हॉकी में फिर विदेशी कोच अर्थात अपनों में दम नहीं!

राजेन्द्र सजवान 
नई दिल्ली।
एक और विदेशी कोच ने भारतीय हॉकी का कार्यभार संभाल लिया है। नाम है क्रेग आर्थर फुल्टन, जोकि दक्षिण अफ्रीका के लिए 195 अंतरराष्ट्रीय मैच खेल चुके हैं और 48 साल के  हैं।  क्रेग के चयन का मजबूत पक्ष यह बताया जा रहा है कि वह ओलम्पिक और विश्व खिताब जीतने वाली बेल्जियम टीम को कोचिंग दे चुके हैं। इतना ही नहीं हॉकी दिग्गजों के बीच यकायक बड़ी पहचान के साथ टोक्यो ओलम्पिक में स्थान पाने वाली आयरिश टीम के कोच भी यही महाशय रहे हैं। 
इसमें दो राय नहीं कि भारतीय हॉकी की कमान संभालने वाले कोचों में क्रेग चैम्पियन राष्ट्रों से नहीं आते। उनके देश दक्षिण अफ्रीका ने कोई विश्व स्तरीय खिताब भी नहीं जीता है। लेकिन हॉकी इंडिया के युवा अध्यक्ष दिलीप तिर्की और उनकी टीम को यदि क्रेग ने प्रभावित किया है तो उनमें कोई बड़ी खूबी जरूर पाई होगी। उन्हें 2015 में एफआईएच कोच आफ द ईयर का सम्मान भी मिल चुका है। 
एक और विदेशी कोच को हेड कोच बनने का सीधा सा मतलब है कि हमारे अपने कोचों में दम नहीं है, ऐसा देश के पूर्व ओलम्पियन और हॉकी प्रेमी कह रहे हैं। इस प्रकार के उलाहने नए भी नहीं हैं। जब कभी कोई विदेशी कोच छोड़कर जाता है या हटाया जाता है तो भारतीय हॉकी जगत में काफी कुछ कहा सुना जाता है। लेकिन यदि इस प्रकार की बहानेबाजी को रोकना है तो नए कोच को कुछ नया करके दिखाना होगा। यह न भूलें कि भारतीय हॉकी अपनी मेजबानी में आयोजित वर्ल्ड कप में चीचलेदारी करवा चुकी है। 
पिछले कोचों में से ज्यादातर ने अपनी पूरी ताकत झोंक ली, पूरा ज्ञान  उड़ेल कर देख लिया लेकिन भारतीय हॉकी ने जैसे नहीं सुधरने की ठान रखी है। टीम और खिलाड़ियों से नजदीकियां रखने वाले अपने कोच, अधिकारी और सपोर्ट स्टाफ के अनुसार विदेशी कोच शुरू शुरू में गंभीरता दिखाते हैं लेकिन धीरे धीरे कुछ खलीफा टाइप खिलाड़ी उन्हें घेर लेते हैं। नजदीकियां बढ़ाने के नतीजे अक्सर नुकसानदेह साबित होते आए हैं। 
हॉकी इंडिया और उसके कोचिंग स्टाफ को यदि बेहतर परिणाम चाहिए तो टीम पर बोझ बन चुके सीनियरों से सख्ती से निपटना होगा। कोच के साथ उनकी अनावश्यक नजदीकियां टीम और देश के हॉकी सम्मान के लिए घातक साबित होती आई हैं। ऐसे मे एक और नए कोच को गुमराह करना ठीक नहीं होगा।

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