता के साथ अपने सपनों को पूरा कर रही हैं. पिछले दिनों बांग्लादेश में आयोजित साउथ एशियन तीरंदाजी चैंपियनशिप में सविता ने टीम इवेंट में स्वर्ण पदक अपने नाम किया है. उनके पिता किसान हैं और किसी तरह घर का गुजारा चलता है. कोच प्रकाश राम बताते हैं कि सविता तीन साल पहले अकादमी में आयी और प्रशिक्षण शुरू किया. इनकी मेहनत रंग लायी और आज अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मेडल जीत चुकी हैं. आने वाले समय में देश और प्रदेश के लिए और भी मेडल जीतेंगी. सिल्ली के कड़ियाडीह की रहने वाली सिंपी कुमारी ने कम उम्र में ही तीरंदाजी में सटीक निशाना साधा है. पिता लखीराम महतो रांची में सिक्युरिटी गार्ड हैं. सिर्फ 14 साल की उम्र में ही सिंपी ने 20 राष्ट्रीय पदक अपने नाम किया था.
2013 में इनकी प्रतिभा को देखते हुए दिल्ली के शास्त्री भवन में सम्मानित किया जा चुका है. सिंपी ने 2012 में आयोजित मिनी सब जूनियर नेशनल टूर्नामेंट में दोहरा गोल्ड मेडल अपने नाम किया. इसके बाद बैंकाॅक में हुई इंटरनेशनल तीरंदाजी प्रतियोगिता में सिल्वर मेडल अपने नाम कर चुकी हैं. सिंपी कहती हैं : उनका सपना ओलिंपिक में मेडल जीतना है. भारत और झारखंड का नाम रोशन करना है.

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