निशा ने भारत को कबड्डी में दिलाया गोल्ड

पिता की मौत के बाद मां ने दूध बेचकर पाला

लाजवाब रेडर है निशा

खेलपथ प्रतिनिधि

चण्डीगढ़। बिजली का काम करने वाले पिता की सात साल पहले जब करंट लगने से मृत्यु हुई तो उस वक्त निशा की उम्र महज 10 साल थी। इकलौती निशा और दो छोटे बेटों का भार मां कांता पर था। मां ने किसी तरह एक भैंस की व्यवस्था कर दूध बेचना शुरू किया। निशा को सोनीपत के गांव चुलकाना में कबड्डी खेलने की छूट दे दी। मां दूध बेचकर बमुश्किल घर चला रही थी और गांव में कबड्डी खेलना निशा के लिए करियर बन गया। महज 17 साल की उम्र में इस बेटी ने न सिर्फ भारतीय टीम में जगह बनाई बल्कि नेपाल में मंगलवार को समाप्त हुए दक्षिण एशियाई खेलों (सैग) में स्वर्ण पदक जीतकर मां को अनमोल तोहफा दे दिया। 

सैग के पदक विजेताओं की खेल मंत्री किरण रिजिजू से मुलाकात से पहले निशा ने कहा कि गांव के कोच राधे उन्हें बवाना के साई सेंटर में कोच कमला सोलंकी के पास लाए थे। उन्हें नहीं पता था कि वह इतनी कम उम्र में ही भारतीय टीम में होगी। यह उनका पहला विदेशी दौरा था। निशा को मां का त्याग भूलता नहीं है। पिता की मौत के बाद उन्होंने काफी संघर्षों के बाद उन्हें और भाईयों को पाला। अब स्वर्ण पदक जीतने के बाद लगता है वह भी मां के लिए कुछ कर सकेंगी।

ईरान से लेना है बदला : निशा बीते वर्ष एशियाई खेलों के लिए लगे भारतीय टीम के कैंप में भी थीं। वह उस दौरान टीम में तो चयनित नहीं हो पाईं, लेकिन अब उनका सपना यही है कि 2022 के एशियाई खेलों में वह भारत के लिए खेलकर जकार्ता में ईरान के हाथों मिली हार का बदला लें। कोच कमला के मुताबिक बीए प्रथम वर्ष की छात्र निशा खतरनाक रेडर हैं। यह स्वर्ण उनके करियर को नई दिशा देगा।
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