हॉकी के लाल शमशेर की कहानी उसी की जुबानी

नौकरी के लिए खेलना शुरू किया था हॉकी
फिर हुआ इस खेल से प्यार, जीते दो ओलम्पिक पदक
खेलपथ संवाद
नई दिल्ली।
भारतीय हॉकी टीम के फॉरवर्ड शमशेर सिंह अब किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं। उन्होंने पुश्तैनी खेल हॉकी को नौकरी के लिए आत्मसात किया था लेकिन यही खेल एक दिन उनका प्यार बन गया। शमशेर टोक्यो ओलम्पिक और फिर पेरिस ओलम्पिक में कांस्य पदक जीतने वाली टीम का हिस्सा रह चुके हैं। 
शमशेर का हॉकी की राष्ट्रीय टीम में जगह बनाने का सफर आसान नहीं रहा है। उन्हें काफी संघर्ष और कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। कई लोगों के लिए खेल सिर्फ पहचान बनाने का जरिया नहीं होता, बल्कि देश के प्रति जुनून और जिंदगी जीने का जरिया होता है। भारत में जहां क्रिकेट में पैसा, ग्लैमर, पहचान और अच्छे भविष्य की गारंटी है, उस स्थिति में हॉकी या किसी दूसरे खेल के प्रति द्वेष होना आम बात है। 
इन खेलों से प्यार करना और उसे अपनी जिंदगी बना लेना आसान नहीं होता, लेकिन शमशेर सिंह ने न सिर्फ हॉकी से प्यार किया, बल्कि देश को ऊंचाइयों तक पहुंचाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। उन्होंने हॉकी को चुना और सामने आई हर कठिनाइयों का डटकर सामना किया। शमशेर सिंह भारतीय टीम में फॉरवर्ड पोजीशन पर खेलते हैं। शमशेर का जन्म 29 जुलाई 1997 को अमृतसर जिले के अटारी के एक गांव में हुआ था। शमशेर के पिता हरदेव सिंह एक किसान थे और मां हाउसवाइफ। अटारी गांव भारत-पाकिस्तान के अमृतसर बॉर्डर पर है। 
शुरू में हॉकी खेलना शमशेर का बस शौक था। धीरे-धीरे उनका इस खेल के प्रति लगाव बढ़ता गया। 11 साल की उम्र में वह जालंधर आए जहां उन्हें सुरजीत सिंह एकेडमी में खेलने का मौका मिला। वह वहां छह साल तक प्रैक्टिस और ट्रेनिंग करते रहे। शमशेर चाहते थे कि वह किसी तरह नेशनल खेलें ताकी सरकारी नौकरी मिल जाए और परिवार की आर्थिक मदद कर सकें।
शमशेर की मां बताती हैं कि शमशेर उन्हें कई बार तड़के सुबह तीन बजे उठाने को कहते थे। हालांकि, कभी कभी बेटे को चैन से सोता देख मां उन्हें उठाती नहीं थीं। जब ऐसा होता था तो शमशेर दुखी हो जाते थे। उनका खेल और अपने सपने की प्रति इतना दृढ़ संकल्प देख उनकी मां हैरान रह गई थीं। शमशेर पढ़ाई में भी अच्छे थे। साल 2016 में शमशेर ने बतौर मिडफील्डर जूनियर अंतरराष्ट्रीय टीम के लिए डेब्यू किया। जूनियर टीम के साथ उन्होंने तीन दौरे किए।
उन्होंने 2019 पुरुष रेडी स्टेडी टोक्यो हॉकी टूर्नामेंट में राष्ट्रीय सीनियर टीम के लिए अंतरराष्ट्रीय डेब्यू किया। शमशेर को नहीं लगता था कि वह कभी टीम इंडिया में शामिल हो पाएंगे, लेकिन उनकी मेहनत ने यह भी मुमकिन कर दिया। अपने डेब्यू के बाद शमशेर ने कहा, ‘मैंने कभी नहीं सोचा था कि मैं इस स्तर तक पहुंच पाऊंगा। मैंने कई वर्षों तक बहुत मेहनत की। हमें बचपन में काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ा। मेरे परिवार ने कभी मेरा साथ नहीं छोड़ा। मैं जो हूं उन्हीं की वजह से हूं।' शमशेर 2019 से लगातार भारतीय टीम का हिस्सा रहे हैं। वह दो ओलम्पिक कांस्य पदक के अलावा 2023 हांगझोऊ एशियाई खेलों में स्वर्ण जीतने वाली भारतीय हॉकी टीम का भी हिस्सा रहे।

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