फिर काले-गोरे के फेर में अफ्रीकी टीम

डिकॉक ने घुटने पर झुकने के बजाय मैच ही छोड़ दिया
वेस्टइंडीज के खिलाफ नहीं खेले
शारजाह।
टी-20 वर्ल्ड कप में वेस्टइंडीज के ‌खिलाफ साउथ अफ्रीका के विकेट कीपर बल्लेबाज क्लिंटन डिकॉक नहीं खेले। ये फैसला चौंकाने वाला है, क्योंकि डिकॉक साउथ अफ्रीका टीम के सबसे अहम बल्लेबाज हैं और भरपूर फॉर्म में भी हैं। इसलिए जब डिकॉक प्लेइंग-11 से बाहर हुए तो कप्तान तेंबा बाउमा से टॉस के समय पूछा गया कि ऐसा क्यों? इस पर बाउमा का जवाब चौंकाने वाला था। वे बोले कि डिकॉक पर्सनल रीजन से टीम से बाहर हैं। रीजन ऐसा है जिसमें हम दखलअंदाजी नहीं कर सकते।
दरअसल, इस पर्सनल रीजन की कड़ी पिछले मैच से जुड़ते हुए साउथ अफ्रीकी क्रिकेट के 52 साल पुराने इतिहास तक जाती है। आज हम इस पूरे मामले की आठों कड़ियां जोड़ रहे हैं। असल में साउथ अफ्रीकी टीम में 52 साल पुराना गोरा-काला जिन्न जाग गया है।
अगर आपको याद हो, भारत-पाकिस्तान के मैच के ऐन पहले दोनों टीमों ने ब्लैक लाइव्स मैटर्स को सपोर्ट किया था। भारतीय खिलाड़ी घुटनों पर झुके थे और पाकिस्तानी खिलाड़ियों ने दिल पर हाथ रखा था। यही चीज अफ्रीका और ऑस्ट्रेलिया का मैच शुरू होने से पहले भी हुई। बड़ी बात तब देखने को मिली, जब टीम तो घुटनों पर झुकी, पर कीपर डिकॉक कमर पर हाथ रखे खड़े रहे। उन्होंने कोई आम प्रतिक्रिया भी जाहिर नहीं की।
असल में अमेरिका में जॉर्ज फ्लॉयड के एक श्वेत पुलिस कर्मी के हाथों मारे जाने के बाद दुनियाभर में ब्लैक लाइव्स मैटर मूवमेंट चला। इस मुद्दे पर साउथ अफ्रीका बंटा हुआ नजर आया। यह ट्रेंड वहां की टीम में भी देखा जा रहा है। कुछ खिलाड़ी मैच से पहले घुटने के बल बैठकर इस मूवमेंट को सपोर्ट दे रहे हैं वहीं, कुछ खिलाड़ी (ज्यादातर श्वेत) घुटने के बल नहीं बैठ रहे हैं।
दूसरी कड़ीः घुटनों पर न झुकने के लिए अफ्रीकी क्रिकेट बोर्ड ने फटकारा
डिकॉक के बर्ताव को लेकर साउथ अफ्रीकी बोर्ड ने उन्हें जमकर फटकारा। ये भी कहा कि अब सभी खिलाड़ियों को एक तरीके से अपना सपोर्ट जताना ही पड़ेगा।
तीसरी कड़ीः बोर्ड को सबक सिखाने के लिए‌ डिकॉक ने वर्ल्डकप मैच से खुद को बाहर किया। बोर्ड की फटकार के बाद अचानक डिकॉक ने वर्ल्ड कप मैच से खुद को दूर कर लिया। डिकॉक ने मंगलवार को वेस्टइंडीज के खिलाफ मैच नहीं खेला। हालांकि ये मैच साउथ अफ्रीका जीत गया।
चौथी कड़ीः इन दिनों गरमाया हुआ है मुद्दा, फाफ डुप्लेसिस भी कर रहे हैं 6-5 फॉर्मूले का विरोध।
साउथ अफ्रीका बोर्ड की कोशिश होती है कि प्लेइंग-11 में शामिल 11 खिलाड़ियों में कम से कम 5 अश्वेत खिलाड़ी जरूर शामिल हों। वहां के कई श्वेत खिलाड़ी और राजनेता इस कदम का विरोध करते हैं। फाफ डुप्लेसिस ने इसी मुद्दे के चलते खुद को वर्ल्ड कप से दूर कर लिया था।
पांचवी कड़ीः अफ्रीकी टीम में 52 साल पुराना है श्वेत-अश्वेत जिन्न
साउथ अफ्रीका में नस्लभेद लंबे समय तक सरकारी पॉलिसी का हिस्सा रहा है। ये देश अश्वेतों की बहुलता वाला है। इसके बावजूद वहां के सिस्टम में उनको पूरे अधिकार नहीं मिलते थे। साउथ अफ्रीका की टीम में किसी अश्वेत खिलाड़ी का चयन नहीं होता था। इतना ही नहीं, अगर किसी विरोधी टीम में भी एक भी अश्वेत खिलाड़ी शामिल होता था तो साउथ अफ्रीका उससे नहीं खेलता था।
छठी कड़ीः इंग्लैंड की टीम में 1 अश्वेत शामिल हुआ तो साउथ अफ्रीका नहीं खेला।
इंग्लैंड और ऑस्ट्रेलिया के बाद साउथ अफ्रीका टेस्ट खेलने वाला तीसरा देश बना था, लेकिन उसकी टीम भारत, पाकिस्तान, वेस्टइंडीज जैसी टीमों के खिलाफ नहीं खेलती थी। वह सिर्फ इंग्लैंड, ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड से ही खेलती थी। 1968-69 में साउथ अफ्रीका से सीरीज के खेलने के लिए चुनी गई इंग्लैंड की टीम में 1 अश्वेत खिलाड़ी बेसिल डी ओलिवरा का सिलेक्शन हुआ। इसके विरोध में साउथ अफ्रीका ने सीरीज खेलने से इनकार कर दिया।
सातवीं कड़ीः अफ्रीकी क्रिकेट पर 22 साल का बैन, अच्छे-अच्छे खिलाड़ियों का करियर तबाह।
इंग्लैंड का क्रिकेट बोर्ड सीरीज को बचाने के लिए ओलिवरा को बाहर करने पर राजी हो गया था, लेकिन वेस्टइंडीज और भारत के कड़े विरोध के कारण उसे कदम वापस लेने पड़े। इसके बाद ICC ने नस्लभेदी नीतियां अपनाने वाले साउथ अफ्रीका पर 22 साल का बैन लगा दिया।
बैरी रिचर्ड्स तब एक उभरते हुए तगड़े बल्लेबाज थे, क्लाइव राइस को कपिल देव सरीखा ऑलराउंडर माना जाता था, लेकिन उन 22 साल के बैन ने इन खिलाड़ियों का करियर तबाह कर दिया।
आठवीं कड़ीः 1991 में खत्म हुआ बैन, सबसे पहले भारत के साथ खेली सीरीज।
क्रिकेट में साउथ अफ्रीका का वनवास 1991 में खत्म हुआ। इसके बाद वहां की टीम ने क्लाइव राइस की कप्तानी में सबसे पहले भारत का दौरा किया। तीन वनडे मैचों की सीरीज में भारत ने उसे 2-1 से हराया था।

रिलेटेड पोस्ट्स