पिता की मौत भुलाने को मंजू रानी बनी मुक्केबाज

विश्व महिला मुक्केबाजी चैम्पियनशिप में जीता चांदी का पदक

भारत की 19 वर्षीया मुक्केबाज मंजू रानी को विश्व महिला मुक्केबाजी चैंपियनशिप के फाइनल में हार का सामना करना पड़ा। उन्हें रजत पदक से ही संतोष करना पड़ा। पहली बार विश्व चैंपियनशिप में भाग ले रही मंजू ने रविवार को 48 किग्रा भारवर्ग के फाइनल में शानदार खेल दिखाया लेकिन रुसी खिलाड़ी के आगे टिक नहीं पाई।
उन्हें रूस की दूसरी वरीयता प्राप्त खिलाड़ी एकातेरिना पाल्टसेवा के हाथों 4-1 से हार का सामना करना पड़ा। हालांकि इसके बावजूद मंजू ने इतिहास के पन्नों में अपना नाम दर्ज करा लिया। मंजू 18 सालों बाद दूसरी ऐसी मुक्केबाज बन गई हैं जिसने अपने पहले ही वर्ल्ड चैंपियनशिप में फाइनल में जगह बनाई है। 
45-48 किग्रा वर्ग में शनिवार को थाईलैंड की चुकमत रकसत को 4-1 से मात देकर मंजू रानी ने फाइनल में जगह बनाई थी। पहले राउंड में धीमी शुरुआत करने वाली मंजू ने बाद में आक्रामक खेल दिखाया बाद में ताबड़तोड़ मुक्के बरसाते हुए 4-1 से फैसला उन्हीं के पक्ष में गया। कभी हरियाणा की ओर से खेलने वाली मंजू ने कुछ समय से पहले ही पंजाब की ओर से खेलना शुरू किया था, इसके बाद उनके खेल में सुधार आया। मगर इस स्वर्णिम कहानी के पीछे मंजू की जी-तोड़ मेहनत और कथक परिश्रम छिपा हुआ है।
मंजू के पिता भीम सेन की नौ साल पहले पेट के कैंसर से मृत्यु हो गई थी। वह सीमा सुरक्षा बल में हवलदार थे। ज्यादातर दूरदराज इलाकों में ही तैनात रहने वाले भीम सेन परिवार के साथ ज्यादा समय नहीं बीता पाते थे। पिता की मौत के बाद मंजू की मां इस्वती पर अतिरिक्त जिम्मेदारियां आ गईं। पति की मुट्ठी भर पेंशन के पैसों से ही घर चलाना पड़ता था। पिता की असमय मृत्यु के बाद ही मंजू ने बॉक्सिंग ग्लव्स पहने। मंजू ने बताया कि मुक्केबाजी से ही वह अपने पिता की मृत्यु के सदमे से बाहर आ सकी। बॉक्सिंग से पहले मंजू कबड्डी खेला करती। मंजू का मुक्केबाजी में आना मात्र एक संयोग था। मंजू के पिता के दोस्त, साहब सिंह ने बच्चों को दौड़ के लिए अपने खेत के आसपास की जमीन को एथलेटिक ट्रैक का रूप दे दिया। बाद में साहब सिंह ने कुछ मुक्केबाजी वीडियो देखने के बाद, गांव की 20 लड़कियों को मुक्केबाजी के लिए आश्वस्त किया, मंजू उनमें से एक थी।

2012 में मंजू के करियर में टर्निंग आया। कोच सूबे सिंह बेनीवाल ने रोहतक में मिट्टी के गड्ढे में प्रशिक्षण ले रही लड़कियों में से मंजू को देखा। कोच ने जो देखा उससे वह बहुत प्रभावित हुए, जिसके बाद उन्होंने मंजू को प्रशिक्षण देना शुरू किया। मंजू रानी ने स्ट्रांजा मेमोरियल बॉक्सिंग चैंपियनशिप में रजत पदक जीता, जहां वह फाइनल में फिलीपींस की जोसी गेबुको से हार गई। इंडिया ओपन में कांस्य पदक जीतने से पहले रानी ने थाईलैंड ओपन में कांस्य पदक जीता। भारतीय महिला टीम के मुख्य कोच और 2002 के कॉमनवेल्थ गेम्स के स्वर्ण पदक विजेता मोहम्मद अली कमर ने शिविर में मंजू के शुरुआती दिनों को याद किया। उन्होंने कहा कि जब वह पहली बार राष्ट्रीय शिविर में आईं थीं, तब हमें पता था कि वह एक अच्छी बॉक्सर है, लेकिन हमें बहुत सी चीजों पर काम करना था, हमने उसकी तकनीक पर बहुत काम किया, यह उसका दृढ़ संकल्प था, जो उसे दूसरों से अलग बनाता है।

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