थांग-टा में बिहार के खिलाड़ियों ने रचा इतिहास, जीते दो स्वर्ण

खेलो इंडिया यूथ गेम्सः इस खेल में मणिपुर का दबदबा
खेलपथ संवाद
गया/पटना। मणिपुर की पारम्परिक मार्शल आर्ट थांग-टा जो खेलो इंडिया यूथ गेम्स में शामिल पांच स्वदेशी खेलों में से एक है, बुधवार को गया के बिहार इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन एंड रूरल डेवलपमेंट में समाप्त हुई। मेजबान बिहार ने इतिहास रचते हुए पहली बार दो स्वर्ण पदक जीतकर कीर्तिमान स्थापित किया, जबकि मणिपुर ने सबसे ज्यादा तीन स्वर्ण पदकों के साथ अपना दबदबा बनाए रखा।
बिहार की ओर से प्रिय प्रेरणा और माहिका कुमारी ने स्वर्ण पदक जीतकर राज्य को गौरवान्वित किया। कुल आठ स्वर्ण पदकों में से मणिपुर ने तीन, बिहार और असम ने दो-दो, जबकि मध्य प्रदेश ने एक स्वर्ण पदक जीता। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारत सरकार थांग-टा, मलखम्ब, गतका, कलरिपयट्टु और योगासन जैसे पारंपरिक स्वदेशी खेलों को लोकप्रिय बनाने के लिए प्रतिबद्ध है। भारत 2036 ओलम्पिक की मेजबानी के लिए प्रयासरत है और अगर ऐसा हुआ तो इन खेलों को ओलंपिक में जगह बनाने का प्रयास किया जाएगा।
थांग-टा का सफर और हुइद्रोम प्रेमकुमार की भूमिका
70 वर्षीय हुइद्रोम प्रेमकुमार, जो थांग-टा के पुनरुत्थान के मुख्य स्तंभ रहे हैं, ने खेल की यात्रा पर प्रकाश डाला। वह कहते हैं, “1891 में ब्रिटिश सरकार ने इस खेल को प्रतिबंधित कर दिया था क्योंकि यह उनके लिए चुनौती बन रहा था। 1930 में एक स्थानीय राजा के प्रयासों से इसे पुनर्जीवित किया गया और फिर मेरे गुरु राजकुमार सनाहान ने इसकी बागडोर संभाली।”
1988 में सनाहान के निधन के बाद, प्रेमकुमार ने इस परंपरा को आगे बढ़ाया। उन्होंने इसे भारत के कोने-कोने में और विदेशों (दक्षिण कोरिया, ईरान) तक पहुँचाया। 2021 में जब इसे खेलो इंडिया यूथ गेम्स में शामिल किया गया, तब इस खेल को नई पहचान मिली।
प्रेमकुमार ने कहा, “मैंने अपनी पूरी ज़िंदगी थांग-टा को समर्पित कर दी है। हम जहाँ हैं, उस पर गर्व है, लेकिन अभी बहुत कुछ करना बाकी है। स्थानीय मार्शल आर्ट्स को प्राथमिकता मिलनी चाहिए। दूसरों का अपमान नहीं, लेकिन अपनी परंपरा को ज़्यादा समर्थन मिलना चाहिए।”
थांग-टा में दो वर्ग शामिल थे: फुनबा अमा: पारंपरिक संस्करण जिसमें तलवार (चैबी) और ढाल (चुंगोई) का उपयोग होता है।
फुनबा अनीशुबा : प्रेमकुमार द्वारा विकसित संस्करण, जिसमें ढाल नहीं होती, लेकिन किकिंग की अनुमति होती है। 25 राज्यों के 128 खिलाड़ियों ने चार भार वर्गों (-52 किलोग्राम, -56 किलोग्राम, लड़कियाँ; -56 किलोग्राम, -60 किलोग्राम लड़के) में भाग लिया। 12 से 14 मई तक चले इस तीन दिवसीय आयोजन में प्री-क्वार्टर फाइनल से लेकर फाइनल तक रोमांचक मुकाबले हुए।
बिहार के कोच सारंगथेम टीकेन सिंह, जो मूल रूप से मणिपुर से हैं, ने बिहार की सफलता में अहम भूमिका निभाई। कोच सिंह ने कहा, “बिहार के बच्चे बहुत प्रतिभाशाली हैं। हमने राजगीर में दो महीने का कैंप किया था। उन्होंने बड़ी मेहनत की और बहुत तेज़ी से सीखा।”