अब गांव-गांव से निकलेंगे लक्ष्य सेनः पुलेला गोपीचंद

छह साल की उम्र से बच्चों को मिले बैडमिंटन खेलने का अवसर
खेलपथ संवाद
हैदराबाद। बैडमिंटन की दुनिया में पुलेला गोपीचंद एक सुपरिचित नाम है। एक खिलाड़ी के रूप में उनकी उपलब्धियां तो लाजवाब हैं ही एक प्रशिक्षक के रूप में उनकी मेहनत-लगन हर किसी के लिए नजीर है। आज दुनिया भर में भारतीय शटलरों की जो तूती बोल रही है, उसमें पुलेला गोपीचंद का विशेष योगदान है। अब वह गांव-गांव से प्रतिभाएं खोजेंगे और छह साल की उम्र से ही उन्हें गहन प्रशिक्षण देंगे।
भारतीय बैडमिंटन टीम ने रविवार को 73 साल बाद थॉमस कप जीतकर इतिहास रच दिया। टीम इंडिया के चीफ कोच पुलेला गोपीचंद ने इसे बैडमिंटन के लिए 1983 वर्ल्ड कप क्रिकेट से बड़ी जीत करार दिया। गोपीचंद ने कहा कि भारत बैडमिंटन का नया पॉवर सेंटर बनने की दिशा में कदम रख चुका है। आने वाले समय में देश के गांव-गांव से किदांबी श्रीकांत और लक्ष्य सेन जैसे खिलाड़ी सामने आने वाले हैं।
गोपीचंद ने कहा- 1983 में वर्ल्ड कप की जीत के बाद लोगों ने क्रिकेट को जाना। उसकी लोकप्रियता बढ़ी और पैरेंट्स अपने बच्चे को क्रिकेटर बनाने का सपना देखने लगे। बैडमिंटन के साथ ऐसा नहीं है। लगातार मिली कई उपलब्धियों की वजह से देश में 10 साल पहले ही बैडमिंटन क्रांति शुरू हो चुकी है। थॉमस कप की इस जीत से बैडमिंटन क्रांति को और आगे बढ़ाने में मदद मिलेगी।
गोपीचंद ने कहा- अब गांव और छोटे शहर की प्रतिभाओं को आगे बढ़ने से कोई रोक नहीं सकता है। सरकार की कई योजनाएं हैं जो खिलाड़ियों के टैलेंट की पहचान करती हैं। साथ ही उन्हें बेहतर कोचिंग फैसलिटी उपलब्ध कराकर उनके सपने को पंख देने का काम कर रही हैं। प्रोफेशनल बैडमिंटन खिलाड़ी बनने के लिए किस उम्र से बच्चों को खेलना शुरू कर देना चाहिए? इस सवाल के जवाब में गोपीचंद ने कहा- अगर कोई अपने बच्चे को बैडमिंटन खिलाड़ी बनाना चाहता है तो छह साल की उम्र में शुरुआत करानी चाहिए। इसके लिए अपने आस-पास के किसी कोचिंग सेंटर में बच्चे को भेजना चाहिए। आगे चलकर वह लोकल लेवल पर एज ग्रुप टूर्नामेंट खेले और उसमें टैलेंट और जुनून रहा तो उसे आगे बढ़ने से कोई नहीं रोक सकता है।
गोपीचंद ने कहा कि थॉमस कप में मिली जीत में डबल्स खिलाड़ियों के शानदार प्रदर्शन की अहम भूमिका है। उन्होंने कहा- आज से 10 साल पहले तक हम सिंगल्स में ही बेहतर करते थे, पर अब हम डबल्स में भी शानदार प्रदर्शन कर रहे हैं। हमारे पास डबल्स में सात्विक साईराज, चिराग सेट्‌ठी, अर्जुन जैसे बेहतर खिलाड़ी हैं। इससे हमें मजबूती मिली है और हम टीम के रूप में मैच्योर हुए हैं।
टीम इवेंट टूर्नामेंट में हर मैच में 5 में से 2 मुकाबले डबल्स के होते हैं यानी 40% भार डबल्स मुकाबलों के ऊपर होता है। ऐसे में टीम में बेहतर डबल्स खिलाड़ी होने से टीम को मजबूती मिलती है और दबाव भी कम होता है। थॉमस कप में डबल्स का 40 प्रतिशत इवेंट था। हम मान के चलते हैं कि टीम इवेंट में 3 सिंगल्स में से 2 में हम जरूर जीतेंगे। ऐसे में डबल्स के मजबूत होने से हमारे जीतने के चांस बढ़ जाते हैं।
थॉमस कप में हमने सिंगल्स के साथ डबल्स में भी एक साथ कमाल किया। सेमीफाइनल भी हम डबल्स खिलाड़ियों की शानदार प्रदर्शन की बदौलत ही जीत हासिल कर फाइनल में पहुंच पाए। फाइनल में भी शुरुआती डबल्स मुकाबला जीतकर हमारे खिलाड़ियों ने दबाव को कम कर दिया। जिससे हमें चैम्पियन बनने में मदद मिली।
भारतीय कोच ने कहा- डबल्स में हम ऐसे ही मजबूत नहीं हुए हैं बल्कि पिछले 10 सालों से इस पर काम किया जा रहा है। देश के कोने-कोने से टैलेंटेड खिलाड़ियों का चयन करके उन्हें ट्रेनिंग दी जा रही है। इन्हें सिंगल्स खिलाड़ियों की तरह हर प्रकार की सुविधा दी जा रही है। इनके लिए विदेशी कोच भी नियुक्त किए गए हैं। इसका नतीजा सबके सामने है। हम 73 साल बाद थॉमस कप जीतने में सफल हो पाए हैं।
फॉरेन एक्सपोजर का भी मिल रहा है लाभ
पिछले कुछ सालों में खिलाड़ियों को फॉरेन एक्सपोजर देने पर भी खास ध्यान दिया गया है। हमारे खिलाड़ी दुनिया भर में बैडमिंटन के बड़े-बड़े टूर्नामेंट में हिस्सा ले रहे हैं। इससे उनकी रैंकिंग में सुधार होने के साथ ही उन्हें अनुभव भी मिल रहा है। थॉमस कप में भी फॉरेन एक्सपोजर का फायदा मिला। हमारे खिलाड़ी थॉमस कप के अपने ज्यादातर प्रतिद्वंद्वियों के खिलाफ पहले खेल चुके थे। इससे उनके खिलाफ रणनीति बनाने में मदद मिली। इसका फायदा हमें खिताब जीतने में मिला।
थॉमस कप की जीत के बाद भारतीय पुरुष खिलाड़ी ओलम्पिक में भी मेडल जीतने का सूखा खत्म करेंगे। गोपीचंद ने कहा कि मुझे पूरा भरोसा है कि पुरुष खिलाड़ी 2024 ओलम्पिक में मेडल जीतने में जरूर सफल होंगे। हमारे पुरुष खिलाड़ी पिछले कुछ सालों में शानदार प्रदर्शन कर रहे हैं। थॉमस कप से पहले हमने वर्ल्ड चैम्पियनशिप में भी दो मेडल जीते। हमारे दो खिलाड़ी सेमीफाइनल में पहुंचे, यह बड़ी उपलब्धि है।

 

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