मानसी के जज्बे से दिव्यांगता पराजित

पी.वी. सिंधु की अप्रत्याशित कामयाबी से ठीक एक दिन पहले स्विट‍्ज़रलैंड के बासेल शहर में ही विश्व पैरा बैडमिंटन चैंपियनशिप की महिला एकल स्पर्धा में भारत की मानसी जोशी ने स्वर्ण पदक जीता। उसकी इस बड़ी कामयाबी की चर्चा मीडिया में वैसे नहीं हुई जैसी पीवी सिंधु के स्वर्ण पदक की हुई। मानसी वर्ष 2011 में एक ट्रक की चपेट में आकर अपना एक पांव गवां बैठी थी। बड़ी सर्जरी के बाद उसका एक पैर काटना पड़ा था। करीब दो माह अस्पताल में रहने के बावजूद उसने अपने सपने मुरझाने नहीं दिये। आठ साल के कठिन परिश्रम, प्रशिक्षण और अभ्यास के बाद वैश्विक स्तर पर स्वर्णिम सफलता हासिल कर ली। ऐसा अदम्य साहस और मनोबल हर व्यक्ति के लिये प्रेरणा की मिसाल है। संदेश है कि शारीरिक अपूर्णता के बावजूद जीवन में बड़े लक्ष्य हासिल किये जा सकते हैं।
दुर्घटना का शिकार होने से पहले मानसी ने के.जी. कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग से इलेक्ट्रॉनिक में इंजीनियरिंग की डिग्री हासिल की। महाराष्ट्र की मानसी का बचपन से ही बैडमिंटन से अनुराग रहा। पिता भाभा एटॉमिक रिसर्च सेंटर में थे। पढ़ाई के दौरान कई जिला स्तरीय प्रतियोगिताएं जीतीं। लेकिन अचानक हुई सड़क दुर्घटना ने उसके अरमानों पर तुषारापात कर दिया। उसके जीवन की दिशा बदल गई। विडंबना यह रही कि दुर्घटना में घायल होने के तीन घंटे बाद उसे अस्पताल पहुंचाया जा सका। हाथ में भी फ्रैक्चर था। तकरीबन दस घंटे बाद आपरेशन थियेटर पहुंचाई जा सकी। करीब बारह घंटे सर्जरी चली। एक पैर काटकर जीवन बचाया जा सका। पचास दिन बाद अस्पताल से लौटने के बाद भी उसके हौसले टूटे नहीं।
दुर्घटना मानसी के अरमानों को रौंद नहीं पायी। मानसी ने मन मजबूत किया और कमजोरी को ताकत बनाने का संकल्प लिया। चार महीने बाद कृत्रिम पैर लगाकर मानसी मैदान में थी। संकल्प के आगे अपूर्णता की चुनौती हारने लगी। लगातार अभ्यास से उसकी खेलने की क्षमता विकसित होने लगी। वर्ष 2014 आते-आते वह पेशेवर खिलाड़ी बन चुकी थी। परिवार ने हर कदम पर उसका साथ दिया। सीमित संसाधनों के बावजूद उसे हैदराबाद स्थित पुलेला गोपीचंद अकादमी में प्रशिक्षण का मौका उपलब्ध कराया।
जल्द ही मानसी की मेहनत रंग लाने लगी। उसकी मेहनत का पसीना महकने लगा। वर्ष 2017 में कोरिया में आयोजित विश्व चैंपियनशिप में कांस्य पदक जीतकर मानसी ने कामयाबी की शुरुआत की। अब बी.डब्ल्यू.एफ पैरा वर्ल्ड बैडमिंटन चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक जीतकर मानसी ने अपने सपने साकार किये। मानसी का लक्ष्य अब 2020 में होने वाले टोक्यो पैरा ओलंपिक में पदक हासिल करना है।
नि:संदेह, मानसी की कामयाबी जुनून के ज़ज्बे की मिसाल है। इसके लिये उसने खूब पसीना बहाया। उसने अपनी फिटनेस पर ध्यान दिया। इससे वह जहां अपना वजन कम कर पायी, वहीं उसकी मांसपेशियां मजबूत हुईं। यही पसीना फिर दमकते सोने के रूप में चमका।
मानसी ने बी.डब्ल्यू.एफ. श्रेणी में स्वर्ण पदक हासिल किया है। इस श्रेणी में उन खिलाड़ियों को शामिल किया जाता है, जिनके एक या दो लोअर लिंब्स काम नहीं करते। उन्हें चलने और दौड़ने में संतुलन बनाने में दिक्कत होती है। अब मानसी अगले साल होने वाले पैरा ओलंपिक खेलों में मिश्रित युगल वर्ग में जगह बनाने की कोशिश में है। दिक्कत यह है कि मानसी एसएल-3 वर्ग में खेलती है, मगर यह खेल टोक्यो में होने वाले खेलों का हिस्सा नहीं है। वह अपनी रैंकिंग सुधारने के लिये कड़ी मेहनत कर रही है।
नि:संदेह वैश्विक स्तर पर बेहतर प्रदर्शन करने पर भी दिव्यांग खिलाड़ियों के प्रति खेल संघों, समाज और मीडिया का सकारात्मक प्रतिसाद नहीं रहता जो इन खिलाड़ियों का मनोबल डिगाता है। यदि इन्हें प्रोत्साहन मिले तो ये बेहतर प्रदर्शन कर सकते हैं। मानसी द्वारा स्वर्ण और टीम द्वारा बारह पदक जीतने पर बधाई देते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने प्रदर्शन को प्रेरणादायक बताया। अच्छी बात यह है कि सरकार ने पैरा खिलाड़ियों के लिये नीति में संशोधन करते हुए सुनिश्चित किया कि पदक जीतकर भारत की धरती पर पहुंचते ही उन्हें पुरस्कार दिया जायेगा। साल भर में एक बार होने वाले कार्यक्रम के लिये उन्हें इंतजार नहीं करना पड़ेगा। पैरा बैडमिंटन टीम के लिये 1.82 करोड़ के पुरस्कार खेल मंत्रालय ने तुरंत दिये। नि:संदेह मानसी जोशी की कामयाबी न केवल तमाम दिव्यांगों बल्कि हर हारे मन वाले व्यक्ति के लिये प्रेरणापुंज है कि हौसलों से हर लड़ाई जीती जा सकती है।

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