राष्ट्रमंडल खेलों में स्वर्ण जीतना एकमात्र लक्ष्यः रवि दहिया

भारतीय पहलवानों का हमेशा रहा दबदबा
नई दिल्ली।
टोक्यो ओलम्पिक में रजत पदक जीतने वाले पहलवान रवि दहिया ने राष्ट्रमंडल खेलों को लेकर देशवासियों से वादा किया है कि वह इस बार भी पदक जीतेंगे। रवि को पूरी उम्मीद है कि वह देश के लिए स्वर्ण पदक ही जीतेंगे। विश्व में नम्बर दो रैंकिंग वाले रवि बर्मिंघम खेलों में 57 किलो भार वर्ग में चुनौती पेश करेंगे। 
रवि ने राष्ट्रमंडल खेलों के लिए प्रशिक्षक महाबली सतपाल और अरुण शर्मा की देखरेख में छत्रसाल स्टेडियम में जमकर मेहनत की है और लगातार तकनीक बेहतर करने पर काम किया है। उन्होंने इस बार लेग डिफेंस और बैलेंस पर विशेष ध्यान दिया है। यह विरोधी को हराने में मददगार साबित होते हैं। हरियाणा के सोनीपत जिले के नाहरी गांव निवासी रवि के पिता राकेश दहिया ने 10 वर्ष की आयु में ही उन्हें छत्रसाल स्टेडियम में प्रशिक्षण के लिए भेज दिया था। राकेश दहिया भी पहलवान रहे हैं। उन्होेंने साक्षात्कार में बताया...।
सवाल: क्या कहना चाहेंगे अपने संघर्ष के बारे में?
रवि: संघर्ष तो हर खिलाड़ी की जिंदगी में होता है। हमलोग काफी मेहनत कर रहे हैं। अभी काफी समय है और हम तैयारियों में जुटे हुए हैं। 
सवाल: कॉमनवेल्थ गेम्स के लिए कैसी तैयारी है?
रवि: काफी अच्छी तैयारी है और हम पूरी तरह से फिट हैं। हमारी तैयारी तकरीबन पूरी है। उम्मीद यही है कि बर्मिंघम जाएंगे तो देश के लिए पदक जरूर लाएंगे।
सवाल: हर खिलाड़ी की एक मजबूती होती है। आप किस प्वाइंट पर सबसे ज्यादा काम कर रहे हैं?
रवि: देखिए अब ऐसा तो है नहीं कि कोई खिलाड़ी नया है। हम रेसलिंग में हैं तो यहां जो भी दांव पेंच हैं वो पुरानी हैं। कुछ टेक्निकल प्वाइंट्स पर आप काम कर सकते हैं। बाकी इस खेल में हम वही कर सकते हैं जो हमारे बस में है और जो बस में है उसकी हम उसकी पूरी तैयारी कर रहे हैं।
सवाल: हरियाणा की मिट्टी में ऐसी क्या खास बात है कि ज्यादातर पहलवान यहां से निकलते हैं?
रवि: हरियाणा में बहुत ज्यादा क्रेज है रेसलिंग का। पहले ये महाराष्ट्र में या पंजाब में और दूसरे राज्यों में था, लेकिन अब यहां रेसलिंग का क्रेज बहुत बढ़ गया है। काफी खिलाड़ी भी निकल रहे हैं हरियाणा से। यह भी कह सकते हैं कि यहां का खान-पान भी वैसा है। यहां के लोग भी थोड़े ज्यादा मेहनती हैं। लोग एक दूसरे को देखकर काफी कुछ चीजें सीख रहे हैं।
सवाल: आप कितने घंटे वर्कआउट करते हैं और क्या-क्या डाइट फॉलो करते हैं?
रवि: किसी खिलाड़ी का प्रदर्शन उसके गेम से पता चलता है। हम पूरी तरह से तैयार हैं। बात करें ट्रेनिंग की तो सुबह पांच बजे से लेकर साढ़े आठ बजे तक प्रैक्टिस करते हैं। फिर शाम को साढ़े चार से लेकर सात बजे तक प्रैक्टिस करते हैं। खाना पीना देशी रहता है। दूध, दही, घी ये सब चीजें भी रहती हैं और सादा खाना रहता है।
सवाल: आप कभी बाहर का खाना खाते हैं कोई फास्ट फूड या जंक फूड?
रवि: नहीं। इन सब चीजों से दूर ही रहता हूं और टूर्नामेंट के समय तो हमारा पूरा फोकस खेल पर होता है। इस समय पूरा ध्यान अपनी सेहत पर होता है और जो सबसे ज्यादा पौष्टिक हो वही खाने पर ध्यान रहता है। इसके अलावा ध्यान बस इस पर रहता है कि एक अच्छे रुटीन को फॉलो करें और अच्छे तरीके से खेलने के लिए तैयार रहें।
सवाल: कॉमनवेल्थ गेम्स में आपको क्या लगता है कि कौन ऐसा प्रतिद्वंदी है जो आपको कड़ी टक्कर दे सकता है?
रवि:  हर खिलाड़ी अपना 200 प्रतिशत देने के लिए आता है। वहां किसी को भी आप हल्के में नहीं ले सकते हैं। हर कोई यही सोचके आता है कि मुझे जीतना है। ये भी आप नहीं कह सकते कि वह हमसे ज्यादा मेहनती है या हमसे ज्यादा ताकतवर है। तो सब बराबर हैं। इसलिए हम भी अपना 200 प्रतिशत देंगे और देश के लिए गोल्ड मेडल जीतेंगे।
सवाल: जब मैच शुरू होता है तो मन में कितना दबाव होता है? उस वक्त क्या चलता रहता है दिमाग में?
रवि: जब टोक्यो ओलंपिक था तो हम पूरी तैयारी के साथ गए थे। तब हमारी तैयारी उस हिसाब की थी। दो साल पहले से क्वालिफाई करने की होड़ थी और दो साल से लगे हुए थे कि जाएंगे तो अच्छा करेंगे। मैच से पहले बहुते सारे ख्याल आते हैं कि क्या होगा क्या नहीं, लेकिन एक बार मैट पर चढ़ने के बाद आपके दिमाग में बस यही होता है कि जो सीखा है उसे मैट पर दिखा देना है और जीतने के लिए अपना सब दांव लगा देना है। तो हम पूरी तैयारी के साथ जाते हैं और मैट पर पहुंचने के बाद कोई दबाव नहीं होता।
सवाल: आपके जीवन में आपकी सफलता में आपके परिवार का कितना रोल रहा है?
रवि: एक खिलाड़ी के जीवन में बहुत सारी चीजें होती हैं। उसका परिवार होता है, उसके दोस्त होते हैं, उसका कोच होता है। इन सबका अलग-अलग योगदान होता है। आज जो कुछ भी मैं हूं इन्हीं की बदौलत हूं।
सवाल: युवा पहलवानों को क्या सीख देना चाहेंगे?
रवि: सबको यही कहना चाहूंगा कि एक गोल बनाएं और उसके पीछे जी जान से लग जाएं और खूब मेहनत करें और देश के लिए कुछ न कुछ अपना योगदान जरूर दें। चाहे वह किसी भी फील्ड में हो, किसी भी गेम में हो, देश के लिए सहयोग जरूर करें।
सवाल: पहलवान बनने के बाद कभी ऐसा लगा कि हां मैं सही कर रहा हूं सही खेल चुना है? खुद पर गर्व हुआ हो?
रवि: जब कोई टूर्नामेंट होता है तो आप अच्छा प्रदर्शन करते हो तो लगता है कि अच्छी लाइफ मिल गई है या ऐसा लगता है कि जो आपने सोचा भी नहीं था वैसा कुछ मिल रहा। कुल मिलाकर हां जरूर, कई मोमेंट आते हैं जब गर्व और अच्छा महसूस होता है।
पाकिस्तान, कनाडा, नाइजीरिया और दक्षिण अफ्रीका से मिलेगी टक्कर
रवि ने हाल ही में बताया था कि राष्ट्रमंडल खेलों में पाकिस्तान, कनाडा, नाइजीरिया और दक्षिण अफ्रीका के कई पहलवान बेहतर हैं। हालांकि, कड़ी मेहनत, स्टेमिना और नई तकनीक से वह खुद को इनसे बेहतर पाते हैं। रवि ने कहा था- मैं सोना जीतने का ही लक्ष्य लेकर आगे बढ़ रहा हूं। प्रैक्टिस के चलते उन्होंने अपने सभी कार्यक्रम रद्द कर दिए थे।
रवि ने राष्ट्रमंडल खेलों की तैयारियों के लिए ट्यूनीशिया में हुई रैंकिंग सीरीज में भाग नहीं लिया, ताकि अभ्यास के लिए अधिक समय मिल सके। वह फिलहाल बेहतर फॉर्म में हैं और एशिया चैंपियनशिप में स्वर्ण, इस्तांबुल में हुई रैंकिंग सीरीज में स्वर्ण और बुल्गारिया में हुए इंटरनेशनल कप में रजत पदक जीत चुके हैं।
(साभार अमर उजाला)

 

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