विशेषज्ञों ने बढ़ाया भावी दंत चिकित्सकों का ज्ञान और कौशल

के.डी. डेंटल कॉलेज में हुई सतत दंत चिकित्सा शिक्षा पर चर्चा

मथुरा। भावी दंत चिकित्सकों के ज्ञान, कौशल और पेशेवर प्रदर्शन को बनाए रखने, उसे विकसित करने तथा बेहतर बनाने के लिए के.डी. डेंटल कॉलेज एण्ड हॉस्पिटल के कंजर्वेटिव डेंटिस्ट्री और एंडोडोंटिक्स विभाग द्वारा पीएफए ​​इंडिया सेक्शन के साथ मिलकर सतत दंत चिकित्सा शिक्षा (कंटीन्यूइंग डेंटल एज्यूकेशन) पर कार्यक्रम का आयोजन किया गया। इस सी.डी.ई. में प्रतिष्ठित वक्ता डॉ. सुकृति सक्सेना ने "स्कल्प्टिंग स्माइल्स: ए गाइड टू डेंटल बर किट्स" विषय पर अपने अनुभव साझा किए।

सतत दंत चिकित्सा शिक्षा के शुभारम्भ से पहले के.डी. डेंटल कॉलेज के डीन और प्राचार्य डॉ. मनेष लाहौरी ने डॉ. सुकृति सक्सेना का स्वागत कर आयोजन के उद्देश्यों पर प्रकाश डाला। डॉ. लाहौरी ने कहा कि दंत चिकित्सा शिक्षा का इतिहास बहुत व्यापक है, जिसमें विभिन्न क्षेत्रों और देशों में तेजी से बदलाव तथा विविधताएं देखने को मिलती हैं। दंत चिकित्सा शिक्षा ने शिक्षण और सीखने के अनुभवों को समृद्ध करने के लिए प्रौद्योगिकी को शामिल किया है। इसमें छात्र-छात्राओं को वर्चुअल रियलिटी सिमुलेशन, डिजिटल इमेजिंग, 3डी प्रिंटिंग और इंट्राओरल स्कैनर जैसे डिजिटल उपकरणों के प्रभावी उपयोग पर प्रशिक्षण देना शामिल है। ये प्रौद्योगिकियां छात्र-छात्राओं को अधिक इंटरेक्टिव और इमर्सिव सीखने के अवसर प्रदान करती हैं। इन उपकरणों को पाठ्यक्रम में एकीकृत करने से नैदानिक ​​क्षमताओं, उपचार योजना और रोगी प्रबंधन में वृद्धि होती है।

डॉ. सुकृति सक्सेना ने "स्कल्प्टिंग स्माइल्स: ए गाइड टू डेंटल बर किट्स" पर अपने अनुभव साझा करते हुए कहा कि हर माता-पिता हमेशा यह सुनिश्चित करने का प्रयास करते हैं कि उनके बच्चों में मौखिक स्वच्छता की सर्वोत्तम सम्भव आदतें हों। सर्वोत्तम प्रयासों के बावजूद कुछ बच्चों को डेंटल फिलिंग की आवश्यकता हो सकती है, चाहे वह कैविटी या अन्य दंत समस्याओं के कारण हो। कई माता-पिता के लिए उनके बच्चे के डेंटल फिलिंग प्रक्रिया से गुजरने का विचार तनावपूर्ण हो सकता है, लेकिन उन्हें तनाव नहीं लेना चाहिए। आज दंत चिकित्सा क्षेत्र में दांतों की हर समस्या का निदान है। डॉ. सक्सेना ने कहा कि सही डेंटल बर चुनने के दो मुख्य तरीके हैं। पहला या तो आपको जिस आकार की जरूरत है उसकी कल्पना करके या फिर कैटलॉग में कुछ समान ढूंढ़कर, या आईएसओ नम्बर ढूंढ़कर और उनकी तुलना करके। उन्होंने बताया कि डेंटल बर के लिए आईएसओ सिस्टम को रंग और संख्या के आधार पर वर्गीकृत किया जाता है, जो सही बर चुनने की प्रक्रिया को सरल बनाने में मदद कर सकता है।

विभागाध्यक्ष कंजर्वेटिव डेंटिस्ट्री और एंडोडोंटिक्स प्रो. (डॉ.) अजय कुमार नागपाल ने पीएफए ​​इंडिया सेक्शन प्रमुख विजय सिंह का गर्मजोशी से स्वागत किया। उन्होंने दंत चिकित्सा शिक्षा को आगे बढ़ाने में शिक्षा और उद्योग के बीच सहयोग के महत्व पर प्रकाश डाला। मेडिक्यूब्स हेल्थकेयर के डॉ. योगेश शर्मा का विभागाध्यक्ष ओरल पैथोलॉजी प्रो. (डॉ.) उमेश चंद्र ने स्वागत किया। डॉ. सक्सेना ने डेंटल बर किट के विभिन्न पहलुओं उनके प्रकार, डिजाइन, उपयोग और रखरखाव पर विस्तार से प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि वर्गीकरण प्रणाली यह बताती है कि बर किस सामग्री से बना है यानी शैंक की शैली, आकार, खुरदरापन और व्यास। इसका उद्देश्य दंत चिकित्सा के विभिन्न पहलुओं में इष्टतम परिणाम प्राप्त करने के लिए डेंटल बर किट का उपयोग करने की नवीनतम तकनीकों और सर्वोत्तम प्रथाओं पर दंत चिकित्सकों को शिक्षित करना है।

सी.डी.ई. कार्यक्रम में संकाय सदस्यों, एंडोडोंटिक्स, प्रोस्थोडोंटिक्स और पेडोडोंटिक्स विभाग के लगभग दो सौ स्नातकोत्तर के साथ-साथ अंतिम और दूसरे वर्ष के स्नातक छात्र-छात्राओं ने भाग लिया। सी.डी.ई. की सफलता में एंडोडोंटिक्स विभाग की डॉ. आस्था, डॉ. ट्विंकल, डॉ. हिमांशु, डॉ. आकांक्षा, डॉ. श्वेता और डॉ. शिवाली आदि ने अहम योगदान दिया। सत्र के अंत में अतिथि वक्ताओं ने प्रतिभागियों को प्रमाण पत्र प्रदान करते हुए कहा कि हर पेशे में आजीवन सीखना महत्वपूर्ण है लिहाजा भावी दंत चिकित्सक अपने ज्ञान और कौशल में लगातार इजाफा करें।

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