अलीगढ़ की पहलवान रेनू चौधरी आज भी खेलने को बेताब

बेटी यामिनी को खिलाड़ी बनाकर करेंगी अपने अधूरे सपने साकार

खेलपथ संवाद

अलीगढ़। मुसाफिर वह है जिसका हर कदम मंजिल की चाहत हो, मुसाफिर वह नहीं जो दो कदम चल करके थक जाए। यह पंक्तियां अलीगढ़ की जांबाज पहलवान रेनू चौधरी पर बिल्कुल सटीक साबित होती हैं। यह न थकने वाली मुसाफिर हैं। मुश्किल दौर से गुजर रही इस पहलवान में जोश है, जुनून है लेकिन इसका कोई मददगार नहीं है। रेनू चौधरी आज भी खेलना चाहती हैं। वह कहती हैं कि मैं अपने अधूरे सपने बेटी यामिनी को खिलाड़ी और पुलिस आफीसर बनाकर पूरा करना चाहती हूं।

रेनू चौधरी की जहां तक बात है इनका बचपन ग्रामीण परिवेश इगलास में बीता लेकिन शिक्षा और अपनी पहलवानी की खातिर अलीगढ़ आ गईं। चूंकि इनका खेलों से लगाव था सो इन्होंने पहलवानी में जमकर दांव-पेंच चलाए और जिला तथा राज्यस्तर पर खूब मेडल भी जीते। कुश्ती के प्रति इनके समर्पण को देखते हुए कई संस्थाओं द्वारा इन्हें सम्मानित किया गया। फिलवक्त रेनू चौधरी का समय ठीक नहीं चल रहा लेकिन खेलों के प्रति इनका लगाव बना हुआ है। वह कहती हैं कि मैं खेलना चाहती हूं लेकिन सुविधाएं और संसाधनों की कमी मेरे हौसले को तोड़ देती है। मैं जिम जाकर फिर से अखाड़े में उतरने का सपना देख रही हूं तथा अपनी बेटी यामिनी के भविष्य को लेकर भी बहुत चिंतित हूं।

रेनू कहती हैं कि मैं देश के लिए खेलकर अपने उत्तर प्रदेश का गौरव बढ़ाना चाहती हूं लेकिन आर्थिक अभाव के चलते मेरे सपने जमींदोज हो रहे हैं। अब मेरी कोशिश बेटी यामिनी को पढ़ा-लिखाकर खिलाड़ी और पुलिस आफीसर बनाने की होगी। रेनू स्वयं के बारे में कहती हैं कि जंग चल रही है दिल और दिमाग में। दिल कहता है कि दिमाग से सोच अभी बहुत कुछ बाकी है। जिम्मेदारियां, खुशियां, उम्मीदें, ख़्वाब, इम्तिहान, सफर अभी बाकी है पर दिल कहता है कुछ भी नहीं, क्या होगा ये सब मिल भी जाए, शांती तो कहीं नहीं। सुकून तो कहीं मिलेगा नहीं, तो क्या किया जाए? फिर एक लढ़ाई लड़ी जाए या हार मान ली जाए? ऐसी ही जद्दोजहद मेरे जीवन में रोज चलती रहती है और मुश्किल जंग लड़ते हुए मेरा एक-एक दिन गुजरता जा रहा है।

हिम्मती रेनू चौधरी कहती हैं कि यदि उन्हें आर्थिक सहयोग मिले तो वे कुश्ती के लिए बहुत कुछ कर सकती हैं। वह कहती हैं कि अलीगढ़ में प्रतिभाओं की कमी नहीं है। यदि यहां खेलों का माहौल बनाने की कोशिशें शासकीय और निजी स्तर पर हों तो बहुत से खिलाड़ी राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उत्तर प्रदेश को गौरवान्वित कर सकते हैं। हर मां की तरह रेनू भी बेटी यामिनी को लेकर बहुत परेशान है। रेनू की व्यक्तिगत परेशानियां उसकी राह का सबसे बड़ा रोड़ा हैं, यह दुखियारी तो ऐसी है कि जगहंसाई के चलते अपनी परेशानियां भी किसी को नहीं बता सकती। हमारी हुकूमतें नारी सशक्तीकरण का राग तो अलापती हैं लेकिन जमीनी हकीकत रेनू चौधरी से बेहतर भला कौन जान सकता है। 

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