पिता के जुनून ने बेटी को बनाया विश्व प्रसिद्ध पहलवान

पिता और पुत्री दोनों अर्जुन अवार्डी
-अर्जुन अवार्डी कोच कृपाशंकर बिश्नोई की कलम से-
नई दिल्ली।
पहलवान जगरूप सिंह राठी, एक ऐसे पिता के संघर्ष की कहानी, जिन्होंने अपनी बेटी की खातिर समाज के लोगों के ताने झेले। हर मोड़ पर बेटी के साथ खड़े रहे। खुद ही बेटी के ट्रेनिंग पार्टनर बने और उसे बुलंदियों तक पहुंचाया। यह कहना गलत नहीं होगा की महावीर फोगाट के जीवन पर आधारित फिल्म दंगल, जगरूप राठी के जीवन से बिल्कुल मेल खाती है। 
पहलवान जगरूप ने खुद अपनी बेटी को पहलवानी के सारे दांव-पेंच सिखाए। वे जब बेटी को अखाड़े ले जाते तो अक्सर लोग कहते कि छोरी अखाड़े में लड़कों संग खेलेगी तो लोग क्या कहेंगे। लेकिन उन्होंने किसी की नहीं सुनी। उनके संघर्ष व मेहनत की बदाैलत नेहा राठी इंटरनेशनल रेसरल बनीं। नेहा को उनके उत्कृष्ट प्रदर्शन के लिए भारत सरकार ने अर्जुन अवार्ड से नवाजा। नेहा फरीदाबाद, हरियाणा जिले की पहली महिला पहलवान हैं, जिन्हें यह सम्मान मिला है। 
बेटा बीमारी के चलते कुश्ती में आगे नहीं बढ़ पाया तो पिता ने बेटी नेहा को मैदान में उतार दिया। नेहा ने अपने बड़े भाई अशोक कुमार के बीमार होने पर कुश्ती में आगे न बढ़ पाने पर अपने परिवार के पसंदीदा खेल कुश्ती को पिता के कहने से चुना। उसने अपने मनपसंद खेल तैराकी को भी छोड़ दिया। नेहा राठी कुश्ती में एक नहीं, करीब 35 पदक जीत चुकी हैं। वह नेशनल में लगातार 10 साल तक गोल्ड मेडलिस्ट रहीं। नेहा राठी हरियाणा पुलिस में इंस्पेक्टर के पद पर हैं। अब सिविल लाइन थाना करनाल में अतिरिक्त प्रभारी के पद पर तैनात हैं। 
नेहा राठी ने बताया कि वह मूल रूप से भापड़ोदा, झज्जर की रहने वाली हैं। पिता रिटायर्ड आईपीएस जगरूप सिंह हरियाणा पुलिस में कुश्ती कोच थे। उनका परिवार कुश्ती में था। भाई अशोक कुमार कुश्ती में था, जबकि उसको स्वीमिंग पसंद थी। भाई अशोक कुमार नेशनल तक खेला लेकिन बीमारी के चलते कुश्ती में आगे नहीं बढ़ पाया। इसीलिए  पिता ने मुझे कुश्ती में आगे आने की कही। वह स्वीमिंग छोड़कर कुश्ती में आईं। उसने मधुबन में अपने पिता से 15 साल की उम्र में कुश्ती के दांव सीखे। 
अर्जुन अवार्ड पाया: नेहा राठी ने बताया कि उसने 15 साल की उम्र में कुश्ती में दाव पेंच सीखने शुरू कर दिए। उसने 2000 में नेशनल में तीसरा स्थान पाया। इसके बाद उत्साह बढ़ गया। वह इसके बाद 2013 तक लगातार 10 साल नेशनल में गोल्ड चैम्पियन रहीं। 34 बार इंटरनेशनल स्तर पर खेलों में भाग ले चुकी हैं। 2005 में कॉमनवेल्थ में गोल्ड व 2006 में दक्षिण अफ्रीका में आयोजित सेंच्युरी कप में गोल्ड मेडल जीता। 2008 में एशियाई चैम्पियनशिप में सिल्वर मेडल से संतोष करना पड़ा। 
बाल कुमारी से लेकर भारत केसरी व अर्जुन अवार्ड पाए
नेहा राठी ने कुश्ती में खुद को साबित कर दिया। उसने 2005-06 में भीम अवॉर्ड प्राप्त किया। इसके बाद 2013-14 में अर्जुन अवॉर्ड प्राप्त किया। उसने इसके अलावा बाल कुमारी, भारत कुमारी व भारत केसरी अवॉर्ड जीते। उसको कुश्ती में पदक जीतने पर 2008 में सब इंस्पेक्टर बनाया गया। हालांकि वह डीएसपी के पद की दावेदार थी। वह सरकार से आज भी इसकी गुजारिश करती है। उसने 2010 में एशिया, कॉमनवेल्थ व आल इंडिया पुलिस गेम्स में गोल्ड मेडल जीता। उसके इसी प्रदर्शन पर उसको 2012 में इंस्पेक्टर के पद पर पदोन्नत किया गया। 
नेहा राठी ने बताया कि युवाओं को खेलों में लक्ष्य साधकर आगे बढ़ना चाहिए। व्यक्ति को हर समय मोबाइल में नहीं लगा रहना चाहिए। व्यक्ति की सफलता के लिए दिमाग को आराम देना जरूरी है। लोग बोले- छोरी के हाथ पीले कराओ, पिता ने हाथ में अखाड़े की मिट्टी थमा दी। वर्तमान में नेहा राठी करनाल में पुलिस महकमे में बतौर इंस्पेक्टर तैनात हैं। नेहा तीन-भाई बहनों में सबसे छोटी थीं। बड़े भाई व बहन की बजाय नेहा का रेसलिंग में रुझान था। वह अक्सर अपने पिता अर्जुन अवॉर्ड से सम्मानित पहलवान जगरूप सिंह राठी को प्रैक्टिस करते देखतीं तो खुद भी प्रैक्टिस करतीं। बेटी के रुझान को देखते हुए उनके पिता जगरूप ने निर्णय लिया कि वह अपनी बेटी को इसी फील्ड में आगे बढ़ाएंगे। लेकिन यह राह इतनी आसान नहीं थी। 15-16 साल की उम्र में जब जगरूप बेटी को अखाड़े में लेकर गए तो सब हैरान रह गए। लोगों ने कहा छोरी को थोड़ा पढ़ाओ और हाथ पीले कराओ। कई बार लोगों की बात सुनकर नेहा को बुरा लगता, लेकिन पिता जगरूप पीठ थपथपा कर बोलते कि तुम सिर्फ खेल पर ध्यान दो। बाकी सब मैं देख लूंगा। 
नेहा को वे खुद ही कुश्ती के सारे दांव-पेंच सिखाते। सुबह खुद बेटी को उठाते। प्रैक्टिस पर ले जाते। नेहा के लिए जगरूप सिंह उनके पिता होने के साथ-साथ मेंटर भी थे। कई बार गलतियों पर वे सभी के सामने डांट लगाते। फिर प्रैक्टिस खत्म होते ही पिता की तरह समझाते। 
नेहा का एक बेटा है पति भी हैं पहलवान: नेहा के पति नीरज कुमार भी खुद एक पहलवान हैं, इसलिए उन्हें ससुराल में भी वही प्यार मिलता है जोकि उन्हें मायके में मिला करता था। 

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