साधु-संतों की सेवा ही दादी मां कांती देवी का धर्म रहा

जीवन भर धर्म-अध्यात्म और सेवाभाव में रहीं लीन
श्रीप्रकाश शुक्ला
जीवन भर साधु-संतों की सेवा में लीन रहीं आर.के. एज्यूकेशनल ग्रुप के अध्यक्ष डॉ. रामकिशोर अग्रवाल की धर्मपारायण मां कांती देवी किसी परिचय की मोहताज नहीं हैं। लगभग 50 साल तक नियमित यमुना स्नान और वृंदावन की परिक्रमा दादी मां के जीवन कार्यों में शामिल रहा। संत प्रवृत्ति दादी मां कांती देवी बहुत ही मिलनसार, मृदुभाषी एवं धार्मिक प्रवृत्ति की शख्सियत थीं। सच कहें तो ब्रज मण्डल में सेवाभाव को समर्पित कांती देवी डेंटल कॉलेज एण्ड हॉस्पिटल तथा कांती देवी मेडिकल कॉलेज-हॉस्पिटल एण्ड रिसर्च सेण्टर दादी मां का ही प्रतिबिम्ब हैं।
वह अब इस दुनिया में नहीं हैं लेकिन समूचा वृन्दावन आज भी उनके सेवाभाव की याद करता है। वह न केवल धार्मिक प्रवृत्ति की थीं बल्कि धर्म-अध्यात्म के कार्यों में बढ़-चढ़कर हिस्सा भी लिया करती थीं। वह साधु-संतों की सेवा को ही अपना कर्तव्य समझती थीं। यह किसी मां के लिए सबसे बड़े सौभाग्य की बात है कि उनके पुत्र डॉ. रामकिशोर अग्रवाल ने जीते जी उनके नाम से दो कॉलेजों कांती देवी डेंटल कॉलेज एण्ड हॉस्पिटल तथा कांती देवी मेडिकल कॉलेज-हॉस्पिटल एण्ड रिसर्च सेण्टर का संचालन किया जोकि चिकित्सा-शिक्षा क्षेत्र में आज ब्रज मण्डल ही नहीं समूचे देश में अपनी विशिष्ट पहचान रखते हैं।
दादी मां कांती देवी का जन्म मथुरा में श्री राधाकिशन सर्राफ के यहां हुआ था। पांच भाईयों (गिरिराज प्रसाद अग्रवाल, प्रभु दयाल अग्रवाल, प्रदीप कुमार अग्रवाल, चंद्रमोहन अग्रवाल, कृष्णमुरारी अग्रवाल) तथा तीन बहनों (सुशीला देवी, निर्मला जिंदल तथा रंजना गर्ग) में यह सबसे बड़ी थीं। यही वजह रही कि इन्हें हर भाई-बहन मां की ही तरह स्नेह देता था। इनके माता-पिता ने बड़े लाड़-प्यार से इनका पालन-पोषण किया। प्रभु की असीम कृपा से इन्हें बचपन में ही रामचरित मानस के तीन काण्ड बालकाण्ड, सुन्दरकाण्ड और अयोध्याकाण्ड कंठस्थ हो गए थे। दादी मां जीवन पर्यंत सुन्दरकाण्ड का पाठ करती रहीं।
समय बीता और इनका विवाह वृन्दावन निवासी श्री गणेशीलाल बजाज के पुत्र श्री हरिदास अग्रवाल के साथ हुआ। इनके चार पुत्र डॉ. रामकिशोर अग्रवाल, अशोक कुमार अग्रवाल, माधव प्रसाद अग्रवाल तथा मुरारीलाल अग्रवाल हैं। दादी मां का गुरु स्थान ब्रज विख्यात भागवत निवास है। आपको दीक्षा श्री श्री 108 कृपासिंधु दास बाबाजी महाराज ने दी थी। दीक्षा देते समय गुरुजी ने दादी मां को अहरनिश हरीनाम और साधु सेवा करने का उपदेश दिया था। जो उन्होंने जीवन भर निभाया और अपने परिवार को भी उक्त उपदेश की शिक्षा दी। दादी मां की सीख को उनका परिवार आज पूरी शिद्दत से निभा रहा है।
दादी मां ने बहुत गरीबी देखी लेकिन साहस, कर्तव्य-निष्ठा तथा जिंदादिली के साथ अपने बेटे-बेटियों की परवरिश की। उन्होंने अपने बच्चों को पढ़ाया और अच्छे संस्कार देते हुए हमेशा आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित किया। वह हर जीव से प्यार करती थीं तथा लोगों के हर कष्ट में हमेशा शामिल रहती थीं। दादी मां अद्भुत प्रतिभा की धनी थीं। उनका जीवन प्रभु प्रेरणा से सराबोर रहा। समय-समय पर उन्हें कभी प्रत्यक्ष तो कभी अप्रत्यक्ष रूप से प्रभुकृपा का अनुभव होता रहा। उन्होंने लगभग 50 साल नियमित सुबह चार बजे यमुना स्नान और वृन्दावन की परिक्रमा लगाई तथा ठाकुर श्रीराधा दामोदरजी, ठाकुर श्रीराधा श्याम सुन्दरजी, ठाकुर श्रीराधा रमणजी, सेवाकुंज एवं निधिवन आदि अनेकों मंदिरों के दर्शन कर घर आकर घर के सभी कार्यों को करते हुए साधु-महात्माओं के लिए प्रसाद तैयार करती थीं।
उनकी सेवा की विशेषता थी, जब भी कोई महात्मा आकर मधुकरी की याचना करता तो वह उनकी इच्छा अनुसार ही सेवा करके अपने आपको धन्य मानती थीं। ब्रज के सभी महात्माओं की वह मां थीं और दादी मां भी अपने को मां मानकर वात्सल्य भाव से सभी साधुओं की सेवा करती थीं। साधु-महात्माओं की सेवा करते करते दादी मां वृद्ध हो चली थीं। सेवा का फल भी प्रभु की कृपारूपी अनुभूतियों से उनको सराबोर करने लगा।
दादी मां को कभी वंशी की धुन सुनाई देती तो कभी प्रभु के नूपुरों की मधुर झंकार, जिसे सुनकर वह अक्सर भाव-विभोर हो जाया करती थीं। एक दिन आप ग्रीष्मकाल के समय वृन्दावन धाम की परिक्रमा लगा रही थीं, शरीर को आनंद का अनुभव होने लगा। वृन्दावन धाम की परिक्रमा में श्याम कुटी का वह स्थान था, एकाएक उन्हें एक वृक्ष पर त्रिभंगु मणिमाला ललित माधुर्य की छटा बिखेरते हुए भगवान श्रीकृष्ण के दर्शन हुए। प्रभु कह रहे थे कि मैया अब तू मेरा केवल भजन कर और जो साधु आयो करै, उनकी सेवा कर, इसी से तू धन्य हो जाएगी। दादी मां कांती देवी के जीवन में इस तरह के अनेकों वाकये घटित हुए।
उस दिन के बाद दादी मां का जीवन पूर्णरूप से बदल गया। आप मध्यरात्रि 12 बजे भजन पर बैठतीं और सुबह 11 बजे तक भजन करती रहतीं। भजन में इतना उमंग था कि वह भजन करते समय किसी से भी नहीं बोलती थीं। उन्हें मानसिक जाप सिद्ध था। जो हर समय उनकी वाणी पर चलता रहता था। बात करते समय भी उनकी वाणी से प्रभुनाम ही निकलता था। आप केवल दो घण्टे सोती थीं और नींद न आने पर महाराज से प्रार्थना करनी पड़ती कि प्रभु दो घण्टे के लिए आप कृपा कर दो ताकि नींद आ जाए।
एक बार बैसाख के महीने में आपके मन में वृन्दावन धाम की दण्डौती परिक्रमा लगाने की इच्छा जागी और उन्होंने अपनी छोटी बहन शीला के साथ दण्डौती परिक्रमा लगानी शुरू कर दी। जब वह दण्डौती परिक्रमा लगा रही थीं तो गर्मी के कारण उनका गला सूखने लगा एवं व्याकुलता बढ़ने लगी। उसी समय उनके पास एक आठ साल का बालक आया और उनको मिश्री एवं कालीमिर्च देकर बोला मैय्या गर्मी बहुत है, ये खाय ले गला तर है जायैगो। उन्होंने कालीमिर्च एवं मिश्री खाई और बालक को देखा तो वह अदृश्य हो चुका था।
इस घटना के बारे में उन्होंने अपने बच्चों को बताया और पश्चाताप हुआ कि प्रभु उनके पास आए तथा अज्ञानतावश उन्हें पहचान न पाई। दादी मां स्वभाव से बहुत कोमल थीं और उन्हें तेज आवाज में बोलना तो आता ही नहीं था। एक दिन राजेन्द्र कुमारजी उनके दर्शन को आए। कुछ समय कुशलक्षेम पूछने के बाद राजेन्द्र कुमार ने दादी मां से जाने की अनुमति मांगी तो उन्होंने आशीर्वाद देते हुए पूछा बेटा तू मोसे गुस्सा तो नाय, इतनी विनम्र थीं दादी मां।
अब दादी मां वृद्ध हो चली थीं, दादाजी का भी निकुंज गमन हो चुका था। अब वह भजन में इतनी मगन रहने लगी थीं कि खाने-पीने का भी ध्यान नहीं रहता। कभी कोई बालक, बेटा-बहू कुछ सांसारिक चर्चा भी करते तो उनसे यही कहतीं बेटा भजन किया करो। जब वह अस्वस्थ रहने लगीं तब उन्होंने सभी से लगभग बोलना ही बंद कर दिया था। उन्हें खाने के लिए भी याद दिलानी पड़ती थी। इस अवस्था में भी उनका जब तक शरीर चला, गुरुपूर्णिमा और गुरुदेव की उत्सव तिथियों में गुरु आश्रम जाकर फूलमाला चढ़ाना एवं गुरुदेव की समाधि की पूजा-अर्चना करना नियमपूर्वक चलता रहा।
यह किसी भी मां के लिए सौभाग्य की बात है कि उनके ज्येष्ठ पुत्र शिक्षाविद् डॉ. रामकिशोर अग्रवाल ने उनके नाम पर दो कॉलेज कांती देवी डेंटल कॉलेज एण्ड हॉस्पिटल और कांती देवी मेडिकल कॉलेज-हॉस्पिटल एण्ड रिसर्च सेण्टर संचालित किए जोकि चिकित्सा-शिक्षा के क्षेत्र में समूचे देश में अपनी विशिष्ट पहचान रखते हैं। इन चिकित्सा संस्थानों से ब्रज क्षेत्र ही नहीं देशभर के हजारों लोगों को स्वास्थ्य लाभ मिल रहा है। ऐसी ममतामयी और धर्मपरायण दादी मां को शत-शत नमन।