एथलीट शर्मिला के दर्द की दास्तां सुन प्रधानमंत्री हुए भावुक

पति नशे में पीटता था, 34 की उम्र में खेलना शुरू किया
शर्मिला की दोनों बेटियां भी खिलाड़ी हैं
राष्ट्रमंडल खेलों में स्वर्ण पदक जीतना है लक्ष्य
खेलपथ संवाद
नई दिल्ली।
इंसान परिस्थितियों का दास है। मंजिल वही हासिल करता है जोकि परेशानियों पर फतह हासिल करता है। भारतीय एथलीट शर्मिला के दर्द की कहानी सुन रोंगटे खड़े हो जाते हैं। यह सोचने को विवश होना पड़ता है कि क्या वाकई हमारा समाज इतना निर्दय हो गया है जोकि महिलाओं की कद्र करना भी भूलता जा रहा है। 34 साल की उम्र में शॉटपुट खेल की शुरुआत करने वाली हरियाणा की शर्मिला ने दो साल के अंदर ही गोल्ड मेडल जीत लिया था। इस पर प्रधानमंत्री मोदी ने उनसे पूछा कि हमें भी बताइए यह चमत्कार कैसे और किसकी प्रेरणा से हुआ है, इस पर शर्मिला ने प्रधानमंत्री को अपने दर्द और स्ट्रगल की कहानी सुनाई।
मेरा पति शराब पीकर मुझसे मारपीट करता था। आज भी जब मैं उस बारे में सोचती हूं तो कांप उठती हूं। दूसरी बेटी के जन्म के एक महीने बाद जब बात हद से बाहर निकल गई तब मेरे घर वाले मुझे वापस ले आए। मैं छह साल तक मायके में रही। बाद में मेरे माता-पिता ने मेरी दूसरी शादी करवाई। मैं काफी डरी हुई थी, लेकिन मेरे दूसरे पति ने मेरी सोच को ही बदल कर रख दिया। उन्होंने मुझे दोनों बेटियों के साथ अपनाया और मुझे पैरा खेलों में भाग लेने के लिए प्रेरित किया। 
मैंने 34 साल की उम्र में दूसरे पति की प्रेरणा के कारण ही खेलना शुरू किया, अब मैं सब कुछ भुलाकर कॉमनवेल्थ गेम्स में देश के लिए गोल्ड जीतना चाहती हूं और बर्मिंघम में तिंरगा फहराना चाहती हूं। यह कहानी है बर्मिंघम कॉमनवेल्थ गेम्स में पैरा के एफ-57 कैटेगरी में चयनित शॉटपुटर शर्मिला की। शर्मिला बताती हैं कि बचपन से ही मेरा संघर्ष शुरू हो गया। मां ब्लाइंड थीं। हालांकि, मेरे पापा शारीरिक रूप से ठीक थे। हम तीन बहनें और एक भाई हैं। मुझे छोड़कर सभी शारीरिक रूप से स्वस्थ हैं। पापा ने खेती और मजदूरी कर हम सभी का पालन पोषण किया। मैं जब दो-तीन साल की थी तभी मैं पोलियोग्रस्त हो गई। मुझे बाएं पैर से चलने में दिक्कत है। गरीबी के कारण दसवीं तक पढ़ाई के बाद ही मेरी शादी कर दी गई।
पति की खेती-बाड़ी थी। उसके माता-पिता नहीं थे। ससुराल पहुंची तो उसकी असलियत मेरे सामने आई। वह शराब पीता था। हमेशा मुझसे मारपीट करता था। पहली बेटी के पैदा होने के बाद मुझे लगा कि सब ठीक हो जाएगा, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। मेरी दूसरी बेटी के जन्म के एक महीने बाद वो शराब पीकर मुझसे मारपीट करने लगा। मेरी दूसरी बेटी ऑपरेशन से हुई थी। हद तो तब हो गई, जब उसने मेरी एक महीने की बेटी को गोद में उठाकर नीचे पटकने की कोशिश की। किसी तरह मैंने बेटी को बचाया। जब घर वालों को पता चला तो वे मुझे लेकर चले गए। 6 साल मायके में रही फिर मेरी दूसरी शादी करा दी गई। जब मेरी दूसरी शादी हुई थी तब मुझे डर लग रहा था। कहीं वे भी पहले पति की तरह न हों। पर ससुराल में कुछ दिन रहने के बाद मेरी सोच बदल गई। मेरे दूसरे पति की किराना की दुकान थी। उन्होंने मेरी दोनों बेटियों के साथ मुझे अपनाया। मेरे दूसरे पति ने मेरा सपोर्ट किया।
मुझे पैरा खेलों के बारे में बताया। मुझे और मेरी दोनों बेटियों को खेलों में भाग लेने के लिए प्रेरित किया। जब मैं स्टेडियम में गई तो कोच टेकचंद के बारे में पता चला। टेकचंद मेरे दूर के भाई हैं। उन्होंने मुझे शॉटपुट के बारे में बताया और वे मुझे इसकी ट्रेनिंग देने लगे। टेकचंद भाई के मार्गदर्शन में एक साल के अंदर ही मैंने नेशनल में मेडल जीता। उसके बाद मैंने लगातार बेहतर प्रदर्शन किया। मेरा सिलेक्शन नेशनल कैंप में हुआ और अब मेरा चयन कॉमनवेल्थ गेम्स के लिए हुआ है।
मेरी बड़ी बेटी 14 साल की है। वह जेवलिन थ्रो करती है, जबकि छोटी बेटी बैडमिंटन खेलती है। सुबह मैं प्रैक्टिस पर जाती हूं। ट्रेनिंग से लौटती हूं उससे पहले मेरी बेटी रसोई का कुछ काम कर देती है। ट्रेनिंग से लौटने के बाद मैं नाश्ता तैयार करती हूं और बेटियों को स्कूल भेजती हूं। वहीं, घर के अन्य कामों के लिए मेरे पति ने काम करने वाली बाई लगाई है। स्कूल से लौटने के बाद बेटियां शाम को अपनी-अपनी ट्रेनिंग में जाती हैं। मैं भी ट्रेनिंग में जाती हूं। शाम को ट्रेनिंग से लौटने के बाद रसोई का काम करती हूं और मेरी बेटियां पढ़ाई करती हैं। पूरे परिवार के सहयोग से हम तीनों प्रैक्टिस जारी रख पाए हैं।
नेशनल में मेडल जीतने पर हरियाणा सरकार ने मुझे कैश अवॉर्ड दिया वहीं, ट्रेनिंग की सुविधा भी उपलब्ध कराई गई है। हमारे पैरा में कैटेगरी डिसाइड होती है। यह अंतरराष्ट्रीय पैरा कमेटी करती है। कैटेगरी का निर्धारण विदेश में विशेषज्ञों की कमेटी करती है। यहां पर जाने का सारा खर्च सरकार ने उठाया है। अगर कैटेगरी डिसाइड नहीं होती तो मैं किसी भी अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिता में भाग नहीं ले पाती।

 

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