क्या कैसरगंज लोकसभा सीट पर बदलेंगे समीकरण

बृजभूषण शरण सिंह पर आरोप तय होने के बाद लगाई जा रहीं अटकलें
खेलपथ संवाद
लखनऊ।
देश में लोकसभा चुनाव 2024 को लेकर यूपी की सियासत में पारा बढ़ गया है। अगर उत्तर प्रदेश की बात करें तो यहां 19 मई को पश्चिमी उत्तर प्रदेश से चुनाव की शुरुआत हुई, लेकिन मतदान की चर्चा से ज्यादा यहां उन सीटों की चर्चा रही, जहां नामांकन के आखिरी समय में प्रत्याशियों के नामों का ऐलान हुआ। अमेठी, रायबरेली और कैसरगंज लोकसभा सीट का नाम इनमें प्रमुख हैं। बृजभूषण शरण सिंह पर आरोप तय होने के बाद कैसरगंज सीट को लेकर अटकलें तेज हो गई हैं।
पहले कैसरगंज से मौजूदा सांसद बृजभूषण शरण सिंह का टिकट कटा और इसके बाद 10 मई को दिल्ली की राउत एवेन्यू कोर्ट से महिला पहलवानों के मामले में उन पर आरोप तय हुए। जिसके बाद से सियासी समीकरण बदलाव लेता दिखाई दे रहा है। जिसको लेकर भाजपा का शीर्ष नेतृत्व भी चिंतित नजर आ रहा है, क्योंकि इसका असर न सिर्फ कैसरगंज, बल्कि देश की बची हुई लोकसभा सीटों पर भी देखने को मिल सकता है।
वैसे भारतीय जनता पार्टी ने इस सीट को लेकर काफी मंथन किया। उसके बाद जाकर यहां उम्मीदवार फाइनल किया। इसकी दो वजह मानी जा रही हैं। पहली ये कि महिला पहलवानों का पश्चिमी उत्तर प्रदेश, हरियाणा, राजस्थान समेत कई राज्यों और जाति वर्ग विशेष के लोग उनका सपोर्ट कर रहे थे तो वहीं दूसरा यह कि कैसरगंज, गोण्डा, अयोध्या समेत कई लोकसभा सीटों पर बृजभूषण शरण सिंह का प्रभाव है। ऐसे में भाजपा ने बीच का रास्ता निकालते हुए करण भूषण सिंह को चुनावी मैदान में उतारने का काम किया। भाजपा की इस रणनीति पर एक कहावत एक दम फिट बैठती है कि सांप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे।
बृजभूषण शरण एक किस्सा सुनाते थे। किस्सा यूं था कि 2014 में वह खुद नहीं, बल्कि बेटे प्रतीक भूषण को लोकसभा चुनाव लड़ाना चाहते थे, लेकिन पार्टी ने उन्हें ही टिकट दिया। इस बार बृजभूषण खुद टिकट चाहते थे, लेकिन बेटे करण भूषण को टिकट मिला। शायद इसलिए क्योंकि क्षत्रिय वोट की नाराजगी की कोई आशंका न रहे। दूसरी बात करण भूषण पर कोई आरोप भी नहीं हैं। कुश्ती संघ से पांच साल से जुड़े होने की वजह से करण भूषण की पकड़ ठाकुर-यादव दोनों के बीच अच्छी मानी जाती है। हालांकि, वो बात अलग है कि बेटे को टिकट देने से भाजपा का नुकसान भले ही न हो, लेकिन एक बात तो साफ है कि महिला पहलवानों के आरोप जरूर गंभीर थे। शायद यही वजह भी रही कि कोर्ट से भी उन पर आरोप तय हुए हैं।
राजनीतिक जानकार कहते हैं कि पहले की तरह न सही, लेकिन बृजभूषण शरण सिंह का कैसरगंज और आसपास के इलाकों में दबदबा तो माना ही जाता है। जब भाजपा एक-एक सीट जीतना महत्वपूर्ण मान रही हो, तो ऐसे में कैसरगंज सीट पर कोई जोखिम नहीं उठाना चाहेगी। हिमाचल प्रदेश चुनाव में प्रेमकुमार धूमल की नाराजगी का खामियाजा तो भुगत ही चुकी है। धूमल के बेटे अनुराग ठाकुर के होते हुए भी उनके संसदीय क्षेत्र में ही भाजपा को हार का मुंह देखना पड़ा था। बृजभूषण शरण सिंह जो लगातार तीन बार से जीत चुके हैं। उसके बाद उनका टिकट कटना स्वाभिमान से समझौता करने जैसा ही कहा जा सकता है।

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