ओलम्पियन विवेक सागर बने क्रिस्प के स्पोर्ट्स प्रमोटिंग ब्रांड एम्बेसडर
क्रिप्ट सॉफ्टवेयर टैलेंट सर्च में भी काफी मददगार साबित होगा
खेलपथ संवाद
भोपाल। क्या हमें अपनी स्वाभाविक जन्मजात प्रतिभाओं, क्षमताओं और शक्तियों की जानकारी है? क्या हम अपनी प्रतिभाओं के प्रति सजग हैं? सेंटर फॉर रिसर्च एण्ड इंडस्ट्रियल स्टाफ परफॉरमेंस (क्रिस्प) द्वारा ऐसा ही एक सॉफ्टवेयर तैयार किया गया है जिसकी मदद से फिंगर प्रिंट के द्वारा व्यक्तित्व विश्लेषण किया जा सकता है। गुरूवार को प्रदेश के ओलम्पिक हॉकी खिलाड़ी विवेक सागर ने श्यामला हिल्स स्थित क्रिस्प संस्थान में डरमैटोगलाइफिक्स मल्टिपल इंटेलीजेंस टेस्ट सॉफ्टवेयर का शुभारम्भ किया। इस अवसर पर विवेक सागर के फिंगर प्रिंट के माध्यम से ब्रेन मेंपिग भी की गई। इस अवसर पर विवेक सागर को क्रिस्प संस्थान ने उन्हें स्पोर्ट्स प्रमोटिंग ब्रांड एम्बेसडर घोषित किया गया।
विवेक सागर ने कहा कि खिलाड़ियों के लिए सम्मान हमेशा प्रोत्साहित करता है। हर क्षेत्र में शुरुआत में मुश्किलें आती हैं, लेकिन परिवार का सहयोग, प्रोत्साहन और खुद में कुछ कर गुजरने का जुनून सफलता की राह दिखाता है। विवेक ने कहा कि क्रिस्प संस्थान द्वारा तैयार की गई नई आधुनिक वैज्ञानिक तकनीक (DMIT) अब प्रदेश में नए टैलेंट को निखारने में मददगार साबित होगी। वर्तमान में प्रदेश खेलों के क्षेत्र में आगे है और खेल विभाग में खिलाड़ियों को बेहतरीन सुविधाओं के साथ आधुनिक तकनीक से लैस हर प्रकार की सुविधा उपलब्ध है। क्रिस्प द्वारा शुरू किए गए (DMIT) सॉफ्टवेयर से छोटी उम्र के बच्चों को खेल में रुचि और उनकी क्या क्वालिटी है, यह पता लग सकेगा। यह सॉफ्टवेयर टैलेंट सर्च में भी काफी मददगार साबित होगा।
क्रिस्प सोसाइटी के अध्यक्ष डॉ. श्रीकांत पाटिल ने कहा कि स्पोर्ट्स एक बड़ी इंडस्ट्री है। भारत युवाओं का देश है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के आत्म-निर्भर मध्यप्रदेश की अवधारणा को पूरा करने में युवा शक्ति का सकारात्मक सहयोग आवश्यक है। उन्होंने विवेक सागर को सम्मानित करते हुए कहा कि विवेक आज यूथ ऑइकान बन गए हैं। उनकी लगन और मेहनत ने उन्हें इस मुकाम तक पहुँचाया है।
क्रिस्प की मैनेजर डॉ. संस्कृति मिश्रा ने बताया कि डरमैटोग्लाइफिक्स मल्टिपल इंटलीजेंस एनालिसिस एक विज्ञान है, जिसमें हाथों के फिंगर प्रिंट का अध्ययन किया जाता है। उन्होंने बताया कि पहले इस विधा का प्रयोग अपराध विज्ञान के लिए किया जाता था। इसके बाद इस अध्ययन का प्रयोग शारीरिक और मानसिक रोग की पहचान करने के लिए किया जाने लगा। डॉ. मिश्रा ने बताया कि इस दौरान यह पाया गया कि फिंगर प्रिंट का संबंध हमारे मस्तिष्क से होता है, फिंगर प्रिंट तथा मस्तिष्क का विकास भ्रूण अवस्था में माता के गर्भ में ही 10वें से 12वें सप्ताह में हो जाता है। शोध में यह भी पाया गया कि जिस तरह की आकृतियाँ व्यक्ति के मस्तिष्क के विभिन्न भागों पर हैं, ठीक उसी प्रकार की एक समान छाप व्यक्ति की उंगलियों पर फिंगर प्रिंट के रूप में उपलब्ध हैं, जिसे न्यूरो मैगनेटिक इफेक्ट कहा जाता है।