ईरानी कबड्डी प्रशिक्षक शैलजा की कहानी उन्हीं की जुबानी

जकार्ता एशियाड में ईरान ने भारत को 27-24 से हराकर पहली बार महिला कबड्डी में गोल्ड मेडल जीता है। ईरानी टीम को कामयाबी दिलाने वाली कोच हैं शैलजा जैन धोपडे। महाराष्ट्र के खेल विभाग में 32 साल कोचिंग देने वाली शैलजा ने अपने अनुभव बताते हुए कहा कि भारत को कबड्डी खेल में सावधान रहने की जरुरत है क्योंकि कई देश इस खेल में बेहतर कर रहे हैं। शैलजा ने कहा कि मेरे प्रशिक्षण से कबड्डी का स्वर्ण पदक जीतने वाली ईरानी टीम ने कड़ी मेहनत की बदौलत चैम्पियन भारत का मानमर्दन किया। ईरानी टीम की कोच बनने पर शैलजा कहती हैं कि गुजरात के केवलचंद सुतार ईरान की कबड्डी टीम से जुड़े हुए हैं। वह मेरे भी जानकार हैं। उन्हीं के मार्फत ईरानी कबड्डी फेडरेशन ने 2016 के दिसंबर में मुझे कोचिंग के लिए बुलाया। इससे पहले भी साल 2008 में मुझे वहां से ऑफर आया था, तब सरकारी जॉब में होने के कारण मैंने उसे स्वीकार नहीं किया था लेकिन रिटायरमेंट के बाद यह बाधा नहीं थी। हालांकि, पहले मैंने सोचा कि जाना नहीं है। मैं सोचती थी कि कितना कट्टर देश है ईरान। इतने नियम फॉलो करने पड़ेंगे। अगर कोई गलती हो गई तो मेरे घर वाले मेरा चेहरा देख पाएंगे भी या नहीं! इन सब बातों को लेकर मैं थोड़ा डरी हुई थी। फिर मन में ख्याल आया कि यह बड़ा मौका है खुद को साबित करने का। जितनी बड़ी चुनौती होगी, उसमें कठिनाई भी उतनी ही ज्यादा होगी। मैंने मन को मजबूत करके ईरानी गर्ल्स टीम को कोचिंग के लिए हां बोल दिया।

इसके बाद मेरे घर वाले वहां के बारे में हर तरह की सूचना इकट्ठा करने में जुट गए। भारत के साथ ईरान के कैसे रिलेशन हैं, वहां किस-किस चीज पर प्रतिबंध है, सार्वजनिक जगह पर कैसे कपड़े पहनने हैं, ये सब डेटा मेरे पास थे। वहां महिलाएं हिजाब पहनती हैं और विदेशी महिलाओं को भी सिर पर ओढ़नी ढकनी पड़ती है। खैर, सर ढककर हम कभी-कभी यहां भी रखते हैं। ऐसे तमाम सवाल-जवाब मन में तैर रहे थे।

बड़ी समस्या थी खाने की 
ईरानी टीम को कोचिंग देने के लिए पहली बार मैं 4 जनवरी 2017 को वहां पहुंची। पहली बार मैं वहां दो महीने तक रही। इसके बाद कभी एक महीने तो कभी इससे ज्यादा। एशियाड शुरू होने से पहले लगातार 4 महीने तक रही। सबसे बड़ी दिक्कत मुझे वहां खाने को लेकर हुई। मैंने जब वहां बताया कि मैं वेजिटेरियन हूं तो उनका सवाल था, यह क्या होता है? मैंने उन्हें बताया कि मैं जैन समाज से हूं जिसमें हम मांसाहार के बारे में सोचते भी नहीं हैं। यह सुनकर वहां के लोग हैरान रह गए और कहने लगे कि कोच होकर भी आप नॉनवेज नहीं खाती हैं! मैं जब भी वहां जाती थी तो भारत से थेपले, खाकरा और खाने के दूसरे सामान लेकर जाती थी। उसे भी वहां कम मात्रा में ही खाती थी ताकि ज्यादा-से-ज्यादा दिनों तक बाहर से खाना नहीं मंगाना पड़े। ईरान में मुझे सिर्फ सब्जियों और चावल से काम चलाना पड़ता था। कभी-कभी तो मुझे एक टाइम भूखे रहने पड़ता था, परेशानी तो बहुत थी लेकिन मैंने कभी भी इन चीजों को लेकर ईरान में शिकायत नहीं की। 

सीखी मैंने फारसी 
गर्ल्स टीम से बात करने और उन्हें सिखाने के लिए मैं बेसिक अंग्रेजी बोलती थी लेकिन खिलाड़ियों को बेसिक अंग्रेजी भी नहीं आती थी। न ईरानी खिलाड़ी मेरी बात समझ पाती थीं और न मैं उनकी। उनकी टेक्निकल मैनेजर हमारे बीच ट्रांसलेटर बनीं लेकिन वह भी अच्छी कम्यूनिकेटर नहीं थीं। वह कई बार गलत अनुवाद करती थीं, यह और भी खतरनाक था। इसके बाद मैं उन्हें हर चीज डेमो देकर सिखाने लगी लेकिन परेशानी अभी भी बनी हुई थी। इससे निपटने के लिए मैंने गर्ल्स टीम से काम लायक फारसी सीखी। जब हमारी कम्यूनिकेशन बेहतर हो गई तो ट्यूनिंग भी जम गई। 

गिफ्ट में गोल्ड मांगा 
लड़कियों को जब भी खेल के दौरान चोट लगती थी तो मैं बहुत अपसेट हो जाती थी। उनका आयुर्वेदिक तरीके से इलाज करती थी। चोट पर हल्दी लगाती थी। कोचिंग के बाद भी उनका पूरा ध्यान रखती थी। वे मुझसे अक्सर कहती थीं कि आप हमारी मां की तरह हैं। हमारे बीच में बहुत अच्छी बॉन्‍डिंग हो गई थी। मैं उनसे कहती थी कि मुझे खाली हाथ मत भेजना तो वह मेरे लिए गिफ्ट लाती थीं। फिर मैं उन्हें समझाती थी कि मुझे ये सब नहीं, एशियाड में गोल्ड मेडल चाहिए। जब तुम गोल्ड जीत जाओगी तो मुझे बहुत अच्छा लगेगा। 

जश्न नहीं मनाऊंगी 
मेरी कोचिंग की सहायता से भले ही ईरान ने एशियाड में गोल्ड मेडल जीत लिया लेकिन मैं इस कामयाबी का जश्न नहीं मनाना चाहती। आखिर मेरा भारत जो हारा है। मेरे लिए एक तरफ खुशी है तो दूसरी तरफ गम। ईरानी कबड्डी फेडरेशन की एक ही मांग थी कि हमें बस गोल्ड चाहिए। इसके लिए आपको जो चाहिए, वह मिलेगा। मुझे उन लोगों ने 45 बेस्ट लड़कियों की टीम दी और कहा कि आप इनमें से बेस्ट टीम चुनना। ये लड़कियां उन्होंने अपने यहां चलने वाली लीग में से चुनी थीं। मुझसे कहा गया कि आपके काम में कोई दखल नहीं देगा, न ही किसी का दबाव होगा सिलेक्शन पर। इससे मेरी जिम्मेदारी और बढ़ गई। उन लोगों को मुझ पर बहुत विश्वास था। भारत में तो जिले की टीम भी आप खुद नहीं चुन सकते। 

जो मांगा, वह मिला 
मैंने टीम को बेस्ट बनाने के लिए जो मांगा, वह मुझे मिला। मैंने फिजियो, डायटिशन, साइको, 2 असिस्टेंट कोच और 2 मैनेजर मांगे, जो मुझे मिले। मैंने कहा क‍ि कोचिंग समंदर किनारे होनी चाहिए, इसका प्रबंध भी किया गया। इसके अलावा मांगने पर स्विमिंग पूल और ट्रैक भी मिला। 

अटैक कम, डिफेंस ज्यादा सिखाया 
ईरानी गर्ल्स फिटनेस में बहुत अच्छी हैं। खेलते समय वे अटैक ज्यादा करती थीं। मैंने उनके पुराने मैच के विडियो देखे। उनकी टीम 15 पॉइंट की लीड लेने के बाद आखिरी के 3 मिनट में हार जाती थी। यही उनकी बड़ी समस्या थी। इन्हें बैलेंस करने के लिए मैंने डिफेंस पर फोकस किया। ईरानी गर्ल्स के स्किल्स कमजोर थे। खिलाड़ी विपक्षी टीम की रणनीति को भांप नहीं पाती थीं। वे बिल्कुल भी अंदाजा नहीं लगा पाती थीं कि सामनेवालों का अगला दांव क्या हो सकता है। असल में उनकी टीम ब्लाइंड गेम खेलती थी। इन सभी कमजोर पक्षों को मजबूत करने के लिए मैंने काम किया। उन्हें तकनीकी रूप से मजबूत किया। उनकी आक्रमकता को कम किया। उनके दिमाग को शांत करने के लिए योग, प्राणायाम और ध्यान करवाया। 

डेढ़ साल में 14 कैंप 
मैंने वहां डेढ़ साल में 14 कैंप लगाकर गर्ल्स टीम को ट्रेनिंग दी। एक कैंप 15 दिन का होता था। इस दौरान खिलड़ियों को हर तरह की ट्रेनिंग दी जाती थी। ट्रेनिंग के बाद सभी को स्विमिंग पूल में अभ्यास कराती थी। प्लेयर्स की सिर्फ 2 गलतियां माफ थीं। इसके बाद उनको पनिशमेंट मिलती थी। हर कैंप में मैं 45 लड़कियों में से 2 लड़कियों को बाहर करती गई और आखिरी कैंप में मेरे पास बेहतरीन 18 प्लेयर्स थीं। 

पुराने वीडियो देखकर रणनीति बनाई 
रात को खाना खाने के बाद हम अगले दिन के खेल की प्‍लान‍िंग करते थे। अपने पुराने मैच के विडियो देखते थे। जिन टीमों से मैच होना है, उनके विडियो देखकर, उसका विश्लेषण करते थे। फिर दूसरी टीमों के मैच के हिसाब से हम रणनीति बनाते थे। मैं उन्हें बताती थी कि कब हमें पॉइंट लेना है। मुझे पता था कि अगर भारत से मैच होगा तो भारतीय टीम की कमजोरी क्या होगी, इसका फायदा मुझे फाइनल में मिला। 

ट्रेनिंग के दौरान 9वें कैंप में मिला ट्रंप कार्ड 
45 लड़कियों के ग्रुप में 5 लड़कियां लेफ्ट पोजिशन पर खेलती थीं। मैं इन पांचों से ही खुश नहीं थी। मैं एकदम बेस्ट चाहती थी जो इनमें नहीं था। इसी बीच ईरानी टीम के पुराने विडियो देखने पर एक लड़की गाजल खलास दिखी जिसमें मुझे कुछ अलग दिखा। मुझे टीम में उसकी जरूरत महसूस हुई। वह किसी भी पोजिशन पर अपना बेस्ट दे सकती थी। हालांकि, वह लड़की लीग में नहीं खेली थी, इसलिए उसका चयन टॉप 45 में नहीं हुआ था। बावजूद इसके ईरानी फेडरेशन से मैंने उसकी मांग की। 9वें कैंप में जाकर वह लड़की मुझे मिली। वह बेहतरीन रेडर और कवर थी। इतनी मजबूत लड़की मैंने आज तक नहीं देखी। ईरान को गोल्ड जिताने में उस लड़की का अहम रोल रहा है। एशियाड में उसने सबसे अच्छा खेल दिखाया। 

ईरानी खिलाड़ियों को योग सिखाया 
योग में मैंने उन्हें कपालभाति, अनुलोम विलोम समेत कई दूसरे आसन सिखाए। इसके अलावा उनको ऊँ का उच्चारण भी कराती थी। इससे सांस पर अच्छा कंट्रोल होता है। मैंने उन्हें मेडिटेशन भी खूब कराया। ईरानी खिलाड़ियों ने कभी इसका विरोध नहीं किया। वे तो सिर्फ अपने खेल की बेहतरी चाहती थीं। 

मैट को आदर दिया 
मैं जब भी कबड्डी के मैट पर जाती थी तो उसे हाथ से छूकर सिर से लगाती थी। मुझे देखकर वहां की खिलाड़ी भी ऐसा करने लगीं। जब उन्होंने इसके बारे में पूछा तो मैंने बताया कि इससे हम अपने मैदान और खेल को आदर देते हैं। इससे हमारा हौसला बढ़ता है। हमें जीतने की प्रेरणा मिलती है। हम अपनी जीत की कामना करते हैं। 

कोचिंग टाइमिंग 
सुबह 5 से 7 बजे: फिटनेस क्लास 
10 से 12 बजे: कबड्डी कोचिंग 
दिन में 12 से 1 बजे: स्विमिंग और सोना बाथ 
शाम को 5 से 7:30 बजे: कबड्डी कोचिंग 
रात 9 से 10 बजे: दूसरी टीमों की विडियो अनैलेसिस 

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