भारतीय बेटियों ने लॉन बॉल में स्वर्ण जीत रचा इतिहास

पदक पक्का करने पर निकल पड़े थे आंसू
खेलपथ संवाद
बर्मिंघम।
राष्ट्रमंडल खेल में खेलने आए भारतीय दल की सबसे उम्रदराज महिलाओं की टीम लॉन बॉल में थी, लेकिन चारों महिलाओं ने उम्र को पीछे छोड़ते हुए लॉन बॉल में देश को राष्ट्रमंडल खेलों में पहला पदक दिलाया है। भारतीय महिलाओं ने चार खिलाड़ियों के प्रारूप में सेमीफाइनल में न्यूजीलैंड को 0-6 से पिछड़ने के बाद 16-13 से हराकर फाइनल में जगह बनाई। इसके बाद फाइनल में भारत ने दक्षिण अफ्रीका को 17-10 से हरा दिया और चैम्पियन बनीं। 
लॉन बॉल को राष्ट्रमंडल खेलों में 1930 में शामिल किया गया था। उस लिहाज से 92 साल पुराने इस खेल में भारत ने सबसे पहली बार 2010 में हिस्सा लिया था। तब से लेकर अब तक टीम चार बार हिस्सा ले चुकी है, लेकिन पिछले तीन बार कोई मेडल नहीं जीता। मंगलवार को भारत को इस खेल में पहला पदक मिला और वह भी स्वर्ण के रूप में। भारत की बेटियों ने इस खेल में भारत को स्वर्णिम शुरुआत दिलाई है।  
2010 से भारत लॉन बॉल में हिस्सा ले रहा
यह इंग्लिश खेल 1930 से राष्ट्रमंडल खेलों में शामिल है, लेकिन भारत ने 2010 दिल्ली खेलों से इसमें हिस्सा लेना शुरू किया। इस खेल को चार प्रारूपों एकल, युगल तीन खिलाड़ी और 4-प्रारूप (चार खिलाड़ी) में खेला जाता है। आलम यह है कि इस खेल की गेंद भी भारत में नहीं बनती। इसे ऑस्ट्रेलिया और इंग्लैंड से मंगवाना पड़ता है। इसके बावजूद भारतीय महिला टीम ने इस खेल में जमकर मेहनत की और बिना किसी मदद के स्वर्ण पदक अपने नाम किया। 
भारतीय टीम में 42 साल की रांची की लवली चौबे (लीड), 41 साल की दिल्ली की पिंकी (सेकंड), 34 साल की रांची की रूपा रानी (स्किप) और 32 साल की असम की नैनमौनी सैकिया (थर्ड) शामिल हैं। इन्हें पदक का दावेदार नहीं माना जा रहा था, लेकिन अपने प्रदर्शन और जुनून से इन्होंने सबको चौंका दिया। फाइनल में पहुंचने के बाद और पदक पक्का करने के बाद सभी खिलाड़ियों के आंखों में आंसू थे। वहीं, फाइनल में दक्षिण अफ्रीका को हराते ही चारों ने एक-दूसरे को गले लगा लिया।
गोल्ड कोस्ट में एक अंक से पदक चूके थे
सेमीफाइनल में पहले फोर एंड के बाद भारतीय टीम 0-6 से न्यूजीलैंड से पिछड़ गई थी, लेकिन आठ एंड के बाद भारतीय टीम ने स्कोर 7-6 कर दिया। दस एंड के बाद भारत के पक्ष में स्कोर 10-7 था। चौदह एंड पर भारत 12-13 से पिछड़ रहा था। पंद्रह एंड के बाद भारत ने 16-13 से जीत दर्ज कर पिछले गोल्ड कोस्ट राष्ट्रमंडल खेलों की कड़वी यादों को पीछे छोड़ दिया। गोल्ड कोस्ट में भारतीय टीम को माल्टा ने एक अंक से हराया था और टीम इंडिया पदक से चूक गई थी। बर्मिंघम राष्ट्रमंडल खेलों में फाइनल में भारत ने दक्षिण अफ्रीका पर पहले 8-2 से बढ़त हासिल की। फिर 10-10 से दक्षिण अफ्रीका ने स्कोर बराबर कर दिया। इसके बाद भारतीय टीम ने 17-10 से बढ़त हासिल कर मैच जीत लिया और स्वर्ण पदक अपने नाम किया।
2010 में दिल्ली में हुए राष्ट्रमंडल खेलों की तैयारी के लिए मेजबान होने के नाते लॉन बॉल की टीम का गठन किया गया। दिल्ली की पिंकी और रांची की रूपा इस टीम का हिस्सा थीं। तब से ये दोनों नियमित रूप से राष्ट्रमंडल खेल में भारतीय टीम का हिस्सा होती हैं। दोनों का यह चौथा राष्ट्रमंडल खेल है। लवली और नैनमौनी 2014 के ग्लास्गो राष्ट्रमंडल खेल से टीम से जुड़ीं। दोनों का यह तीसरा राष्ट्रमंडल खेल है।
सिंथेटिक टर्फ की मरम्मत करा प्रैक्टिस की
टीम की मैनेजर अंजू लूथरा के मुताबिक इन खेलों के लिए टीम के चयन के लिए कोरोना के कारण सिर्फ 20 महिलाओं का चयन किया गया था। इन्हीं में से मुख्य टीम चुनी गई और प्रैक्टिस के लिए दिल्ली के यमुना स्पोर्ट्स कांप्लेक्स को बेस बनाया गया।
2010 के दिल्ली खेलों में प्रयोग में लाए गए सिंथेटिक ट्रैक को ठीक कराकर स्पोर्ट्स कांप्लेक्स में लगाया गया। इसी पर टीम ने प्रैक्टिस की। सभी को मालूम था कि बर्मिंघम में घास के ट्रर्फ पर मुकाबले होने हैं, लेकिन उनके पास यहां प्रैक्टिस के अलावा कोई चारा नहीं था। कोलकाता में घास का टर्फ था, लेकिन टीम को वहां कोरोना होने के कारण नहीं भेजा गया। सिंथेटिक टर्फ की स्पीड इस तरह कराई गई जिस तरह घास पर होती है। इसी पर प्रैक्टिस कर महिलाओं ने फाइनल में जगह बनाई है।
पहले कोई धाविका, कोई भारोत्तोलक थी
भारतीय कप्तान लवली चौबे पहले 100 मीटर की धाविका थीं जबकि नैनमौनी भारोत्तोलक थी। चोट के कारण इन्होंने अपना मुख्य खेल छोड़ लॉन बॉल को अपना लिया था जिसमें चोट का कम खतरा है। रांची की लवली बताती हैं कि भारतीय क्रिकेट टीम के पूर्व कप्तान महेंद्र सिंह धोनी भी इस खेल को काफी पसंद करते हैं। जब देवड़ी माता के मंदिर जाते हैं तो अक्सर स्टेडियम में आकर हमारे कोच से मिलते हैं। उन्होंने (धोनी) हमें यह भी बताया है कि जब वह ऑस्ट्रेलिया जाते हैं तो लॉन बॉल खेलते हैं। लवली को उम्मीद है कि धोनी के बाद अब वह भी रांची की पहचान बनेंगी। 

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