जब अंजू बॉबी जॉर्ज ने अपनी 'आदर्श' को पीछे छोड़ा

कभी हार न मानने वाली एथलीट

खेलपथ प्रतिनिधि

अंजू बॉबी जॉर्ज भारत की सबसे सम्मानित एथलीटों में से एक हैं। उन्होंने भारत को एक ऐसी उपलब्धि दिलाई, जो अब तक देश की कोई अन्य एथलीट नहीं दिला सकी। जूनियर स्तर पर हिमा ने जरूर कौशल दिखाया है। अंजू जॉर्ज ने ही भारत को एथलेटिक्स में पहला अंतर्राष्ट्रीय मेडल दिलाया। लांग जंपर अंजू ने 2003 में पेरिस में हुए वर्ल्ड एथलेटिक्स चैंपियनशिप में ब्रॉन्ज मेडल जीता था। तब उन्होंने 6.70 मीटर की कूद लगाई थी। वह वर्ल्ड एथलेटिक्स चैंपियनशिप्स में पदक जीतने वाली पहली भारतीय एथलीट हैं।

अंजू बचपन से ही खेलों में काफी एक्टिव थीं। उन्हें इसके लिए अपने पिता का भी अच्छा सपोर्ट मिला। केरल के चांगसेरी में जन्मी अंजू स्कूल में एथलेटिक्स के बेसिक्स सीखे। महज 5 साल की उम्र में ही उन्होंने एथलेटिक्स स्पर्धाओं में हिस्सा लेना भी शुरू कर दिया। फिर अंजू ‘सीकेएम कोरूथोड़े स्कूल’ में गईं, जहां उनके कोच ने उनकी प्रतिभा को अधिक चमकाया। अंजू को हमेशा से भारत की एक स्टार एथलीट जैसा बनना था। वो कोई और नहीं बल्कि पीटी ऊषा हैं। पीटी ऊषा भारत की पहली महिला एथलीट थीं, जो ओलंपिक के फाइनल में पहुंची थीं। बस फिर क्या था, अंजू ने कड़ी मेहनत को अपनी सफलता का मंत्र बना लिया और एक के बाद एक कामयाबी हासिल करना शुरू कीं। अंजू ने स्कूल में एथलेटिक्स के लगभग सभी खेलों में भाग लिया।

अंजू ने अपना एथलेटिक्स करियर हैप्टाथलॉन खेल से शुरू किया। इसके अलावा उन्होंने नेशनल स्कूल गेम्स में हिस्सा लिया। जहां वो 100 मीटर रेस और 400 मीटर रिले रेस में तीसरे नंबर पर रहीं। बहरहाल, हैप्टाथलॉन में 7 अलग-अलग इवेंट्स होते हैं फिर अंजू पूरी तरह जंप करने वाले खेलों पर केन्द्रित हो गयीं। अंजू रेलवे में नौकरी करती थीं। इसके बाद 1998 में वो चेन्नई कस्टम से जुड़ीं। फिर अंजू के रिकॉर्ड बनाने का दौर आया। उन्होंने 20 साल की उम्र में ट्रिपल जंप में नेशनल रिकॉर्ड बनाया। 1999 में नेपाल में हुए साउथ एशियन फेडरेशन कप में उन्होंने सिल्वर मेडल जीता। अंजू इसे अपने करियर का बेस्ट परफॉरमेंस मानती हैं। मगर तब अंजू चोटिल होकर दो साल के लिए ट्रैक से दूर हो गईं। एंकल में गहरी चोट के कारण वो 2000 में सिडनी ओलंपिक में भी हिस्सा नहीं ले सकी थीं।

खैर, अंजू हार मानने वालों में से तो कतई नहीं लगती थीं और उन्होंने इसे बखूबी साबित भी किया। 2001 में उन्होंने चोट से उबरकर लंबी कूद में 6.74 मीटर का रिकॉर्ड कायम किया। इसके बाद अंजू ने भारत के ट्रिपल जंप के राष्ट्रीय चैंपियन राबर्ट बॉबी जॉर्ज से अपना खेल और बेहतर करने करने के लिए मदद ली। आगे चल कर अंजू ने उन्हीं के साथ शादी भी कर ली। वैसे अंजू ने मैनचेस्टर के राष्ट्रमंडल खेलों में रजत पदक जीतकर अपनी पहचान बनाई। ये मेडल जीतने वाली वह भारत की पहली महिला एथलीट थीं। यहां उन्होंने 6.49 मीटर लम्बी छलांग लगाई थी। इसके वाद बुसान एशियाई खेलों में उन्होंने गोल्ड मेडल जीता। यहां उन्होंने 6.53 मीटर की छलांग, 1.8 मीटर प्रति सेकंड की स्पीड से लगाई थी। इसके बाद अंजू ने दुनिया के जाने-माने एथलीट माइक पावेल से ट्रेनिंग ली। उन्होंने अंजू को अमेरिका में कड़ी ट्रेनिंग दी।

2003 में अंजू ने अपनी आदर्श पीटी ऊषा को पीछे छोड़ भारतीय एथलेटिक्स का रिकॉर्ड बना दिया। उन्होंने वर्ल्ड चैंपियनशिप में भारत को एथलेटिक्स में पहला पदक दिलाया। जहां 1960 में मिल्खा सिंह ने रोम ओलंपिक में रेस में वर्ल्ड रिकार्ड बनाया फिर भी मेडल पाने से चूक गए। साथ ही 1984 में एंजिल्स में पी.टी. उषा 0.6 सेकेंड्स से मेडल जीतने से चूक गई थीं। मगर अंजू ने कमाल कर दिया और देशवासियों को गौरव करने का पल दिया। 
अंजू को 13 अगस्त, 2004 को एथेंस ओलंपिक में भारतीय झंडा लेकर चलने का सम्मान मिला। इसमें कर्णम मल्लेश्वरी, लिएंडर पेस, धनराज पिल्लै और अंजलि भागवत का नाम भी सामने आया था। मगर नेतृत्व करने का सम्मान अंजू को ही मिला। अंजू ने लांग जंप के फाइनल तक पहुंचकर देशवासियों की उम्मीद बांधे रखी, लेकिन वो पदक जीतने में कामयाब नहीं रही। भारतीय खेलों में उम्दा योगदान देने के लिए 21 सितम्बर, 2004 में ही उन्हें देश के सर्वोच्च खेल सम्मान ‘राजीव गांधी खेल रत्न’ अवॉर्ड से नवाजा गया। इसमें उनके कोच पति रॉबर्ट बॉबी जॉर्ज को द्रोणाचार्य अवॉर्ड दिया गया था।

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