शिक्षक-शिक्षिकाओं ने सीखे बेहतर अध्यापन के तौर-तरीके

राजीव इंटरनेशनल स्कूल में पंचपदी शिक्षा पद्धति पर हुई वर्कशॉप

सीखना और सिखाना ही शिक्षण संस्कारः नीता श्रीवास्तव

मथुरा। शिक्षण का तात्पर्य मनुष्य के ज्ञानात्मक, भावनात्मक एवं क्रियात्मक संस्कारों का समन्वय एवं विकास करना है तथा उसके व्यवहार में परिवर्तन और परिमार्जन लाना है। ज्ञान से इच्छा का जागरण होता है और इच्छा मनुष्य को क्रियाशील बनाती है। व्यवहार में परिवर्तन लाने को ही सीखना या अधिगम कहते हैं। सीखना और सिखाना ही शिक्षण संस्कार है। यह बातें राजीव इंटरनेशनल स्कूल में पंचपदी शिक्षा पद्धति पर हुई वर्कशॉप में लाइफ एवं टीचिंग स्किल कोच, टीचर स्किल ट्रेनर, प्रख्यात वक्ता नीता श्रीवास्तव ने शिक्षक-शिक्षिकाओं को बताईं।

राजीव इंटरनेशनल स्कूल में टीचर्स के लिए एनसीएफ एवं एनईपी को आधार बनाकर रचना सागर प्रा.लि. द्वारा एक वर्कशॉप का आयोजन किया गया। वर्कशॉप में वक्ता नीता श्रीवास्तव ने विभिन्न प्रकार की गतिविधियों के माध्यम से सभी शिक्षक-शिक्षिकाओं को पंचपदी शिक्षा पद्धति- अधिति, बोध, प्रज्ञा, अभ्यास, प्रसार आदि के विषय में विस्तार से जानकारी दी। उन्होंने फंडामेंटल लेवल से स्टार्ट करते हुए किस तरह से विद्यार्थियों के सर्वांगीण विकास की तरफ आगे बढ़ा जाए इसके बारे में शिक्षक-शिक्षिकाओं को बताया।

लाइफ एवं टीचिंग स्किल कोच नीता श्रीवास्तव ने विभिन्न प्रकार की गतिविधियों के माध्यम से इंक्वायरी बेस्ट लर्निंग पर फोकस किया। इतना ही नहीं उन्होंने क्लास रूम को कैसे इफेक्टिव बनाया जाए, कैसे सिलेबस मैनेज किया जाए तथा  लेशन प्लान को और प्रभावशाली कैसे बनाया जाए,  इन सभी विषयों पर विस्तार से जानकारी दी। नीता श्रीवास्तव ने बताया कि पंचपदी शिक्षा प्रणाली में व्यवस्थित शिक्षण की व्यवस्था है। इसमें एक के बाद एक पांच सोपानों से होकर गुजरते हुए शिक्षण की प्रक्रिया सम्पन्न होती है जिससे जहां एक ओर शिक्षक का कार्य सुगम हो जाता है वहीं दूसरी ओर छात्र-छात्राओं को सीखने में सरलता होती है और वे व्यवस्थित ढंग से नवीन ज्ञान को अर्जित कर पाते हैं।

नीता श्रीवास्तव ने कहा कि मनुष्य के अन्तर में समस्त ज्ञान अवस्थित है। आवश्यकता है उसे जाग्रत करने तथा उपयुक्त वातावरण निर्मित करने की। उन्होंने कहा कि शिक्षक ऐसा मार्गदर्शक, सहायक और उससे बढ़कर अनुभवी मित्र होता है जिससे विद्यार्थी हर मुश्किल समय में मार्गदर्शन प्राप्त करता है। उन्होंने कहा कि शिक्षक की भूमिका आज्ञा देने वाले की अपेक्षा सलाहकार और प्रस्तोता जैसी होनी चाहिए। उसे छात्र-छात्राओं को यह बताना चाहिए कि वे विभिन्न विषयों का मनन किस प्रकार करें।

उन्होंने कहा कि शिक्षण का दूसरा सिद्धान्त यह है कि मन के विकास में स्वयं उसकी सलाह ली जाए। विद्यार्थी को यह प्रेरणा देनी चाहिए कि वह अपनी प्रकृति के अनुसार अपना विकास करे। उन्होंने कहा कि शिक्षक छात्र-छात्रा को पढ़ा या सिखा नहीं सकता। पढ़ने या सीखने की प्रक्रिया तो छात्र-छात्राओं को स्वयं करनी होती है। शिक्षक उसकी सहायता तथा उपयुक्त अवसर एवं वातावरण का निर्माण कर सकता है।

आर.के. एज्यूकेशनल ग्रुप के अध्यक्ष डॉ. रामकिशोर अग्रवाल ने नए शैक्षिक सत्र की शुरुआत से पहले इस तरह की वर्कशॉप को उपयोगी बताया। उन्होंने कहा कि शिक्षा का मुख्य उद्देश्य होना चाहिए अन्तरात्मा की इस बात में सहायता करना कि वह अपने अन्तर की अच्छी से अच्छी बात को बाहर लाये और उसे किसी उदात्त उपयोग के लिये पूर्ण बनाये। प्रबंध निदेशक मनोज अग्रवाल ने अपने संदेश में कहा कि समय-समय पर ऐसी वर्कशॉप आयोजित करने से शिक्षा के क्षेत्र में होने वाले परिवर्तनों से सभी टीचर्स अवगत होते हैं। विद्यालय की शैक्षिक संयोजिका प्रिया मदान ने रिसोर्स पर्सन का आभार मानते हुए स्मृति चिह्न भेंटकर उनका अभिनंदन किया।

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