कृत्रिम आवाजों के बीच अभ्यास कर रही टीम इंडिया

विश्व कप हॉकी में होगा दर्शकों का कानफोड़ू शोर 
1990 में 40 हजार दर्शकों के बीच गुम हो गई थी टीम की आवाज
खेलपथ संवाद

भुवनेश्वर और राउरकेला में दर्शकों के शोर से निपटने के लिए भारतीय हॉकी टीम लाउडस्कीपर की आवाज और कृत्रिम शोर के बीच अभ्यास कर रही है। कोच ग्राहम रीड को 1990 के लाहौर विश्व कप में मिले कड़वे अनुभव से निकला यह गुरुमंत्र अब भारतीय हॉकी टीम के काम आ रहा है। अभ्यास के दौरान ऐसा कृत्रिम शोर रखा जा रहा है जैसा स्टेडियम में मैच के दौरान दर्शकों का होता है।
दरअसल, 1990 के लाहौर विश्व कप में ऑस्ट्रेलिया को स्टेडियम में 40 हजार से अधिक दर्शकों के शोर की आदत नहीं थी। रीड याद करते हैं कि वे आपस में बोलकर खेला करते थे, लेकिन शोर में टीम को किसी की आवाज सुनाई नहीं पड़ी। नतीजतन उन्हें पाकिस्तान के खिलाफ हारना पड़ा। पश्चिम जर्मनी के साथ कांस्य पदक के मुकाबले में उन्होंने लाउडस्पीकर की आवाजों के बीच बिल्कुल चुप रहकर अभ्यास किया। भुवनेश्वर और राउरकेला में भी इसी तरह की भीड़ होगी। भीड़ के शोर से निपटने के लिए टीम को इसी तरह से अभ्यास कराया जा रहा है।
राउरकेला के बिरसा मुंडा स्टेडियम में दर्शकों की क्षमता 21 हजार के आसपास है। इसे देश का सबसे बड़ा हॉकी स्टेडियम बताया जा रहा है। राउरकेला और भुवनेश्वर दोनों में भारतीय टीम के मैचों के सारे टिकट बिक चुके हैं। ऐसे में स्टेडियम में शोर अपने चरम पर होगा। इसी से निपटने के लिए भारतीय टीम कृत्रिम शोर के बीच बिलकुल चुप रहकर अभ्यास कर रही है, जिससे उसे विश्वकप के मैचों में कोई खामियाजा नहीं भुगतना पड़े।
नजरों और हाथों सेे कर रहे हैं इशारा
टीम में गोलकीपर पीआर श्रीजेश और कप्तान हरमनप्रीत सिंह को जोर से बोलने की आदत है। दोनों खिलाड़ी बोलकर पास देते हैं और दूसरे खिलाड़ी को निर्देश भी देते हैं। इन दोनों ही खिलाडिय़ों को निर्देश दिए गए हैं कि वे बोलेंगे नहीं सिर्फ आंखों में देखेंगे, हाथों से इशारा करेंगे और कंधों पर नजर रखेंगे। इन्हीं इशारों से सभी खिलाडिय़ों को अपनी रणनीति से अवगत कराना है। रोड ने सभी खिलाडिय़ों को एक दूसरे पर लगातार निगाह रखने के निर्देश दिए हैं। भारतीय टीम के कोच हरेंदर सिंह भीड़ से निपटने के लिए कृत्रिम आवाजों का प्रयोग पहले भारतीय टीम के लिए कर चुके हैं, जिसका काफी फायदा मिला।

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