'जब भी हम प्लेइंग-11 चुनते हैं, फैंस को निराश करते हैं'

जानें भारतीय कोच द्रविड़ ने ऐसा क्यों कहा
खेलपथ संवाद
रोसेयू (डोमिनिका)।
राहुल द्रविड़ के टीम इंडिया के हेड कोच बनने के बाद से भारतीय टीम को कुछ मेजर टूर्नामेंट्स में हार का सामना करना पड़ा है। इनमें 2022 एशिया कप, 2022 टी20 वर्ल्ड कप और वर्ल्ड टेस्ट चैम्पियनशिप के फाइनल जैसे कुछ टूर्नामेंट्स शामिल हैं। इसके अलावा भारतीय टीम दक्षिण अफ्रीका दौरे पर भी हार का सामना करना पड़ा था। इंग्लैंड के खिलाफ रवि शास्त्री के कार्यकाल में 2-1 से बढ़त बनाने वाली टीम इंडिया को रीशेड्यूल किए गए पांचवें टेस्ट में हार का सामना करना पड़ा था।
हालांकि, द्रविड़ ने अपने खिलाड़ियों को परफॉर्म करने का पर्याप्त मौका दिया और उनका हमेशा समर्थन किया। रवि शास्त्री के कार्यकाल के दौरान टीम में कई बदलाव होते थे। द्रविड़ के कार्यकाल में अर्शदीप सिंह, शुभमन गिल और श्रेयस अय्यर जैसे खिलाड़ियों को पर्याप्त मौके मिले और आज वह अच्छा प्रदर्शन कर टीम को जिता रहे हैं। अर्शदीप जहां डेथ ओवर स्पेशलिस्ट बन चुके हैं, वहीं गिल आने वाले समय में भारत के स्टार हैं। श्रेयस ने पेस और स्पिन अटैक के सामने अपनी मजबूती साबित की है।
'आप उनकी परवाह करते हैं, जिन्हें आप कोचिंग देते हैं'
द्रविड़ खुद भी अपने समय के एक महान बल्लेबाज रह चुके हैं। उन्हें पता है कि किसी खिलाड़ी को समर्थन करने का क्या मतलब होता है और इससे टीम को क्या फायदा होता है। हालांकि, कोच की जिम्मेदारी संभालने के बाद से उन्हें जवाबदेह भी होना पड़ा है। उन्हें कई बार उन सवालों के जवाब देने पड़ते हैं जिनका कोई तात्पर्य नहीं होता। द्रविड़ का कहना है कि कोचिंग की सबसे मुश्किल बात हार और जीत से कहीं ऊपर है।
उन्होंने एक इंटरव्यू के दौरान कहा- आप निजी तौर पर उन सभी लोगों की परवाह करते हैं जिन्हें आप कोचिंग देते हैं और आप व्यक्तिगत संबंध बनाने की कोशिश करते हैं। आप उन्हें एक इंसान के रूप में प्रशिक्षित करना चाहते हैं, न कि क्रिकेट खिलाड़ियों के रूप में। जब आप ऐसा करते हैं, तो आप चाहते हैं कि वे सभी सफल हों। लेकिन साथ ही आपको सच्चाई में भी जीना पड़ता है और यह महसूस करना होता है कि उनमें से सभी सफल नहीं होंगे। कभी-कभी आपको बेहद कठिन निर्णय लेने पड़ते हैं। 
द्रविड़ ने कहा, "हर बार जब हम एक प्लेइंग इलेवन चुनते हैं, तो हम लोगों को निराश करते हैं। ऐसे भी लोग हैं जो नहीं खेल रहे हैं। हर बार जब हम किसी टूर्नामेंट के लिए 15 खिलाड़ियों का स्क्वॉड चुनते हैं, तो बहुत सारे लोग हैं जो सोचते हैं कि उन्हें वहां होना चाहिए। आप उनके लिए भावनात्मक स्तर पर बुरा महसूस करते हैं, लेकिन कम से कम हम सभी प्रयास करते हैं। मैं यह नहीं कहता कि मैं इसमें एक्सपर्ट हूं। मैं यह नहीं कह रहा हूं कि मैं हर समय सही करता हूं क्योंकि यह आपको प्रभावित करता है। यह कोचिंग या नेतृत्व का सबसे कठिन हिस्सा है। उन लोगों के बारे में कठिन निर्णय लेने होते हैं जिन्हें आप वास्तव में सफल होते देखना चाहते हैं और उनका अच्छा चाहते हैं। लेकिन आप नियम से मजबूर होकर केवल चुनिंदा खिलाड़ियों को चुन सकते हैं।
टीम इंडिया के मुख्य कोच का पद संभालने से पहले द्रविड़ के भारत ए और अंडर-19 टीमों के साथ बिताए गए समय की हर तरफ सराहना हुई थी। तब द्रविड़ और जूनियर लेवल के खिलाड़ियों के बीच तालमेल की खूब तारीफ हुई थी। हालांकि, भारतीय पुरुष सीनियर क्रिकेट टीम के साथ बिल्कुल अलग स्थिति है। यहां द्रविड़ को ऐसे निर्णय लेने पड़े हैं जो बहुत से लोग नहीं कर सकते। इस साल चेतेश्वर पुजारा को बाहर करना, पिछले साल अजिंक्य रहाणे और इशांत शर्मा को टीम से ड्रॉप करना। या फिर ऋद्धिमान साहा से उनके भविष्य के बारे में बातचीत करना जैसे कुछ प्रमुख फैसले शामिल हैं।
हालांकि, फैसला द्रविड़ को करना था, इसलिए लोगों को उम्मीद थी कि बात ज्यादा नहीं बिगड़ेगी। हालांकि, द्रविड़ और साहा के बीच भविष्य को लेकर जो बातचीत हुई, उसने हर किसी को प्रभावित किया था। दरअसल, साहा को साफ तौर से बताया गया था कि उनकी टीम इंडिया में जगह अब नहीं दिखती। हालांकि, भारतीय हेड कोच को ऐसा नहीं लगता कि फैसला इतना आसान था। उन्होंने कहा, "इसका कोई आसान जवाब नहीं है। मुझे लगता है कि जो चीजें मेरे सामने आतीं है उसको लेकर मैं ईमानदार रहने की कोशिश करता हूं। खिलाड़ियों के साथ आपकी बातचीत और व्यवहार में अगर ईमानदारी है और अगर वे सोचते हैं कि जो आप कर रहे हैं उसमें कोई राजनीतिक एजेंडे या धारणा नहीं है, तो यह सबसे अच्छी बात है। यही होना भी चाहिए।

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