यूपी में हैं सुविधाएं तो प्रियंका जैसी बेटियां बाहर क्यों खेलें?

लम्बी दूरी की दौड़ों में वाराणसी की इस बेटी का नहीं है जवाब

खेलपथ संवाद

लखनऊ। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, खेल मंत्री उपेन्द्र तिवारी तथा खेल निदेशक राम प्रकाश सिंह की कथनी और करनी में बहुत अंतर है, यही वजह है कि यहां के खिलाड़ी न केवल दूसरे राज्यों में प्रशिक्षण हासिल कर रहे हैं बल्कि वहीं से खेलने को भी मजबूर हैं। उत्तर प्रदेश सरकार लाख महिला सशक्तीकरण का राग अलाप रही हो, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी की ही आधा दर्जन गरीब खिलाड़ी बेटियां दूसरे राज्यों के रहमोकरम पर अपने खेल को पहचान दे पा रही हैं।

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ राष्ट्रीय मेडल विजेता खिलाड़ियों को पांच और 10 लाख रुपये प्रोत्साहन राशि देने की घोषणा जरूर कर चुके हैं लेकिन खेल निदेशालय के पास यूपी के खिलाड़ियों का कोई लेखा-जोखा ही नहीं रहता, इसके चलते दर्जनों खिलाड़ी प्रोत्साहन राशि से वंचित रह जाते हैं। वाराणसी जनपद के गांव चुप्पापुर की प्रियंका पटेल भी ऐसी ही एथलीटों में शामिल है।

अजित कुमार-उर्मिला की यह बेटी अब तक राष्ट्रीय स्तर पर 10 किलोमीटर, 20 किलोमीटर तथा 35 किलोमीटर पैदल चाल में लगभग एक दर्जन पदक जीत चुकी है। पांच बहनों और एक भाई में सबसे बड़ी प्रियंका बताती हैं कि घर की आर्थिक स्थिति सही नहीं होने के बावजूद वह खेलों में करियर बनाना चाहती है। हाल ही वारंगल में हुई राष्ट्रीय ओपन एथलेटिक्स में 35 किलोमीटर वॉक में कांस्य पदक जीतने वाली 23 साल की प्रियंका बेटी को भरोसा है कि एक न एक दिन वह कुछ ऐसा करेगी, जब उत्तर प्रदेश ही नहीं समूचे देश की नजर उस पर पड़ेगी। मेरा काम मेहनत करना है, सो मैं कर रही हूं। योगी सरकार को इस दिशा में गम्भीर प्रयास करने चाहिए ताकि यूपी की जांबाज बेटियों का फायदा प्रदेश को मिल सके।

 

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