धनुर्धर शीतल देवी पांव से रोजाना चलाती हैं 300 तीर

पैरा एशियाड की सफलता पैरा ओलम्पियाड में दोहराने का लक्ष्य
खेलपथ संवाद
नई दिल्ली।
पैरा एशियाई खेलों में दो स्वर्ण पदक जीतकर इतिहास रचने वालीं भारत की भुजाहीन तीरंदाज शीतल देवी का अगला लक्ष्य पेरिस पैरालम्पिक में देश के लिए शीर्ष स्थान हासिल करना है। पैर से तीर चलाकर पदक जीतने वाली विश्व की पहली महिला बनी शीतल पैरा विश्व तीरंदाजी रैंकिंग के महिला कंपाउंड ओपन वर्ग में शीर्ष तीरंदाज बन गईं। शीतल ने यहां ‘बीइंग यू’ के किताब के कवर लॉन्च के मौके पर कहा कि वह पैरालम्पिक में पदक जीतने के लिए पुरजोर अभ्यास कर रहीं है। 
जम्मू की 16 साल की इस खिलाड़ी ने यहां कहा, ‘ मेरा अगला लक्ष्य पेरिस पैरालम्पिक में देश के लिए पदक जीतना है। मैं उसके लिए काफी अच्छे से मेहनत करुंगी। मैं ज्यादा मेहनत करुंगी तो ही देश को पदक दिला पाऊंगी।’ किश्तवाड़ की इस खिलाड़ी को भारतीय सेना ने बचपन में गोद ले लिया था। जुलाई में उन्होंने पैरा विश्व तीरंदाजी चैम्पियनशिप में सिंगापुर की अलीम नूर एस को 144-142 से हराकर अपने स्वर्णिम सफर की शुरुआत की थी। शीतल को अमेरिका के भुजाहीन तीरंदाज मैट स्टुट्जमैन ने काफी प्रभावित किया। स्टुट्जमैन ने लंदन पैरालंपिक (2012) में पदक जीतकर पूरी दुनिया का ध्यान आकर्षित किया था। 
उन्होंने कहा, ‘जब मैंने तीरंदाजी शुरू की तब किसी ने मुझे स्टुट्जमैन के वीडियो को दिखाया। बाद में मुझे उनसे मिलने का मौका मिला। मुझे उनसे मिलकर बहुत अच्छा लगा था। उन्होंने मुझे प्रोत्साहित किया।’ शीतल ने कहा वह पदक का दबाव लिए बिना अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करने पर पूरा ध्यान देती हैं। उन्होंने कहा, ‘मुकाबला करीबी हो तब भी मैं दिमाग में कोई दबाव नहीं लेती हूं। खेल शुरू होने के बाद मैं जीत-हार या पदक के बारे में सोचे बिना अपना सर्वश्रेष्ठ करने की कोशिश करती हूं। ’
शीतल ने एशियाई पैरा खेलों में महिलाओं के व्यक्तिगत कंपाउंड वर्ग में स्वर्ण पदक के साथ कंपाउंड मिश्रित वर्ग में स्वर्ण और महिला युगल में रजत जीता था। उन्होंने दिव्यांग लोगों से निराशा छोड़कर खेलों में हाथ आजमाने की अपील की। शीतल ने कहा, ‘मेरे जैसे लोगों को हार नहीं माननी चाहिए। सफलता नहीं मिले तो भी हिम्मत ना छोड़ें। मैंने ऐसे लोग देखे हैं जो एक-दो बार हार कर खेल छोड़ देते हैं। मैं ऐसे लोगों से कहूंगी कि वे जिस खेल में भी हैं उसे जारी रखें, हार-जीत लगी रहती है।’
शीतल ‘फोकोमेलिया’ नाम की बीमारी से जन्मजात पीड़ित हैं। इस बीमारी में अंग पूरी तरह से विकसित नहीं हो पाते हैं लेकिन बाजू नहीं होने के बाद भी उनके हौसले कभी कम नहीं हुए। शीतल ने कहा, ‘मैं कृत्रिम हाथ लगवा रही थी लेकिन यह काफी भारी था। इसके बाद मुझे खेलों से जुड़ने का मौका मिला और जब मैंने तीरंदाजी शुरू की तब ठान लिया कि अब कृत्रिम हाथ का इस्तेमाल नहीं करुंगी।’ 
पेरिस पैरालम्पिक में स्वर्ण पदक जीतने के सपने को पूरा करने के लिए शीतल पूरे दिन मेहनत कर रही है। किसान परिवार से आने वाली 11वीं कक्षा की शीतल ने कहा , ‘मैं शिविर में सुबह साढ़े सात बजे अभ्यास के लिए मैदान पहुंच जाती हूं। तीरंदाजी में रोजाना लगभग 300 तीर से अभ्यास करती हूं। मेरा सत्र शाम के पांच बजे तक चलता है जिसमें दोपहर में खाने के समय थोड़ा सा विश्राम मिलता है। शाम पांच के बाद मैं अपनी पढ़ाई करती हूं।’ कोच अभिलाषा बताती हैं कि शीतल के लिए तीरंदाजी को चुनना काफी मुश्किल था। वह इकलौती महिला तीरंदाज है जो पैरों का इस्तेमाल करती है। हम उन्हें सामान्य खिलाड़ियों के साथ अभ्यास करवाते हैं जिससे उसका आत्मविश्वास बढ़ा रहे।

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