सुहास एलवाई को स्वर्ण पदक नहीं जीत पाने का मलाल

कहा- मुझ पर अपेक्षाओं का दबाव था
खेलपथ संवाद
नई दिल्ली।
भारतीय पैरा बैडमिंटन खिलाड़ी सुहास यथिराज ने लगातार दूसरे पैरालम्पिक में रजत पदक जीतकर धाक जरूर जमा दी है लेकिन स्वर्ण पदक न जीत पाने का मलाल भी है। उनका कहना है कि मुझ पर अपेक्षाओं का दबाव था क्योंकि मैं वहां नम्बर एक पोजीशन में उतरा था।
पेरिस में सुहास पुरुष एकल एसएल4 वर्ग के फाइनल में हार गए थे और स्वर्ण पदक लाने से चूक गए थे। सुहास हालांकि रजत लाकर खुश भी हैं और निराश भी क्योंकि वह स्वर्ण पदक का लक्ष्य लेकर पेरिस पैरालम्पिक में आए थे। यह 41 वर्षीय खिलाड़ी विश्व में नम्बर एक खिलाड़ी के रूप में प्रतियोगिता में उतरा था और उनसे पुरुष एकल एसएल4 वर्ग में स्वर्ण पदक जीतने की उम्मीद थी। लेकिन वह सोमवार को खेले गए फाइनल में फ्रांस के लुकास माज़ूर से सीधे गेम में हार गए और उन्हें रजत पदक से संतोष करना पड़ा।
सुहास ने कहा, मैं विश्व का नम्बर एक खिलाड़ी और विश्व चैम्पियन के तौर पर यहां पहुंचा था और मुझ पर अपेक्षाओं का दबाव था। मुझे यहां अच्छा प्रदर्शन करने की उम्मीद थी। मेरा लक्ष्य स्वर्ण पदक जीतना था जो हर खिलाड़ी का सपना होता है। रजत जीतना एक मिश्रित भावना है। स्वर्ण पदक चूकने का दुख और निराशा है। लेकिन जब यह भावना हावी नहीं रहेगी तो तब आपको अहसास होगा कि पैरालम्पिक के लिए क्वालीफाई करना और अपने देश का प्रतिनिधित्व करना बहुत बड़ी बात थी। रजत पदक जीतना भी गर्व की बात है।
सुहास से जब दोनों रजत पदक में तुलना करने के बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा, पहले देश और मुझे विश्वास नहीं था कि हम पैरालंपिक बैडमिंटन में पदक जीत सकते हैं। मुझे नहीं पता था कि मेरा प्रदर्शन क्या होगा। वह एक अलग तरह की भावना थी। दोनों बार मुझे कड़ी चुनौती का सामना करना पड़ा। जैसा कि मैंने कहा पहली बार लोग आपको तब तक इतनी गंभीरता से नहीं लेते जब तक आप शीर्ष स्तर पर अच्छा प्रदर्शन नहीं करते। लेकिन उम्मीदों के साथ खेलना अपने आप में एक अलग तरह का दबाव है।
सुहास भले ही स्वर्ण पदक नहीं जीत पाए लेकिन उन्होंने कहा कि उनके लिए यहां तक का सफर शानदार रहा है। उन्होंने कहा, जब मैंने पैरालंपिक क्वालिफिकेशन से सफर शुरू किया तो मैं एक दो साल तक नहीं खेला था और दुनिया में 39वें नंबर पर था। वहां से मैं शीर्ष 12 तक पहुंचा और फिर लेवल एक टूर्नामेंट के लिए क्वालिफाई किया। इसके बाद मैंने एशियाई पैरा खेलों और विश्व चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक जीता तथा विश्व का नंबर एक खिलाड़ी बना। यह सफर शानदार रहा है।

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