मैं वो नहीं जोकि दुनिया जानती हैः मो फराह

चार ओलम्पिक पदक जीतने वाले एथलीट का खुलासा
मुझे चार साल की उम्र में तस्करी कर इंग्लैंड लाया गया
मेरा नाम मो फराह नहीं हुसैन आब्दी काहिन है
लंदन।
दुनिया के नामी लम्बी दूरी के एथलीटों में शुमार इंग्लैंड के सर मो फराह (मोहम्मद फराह) ने लोगों को हिला देना वाला खुलासा किया है। लंदन और रियो ओलम्पिक में 5000, 10000 मीटर के चार स्वर्ण पदक जीतने वाले एथलीट ने बीबीसी की डॉक्यूमेंट्री में खुलासा किया है कि वह मो फराह नहीं हैं, उनका नाम हुसैन आब्दी काहिन है। चार साल की उम्र में उन्हें जिबूती से तस्करी कर बाल मजदूर के रूप में इंग्लैंड लाया गया था। असली मोहम्मद फराह उस औरत का सौतेला पुत्र है, जो सर मो से अमानवीय तरीके से घर के सारे काम कराती थी (बच्चों की देखभाल, उनके कपड़े बदलना, दूध देना आदि)। मो फराह के मुताबिक जब वह चार साल के थे तो उनके पिता सोमालिया में घरेलू युद्ध में मार दिए गए थे।
39 वर्षीय मो फराह बताते हैं कि उनका जुड़वां भाई हसन भी है। उनको मां आइशा सोमालिया के बदतर हालातों को देख पड़ोसी देश जिबूती में रिश्तेदार के पास ले आईं, लेकिन उन्हीं के एक रिश्तेदार ने उन्हें तस्करी कर इंग्लैंड में बेच दिया। वह आइलवर्थ (पश्चिम लंदन) भेजे गए थे। उनका मोहम्मद फराह के नाम से एक स्कूल में एडमीशन कराया गया, लेकिन वह घर की ज्यादतियों से तंग आ गए थे। एक दिन उन्होंने अपने साथ हो रही ज्यादतियों को स्कूल की अध्यापिका को बता दिया। इसके बाद उन्हें वहां से मुक्त कराकर एक सोमालियाई महिला किंसी को सौंपा गया। वही उनकी रियल आंटी हैं। उन्होंने ने ही उन्हें पाला।
बच्चों के कहने पर बोला सच
2017 में ब्रिटेन को दी गई सेवाओं के लिए उन्हें नाइटहुड (सर की उपाधि) से सम्मानित किया गया। मो फराह बताते हैं कि वह लम्बे समय से इस सच को इस वजह से छुपाते आ रहे थे कि उनके मन में डर था कि कहीं उनकी ब्रिटिश नागरिकता न चली जाए। उन्होंने झूठ बोलकर इस देश की नागरिकता ली थी। उनकी शादी तानिया के साथ हुई है, जिनसे उनकी दो जुड़वां बेटियां आईशा, अमानी और छह साल का हुसैन है। फराह बताते हैं कि जब भी उनके बच्चे उनसे पूछते कि वह यहां कैसे आए तो उनके मन में बोझ पड़ जाता कि वह इस देश के लोगों से झूठ बोल रहे हैं। बच्चों के कहने पर ही उन्होंने फैसला लिया कि वह दुनिया के सामने सच लेकर आएंगे, चाहे उन्हें इसकी कितनी ही बड़ी कीमत क्यों न चुकानी पड़े। 
14 साल की उम्र में ब्रिटिश नागरिकता ली
आंटी किंसी के परिवार ने फराह को पश्चिम लंदन के फेल्दम कम्यूनिटी कॉलेज, हाउंसलो में डाला, जहां उनके दौडने की अंदरूनी प्रतिभा लोगों के सामने आई। फराह के मुताबिक 14 साल की उम्र तक वह बिना ब्रिटिश नागरिकता के इंग्लैंड में रह रहे थे, लेकिन इस उम्र में उन्हें स्कूल कॉम्पटीशन खेलने लातविया जाना था। उनके खेल अध्यापक एलन वाटकिंसन ने तब कहा कि फराह के पास यात्रा करने के लिए जरूरी कागज नहीं हैं। उनके पास ऐसा कोई कागज नहीं है कि वह कहां से आए हैं। इसके बाद ही उन्होंने मोहम्मद फराह के नाम से ब्रिटिश नागरिकता लेने की औपचारिकताएं लेना शुरू किया। 
रेस्टोरेंट में काम करने के दौरान ग्राहक ने बताया मां जिंदा है
सन् 2000 में उनका एथलेटिक कॅरिअर परवान चढ़ने लगा था और वह एक सोमालियाई रेस्टोरेंट में काम करते थे। एक ग्राहक ने उन्हें एक वीडियो कैसेट देते हुए कहा कि उनकी मां सोमालिया में जिंदा है। वह अभी तक यही समझते थे कि उनके माता-पिता गृह युद्ध में मारे जा चुके हैं। उन्हें विश्वास नहीं हो रहा था कि उनकी मां जिंदा है। कैसेट में उनकी मां उनकी याद में दुख भरे गाने, कविताएं और लोकगीत गा रही थीं। कैसेट में ही नम्बर था। इसके बाद उन्होंने अपनीं मां से पहली बार बात की। मो फराह अपने पुत्र हुसैन के साथ मां से मिलने सोमालिया भी गए।
फराह की मां कहती हैं कि जिबूती में उनसे कहा गया था कि वह और उनके दोनों बच्चे साथ में इंग्लैंड जाएंगे, लेकिन उनके एक बेटे को वहां भेज दिया गया। मो फराह ने पहले बताया था कि उनके पिता मुक्तार ब्रिटिश नागरिक थे। सोमालिया में उनकी मां से उनका सम्पर्क हुआ। गृह युद्ध के बाद दोनों ब्रिटेन आ गए, जहां उनका जन्म हुआ। 

 

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