गगन गिल ने छुआ साहित्य का गगन

मैं जब तक आई बाहर को मिला साहित्य अकादमी पुरस्कार
श्रवण कुमार बाजपेयी
इक्कीसवीं सदी का 24वां साल विदाई लेने जा रहा है। जो जिस क्षेत्र से अनुराग रखता है वह अतीत की खट्टी-मीठी बातों को जरूर याद करता है। शब्द की दुनिया समृद्ध हो, हर दिन साहित्य आपके पास पहुंचे तथा पुस्तक-संस्कृति को बढ़ावा मिले यही तो हम सब चाहते हैं। हमारे राष्ट्र ने विदा लेते साल में कई क्षेत्रों में बेमिसाल सफलताएं लिखीं तो साहित्य भी रीता नहीं रहा। यह कहने में जरा भी संकोच नहीं कि इस साल ऐसा कुछ नहीं लिखा गया जिसे लीक से हटकर माना जाए। हां, गगन गिल की पुस्तक मैं जब तक आई बाहर को साहित्य अकादमी पुरस्कार के लिए चुने जाने के बाद जरूर चर्चा में आ गई है।
कोई भी राष्ट्र कितनी भी प्रगति कर ले लेकिन यदि वहां का साहित्य समृद्ध नहीं है तथा आवाम उससे अनुराग न रखे तो सब व्यर्थ है। साहित्य के नजरिए से देखें तो भारत लम्बे ऐतिहासिक काल में विश्व गुरु रहा है। हर समयकाल में एक से बढ़कर एक ज्ञानियों ने हमारे राष्ट्र गौरव को बढ़ाया है। साहित्य के नजरिए से विदा लेते साल की सबसे खुशी का पल साहित्य अकादमी पुरस्कारों की घोषणा कहा जा सकता है। बीते दिनों साहित्य अकादमी ने अपने प्रतिष्ठित वार्षिक साहित्य अकादमी पुरस्कार-2024 की घोषणा की। पुरस्कारों की चयन प्रक्रिया 21 भारतीय भाषाओं की निर्णायक समितियों द्वारा सम्पन्न हुई।
इस साल साहित्य अकादमी पुरस्कारों में आठ कविता संग्रह, दो कहानी संग्रह, तीन निबंध, तीन उपन्यास, तीन साहित्यिक आलोचना, एक नाटक और एक शोध की पुस्तक शामिल है। इनमें हिन्दी की मशहूर कवयित्री गगन गिल को "मैं जब तक आई बाहर" के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार दिया जाएगा। ग्रेटर नोएडा निवासी गगन गिल के पति निर्मल वर्मा भी बड़े साहित्यकार थे। उनकी 2005 में मृत्यु हो गई थी। कवयित्री गगन ने "मैं जब तक आई बाहर" पुस्तक को मिलाकर 10 पुस्तकें लिखी हैं। इनके द्वारा इससे अलग प्रमुख अवाक व कैलाश मानसरोवर का यात्रा संस्मरण प्रमुख किताबें हैं। अपनी इस कामयाबी पर गगन का कहना है कि पुरस्कार मिलता या नहीं उन्हें तो अपना लेखन कार्य जारी ही रखना है।
गगन गिल ने कहा कि साहित्य अकादमी पुरस्कारों की घोषणा के बाद उनको काफी अच्छा लग रहा है लेकिन उससे ज्यादा वह हैरान परेशान हुई हैं क्योंकि मैं एकांत में रहना पसंद करती हूं और मैं सोचती थी कि पुरस्कार तो उन लोगों को ज्यादा मिलता है जो आते-जाते ज्यादा हैं। लेकिन पुरस्कार के लिए एक कोने में बैठी लेखिका को भी गिना गया इसके लिए वह साहित्यिक परिवार की आभारी हैं। गगन ने "मैं जब तक आई बाहर" पुस्तक 2018 में लिखी है।
गगन गिल को बचपन से ही कविताओं का शौक है। साहित्य के बारे में उन्होंने बताया कि उनके माता-पिता भी विद्वान थे जो अब इस दुनिया में नहीं हैं। मेरा बचपन उन्हीं के साथ किताबों में बीता। उसके बाद कॉलेज में भी कविताएं लिखीं और सफर शुरू हो गया। अब ये कोई फल कैसे बताए कि वो कच्चे से पक्का कैसे हो गया। किताबें कुछ सोचने के लिए प्रेरित करती हैं। हम सबके जीवन में सुख-दुख आते-जाते हैं, समाज में ऊँच-नीच होती है। एक कवि इन घटनाओं को कैसे पकड़ता है ये सब इस पुरस्कृत पुस्तक से शायद पता चलेगा।
गगन गिल ने युवाओं से ज्यादा से ज्यादा किताबें पढ़ने का आह्वान किया। उन्होंने कहा कि वे युवा समाज को क्या दोष दें कि वो लैपटॉप और मोबाइल के द्वारा सोशल मीडिया पर ज्यादा समय बिताता है लेकिन उसके अंदर भी साहित्य को जानने की भूख रहती है। वो जल्दबाजी में रहता है इसीलिए कच्ची-कच्ची चीजें एक दूसरे से शेयर करता है।
गगन गिल हिन्दी की जानी मानी कवयित्री हैं। उनके कई कविता संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं। इंग्लिश में एमए करने के बाद गगन गिल ने पत्रकारिता के क्षेत्र में पहले अपना करियर शुरू किया था, इसके बाद उन्होंने लेखनी के क्षेत्र में कदम बढ़ाया। उनकी कई कविताएं अमेरिका-इंग्लैंड समेत कई और देशों के यूनिवर्सिटीज में पढ़ाई जाती हैं। साल 1983 में उनकी कविता ‘एक दिन लौटेगी लड़की’ से उन्हें साहित्य जगत में काफी ख्याति मिली। गगन गिल की प्रमुख हिन्दी कविताओं में- एक दिन लौटेगी लड़की, अंधेरे में बुद्ध, थपक थपक दिल थपक थपक, यह आकांक्षा समय नहीं, मैं जब तक आयी बाहर समेत कई और कविता संग्रह शामिल हैं। उन्हें साहित्यिक रचनाओं के लिए भारत भूषण अग्रवाल पुरस्कार, संस्कृति पुरस्कार मिल चुका है।
साहित्य अकादमी ने हिन्दी के लिए प्रतिष्ठित कवयित्री गगन गिल तो अंग्रेजी में ईस्टरिन किरे समेत 21 भारतीय भाषाओं के रचनाकारों को वर्ष 2024 के प्रतिष्ठित साहित्य अकादमी पुरस्कार देने की घोषणा की। अकादमी के सचिव के. श्रीनिवास राव ने कहा कि गिल को उनके कविता संग्रह ‘मैं जब तक आई बाहर’ के लिए सम्मानित किया जाएगा। वहीं अंग्रेजी में किरे को उनके उपन्यास ‘स्पिरिट नाइट्स’ के लिए तथा मराठी में सुधीर रसाल को उनकी आलोचना ‘विंदांचे गुद्यरूप’ हेतु साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया जाएगा। राव के मुताबिक, इनके अलावा संस्कृत में दीपक कुमार शर्मा (कविता संग्रह), राजस्थानी में मुकुट मणिराज (कविता संग्रह), पंजाबी में पॉल कौर (कविता संग्रह), कश्मीरी में सोहन कौल (उपन्यास) और गुजराती में दिलीप झावेरी (कविता संग्रह) समेत अन्य को पुरस्कृत किया जाएगा।
उन्होंने बताया कि अकादमी ने फिलहाल 21 भाषाओं के लिए पुरस्कारों का ऐलान किया है जिनमें आठ कविता संग्रह, तीन उपन्यास, दो कहानी संग्रह, तीन निबंध, तीन साहित्यिक आलोचना, एक नाटक और एक शोध की पुस्तक शामिल हैं। राव ने बताया कि इन पुरस्कारों की अनुशंसा इन भारतीय भाषाओं की निर्णायक समितियों द्वारा की गई तथा साहित्य अकादमी के अध्यक्ष माधव कौशिक की अध्यक्षता में आयोजित अकादमी के कार्यकारी मंडल की बैठक में इन्हें अनुमोदित किया गया।
ये पुरस्कार पिछले पांच वर्षों (एक जनवरी 2018 से 31 दिसम्बर 2022) के दौरान पहली बार प्रकाशित पुस्तकों पर दिए गए हैं। सचिव के मुताबिक, बांग्ला, डोगरी और उर्दू भाषाओं में पुरस्कारों की घोषणा बाद में की जाएगी। विजेता रचनाकारों को आठ मार्च, 2025 को गरिमामय समारोह में सम्मानित किया जाएगा जिसमें एक लाख रुपये की राशि, एक उत्कीर्ण ताम्रफलक और शॉल शामिल है।