क्रिकेट कमेंट्री के ईमानदार हस्ताक्षर पद्मश्री सुशील दोशी

मध्य प्रदेश के वाणी सरताजों को खेलपथ का सलाम

नवीन श्रीवास्तव

ग्वालियर। क्रिकेट अब भारत की आत्मा बन चुकी है। आलम यह है कि टीम इंडिया जीते या फिर पराजय का वरण करे, क्रिकेट मुरीद अपने सितारों पर रंज न कर उनसे अगाध लगाव रखते हैं। क्रिकेट को जन-जन के बीच लोकप्रियता दिलाने में कमेंटेटरों का अमूल्य योगदान है। यह समूचे मध्य प्रदेश के लिए गौरव की बात है कि यहां वाणी के एक से बढ़कर एक ईमानदार हस्ताक्षर हैं, जिनमें पद्मश्री सुशील दोशी का कोई जवाब नहीं है।    

हाल ही में ग्वालियर के नए नवेले श्रीमंत माधवराव सिंधिया स्टेडियम में आयोजित मध्य प्रदेश लीग-सिंधिया कप सीज़न 2 के दौरान जाने-माने प्रतिष्ठित कमेंटेटर पद्मश्री सुशील दोशी से मुझे रूबरू होने का मौका मिला। मैं बहुत-बहुत आभार व्यक्त करना चाहूंगा सुशील दोशी का जिन्होंने समय निकाल कर मुझसे लम्बी बातचीत की और कमेंट्री विधा से जुड़े तमाम पहलुओं पर चर्चा के साथ अपनी कमेंट्री से जुड़े कई रोचक संस्मरण भी सुनाए।

ख़ासतौर से उन्होंने एक कमेंट्स का उल्लेख करते हुए दिल को छू लेने वाला संस्मरण सुनाते हुए कहा कि आपको पता है मुझे अपने लिए सबसे अच्छा कमेंट क्या लगा। श्री दोशी ने बताया कि जब एक वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी ने मुझसे कहा कि आपकी आवाज एक ईमानदार आवाज है,  इससे बड़ा कमेंट मैंने अपनी ज़िन्दगी में नहीं सुना। वाकई उनकी खनकती आवाज़ में जो मिठास और पारदर्शिता का अहसास होता है वो उनकी सादगी, नियमित दिनचर्या, विनम्रता और कार्य के प्रति ईमानदारी से कहीं न कहीं छनकर आती हुई सी प्रतीत होती है। तभी तो जब वे कमेंट्री करते हैं तो लगता है जैसे माइक्रोफ़ोन से उनकी गहरी दोस्ती हो या फिर जन्म-जन्मांतर का कोई नाता हो या फिर माइक से कोई साजिश हो।

बहरहाल, सुशील दोशी जी के कई और रोचक और प्रेरक संस्मरणों में से एक का और उल्लेख करना चाहूंगा। बचपन में ब्रेबोर्न स्टेडियम मुंबई में जब काफी मेहनत मशक्कत और प्रयास के बाद उन्हें टेस्ट मैच में आखिर एक दिन मैच देखने का मौका मिल गया। मैच के दौरान उनकी निगाह कमेंटेटर बॉक्स पर गई तो उनको लगा ये तो बहुत अच्छी जगह है जो पिच की बिल्कुल सीध में भी है। उस समय उन्होंने सोचा कि क्या कभी उन्हें भी यहीं से कमेंट्री करने का अवसर मिल सकता है? और आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि सुशील दोशी ने अपने जीवन के पहले मैच की कमेंट्री ब्रेबोर्न स्टेडियम मुंबई से ही की।

वैसे इसमें कोई दो राय नहीं कि क्रिकेट की लोकप्रियता और उसे आगे बढ़ाने में कमेंट्री का अहम योगदान रहा है। मैच का आंखों देखा हाल रोचक और अनूठे अंदाज़ में सुनाकर कई दिग्गज कमेंटेरों ने उस मुकाबले को और जानदार बना दिया। इन्हीं दिग्गज कमेंटेरों में से एक हैं सुशील दोशी। हिन्दी क्रिकेट कमेंट्री की जब भी बात होती है तो सुशील दोशी का नाम हर ज़ुबां पर सबसे पहले आता है। यह गौरव की बात है कि देश के शीर्ष कमेंटेटरों में से एक सुशील दोशी मध्य प्रदेश से हैं और वह देश के एकमात्र ऐसे वाणी सरताज हैं जिनके नाम पर होल्कर स्टेडियम में कमेंटेटर बॉक्स है।

अधिकांश क्रिकेट फ़ैंस भलीभांति वाकिफ़ हैं कि पिछले पांच दशक से कमेंट्री में रचे-बसे सुशील दोशी मूलतः इंदौर के रहने वाले हैं। मैं अपने आपको सौभाग्यशाली समझता हूं कि कई मैचों में मुझे जोशी जी के साथ माइक शेयर करने का, आंखों देखा हाल सुनाने का सुअवसर मिला है। सौभाग्यशाली इसलिए कि कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि जिनकी कमेंट्री हम बचपन में सुनते थे, जिनकी कमेंट्री के हम दीवाने थे, जिनकी कमेंट्री सुनने का बेसब्री से इंतजार रहता था, उस बड़ी शख्सियत के साथ मैं भी कभी कमेंट्री करूंगा।

यहां याद आता है रेडियो का वो सुनहरा दौर, जब मैच की ताजा स्थिति जानने का मुख्य माध्यम रेडियो ही हुआ करता था। टेस्ट मैचों का देश-विदेश के ऐतिहासिक मैदानों से आकाशवाणी द्वारा प्रसारित लाइव कमेंट्री सुनने का लोगों में एक जुनून सा रहता था। आंखों देखा हाल सुनने वाले लोगों में ये जुनून बढ़ाने में सबसे अहम नामों में से एक रहा सुशील दोशी का। इस युग में सुशील दोशी जी के साथ जिन हिन्दी कमेंटटरों ने अपनी आकर्षण व उत्कृष्ट कमेंट्री शैली से अपार लोकप्रियता हासिल कि उनमें जसदेव सिंह, डॉ. मुरली मनोहर मंजुल, रवि चतुर्वेदी और स्कंद गुप्त जैसे कुछ प्रमुख नाम याद आते हैं।

इन सभी दिग्गज कमेंटेटरों की सफलता का मूलमंत्र रहा इनकी जीवंत कमेंट्री। जीवंत यानी आपको मैच का आंखों देखा हाल सुनकर ये अहसास होने लगे कि मैच जैसे आपकी आंखों के सामने ही चल रहा हो। आज भी श्रोताओं का एक बड़ा वर्ग है जो टेलीविजन की अपेक्षा रेडियो कमेंट्री सुनना पसंद करता है। संजय बनर्जी और विनीत गर्ग जैसे कमेंटेटरों के लिए आज श्रोताओं की बड़ी दीवानगी देखी जाती है। कुल मिलाकर क्रिकेट की लोकप्रियता और हद से बढ़कर उसके प्रति दीवानगी के पीछे कमेंट्री का एक अलग ही रोल रहा है।

मध्यप्रदेश में क्रिकेट कमेंट्री में दिए गए योगदान की बात करें तो पद्मश्री सुशील दोशी की अगुवाई में कुछ ऐसे कमेंटेटर हैं जो कमेंट्री के क्षेत्र में अपना नाम रोशन कर रहे हैं। इन कमेंटेटरों में से एक नाम है सुनील वैद्य का। ये बात अलग है कि अब वे भोपाल से मुंबई शिफ्ट हो गए हैं। भोपाल से प्रशांत सेंगर, पद्म भंडारी और वर्तमान में विकास सिंह कमेंट्री में अपनी भूमिका का बखूबी निर्वहन कर रहे हैं।

भोपाल से ही आने वाले एक शानदार कमेंटेटर दामोदर आर्य का उल्लेख किए बिना बात अधूरी सी लगती है। यूं तो दामोदर भाई विभिन्न स्पोर्ट्स इवेंट की कमेंट्री करने में निपुण हैं, लेकिन अपनी मेहनत व लगन से वे अपने आपको क्रिकेट कमेंट्री के क्षेत्र में बखूबी स्थापित कर चुके हैं। भेल से लम्बे अर्से तक अंग्रेज़ी कमेंट्री के लिए एक जाना-पहचाना व प्रतिष्ठित नाम रहा स्वर्गीय जेपी नारायण साहब का। मैं तो उनकी ज़बरदस्त कमेंट्री का कायल था। उनकी लरजती-गरजती प्रवाहयुक्त एनर्जेटिक कमेंट्री के क्या कहने। साथ ही क्रिकेट की गहरी समझ के समन्वय ने जेपी नारायणन को एक बड़े कमेंटेटर के रूप में स्थापित कर दिया। ये मेरा सौभाग्य रहा कि आकाशवाणी के लिए हिन्दी कमेंटेटर के रूप में मेरा पहला वनडे इंटरनेशनल मैच जेपी नारायणन साहब के साथ मई,1998 में रहा।

वैसे इसके दो वर्ष पूर्व रेडियो पर कमेंटेटर के रूप में मेरा पदार्पण इंटरनेशनल मैच के साथ ही हुआ था लेकिन वो मैच भारत और दक्षिण अफ्रीका की यूथ टीमों के बीच हुआ था। एक समय था जब आकाशवाणी रीजनल लेवल पर अधिकांश रणजी ट्रॉफी मैचों की लाइव कमेंट्री करता था। इस दरम्यान इंदौर में खेले गए कई रणजी ट्रॉफी मैचों की कमेंट्री के दौरान इंदौर और देवास के कुछ कमेंटेटरों का अच्छा सान्निध्य प्राप्त हुआ, जिनमें विजय रॉय, सुशील पगारे और संजय आचार्य शामिल हैं। उस समय एक एक्सपर्ट कमेंटेटर ज़रूर साथ रहते थे और इस भूमिका में संजय जगदाले जी के साथ काफी कुछ तकनीकी बातें सीखने को मिली।

कमेंट्री के क्षेत्र में आगे आने के लिए भोपाल, इंदौर, उज्जैन, जबलपुर, मुरैना, शिवपुरी और छतरपुर सहित अन्य स्थानों से भी बहुत सी युवा प्रतिभाएं लगातार कठिन परिश्रम कर रही हैं। अगले आलेख में मेरी कोशिश रहेगी कि हिन्दी कमेंट्री को लेकर कुछ और बिंदुओं पर आपसे चर्चा करें। ख़ासतौर से कमेंट्री तब और अब एक तुलना, समय के साथ बदलाव और चुनौतियां।

(लेखक नवीन श्रीवास्तव स्वयं एक आला दर्जे के कमेंटेटर हैं)

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