टोक्यो में तिरंगा फहराने को बेताब भारतीय पैरा एथलीट

किसी ने पैर गंवाया तो किसी ने लकवे को दी मात
खेलपथ संवाद
नई दिल्ली।
टोक्यो पैरालम्पिक में चुनौती पेश करने के लिए भारतीय खिलाड़ी पहुंच चुके हैं। इस बार रिकॉर्ड 54 खिलाड़ी नौ खेलों में पदकों के लिए दावा पेश करेंगे। पहली बार दो महिला निशानेबाज भी निशाना साधेंगी। वहीं ताइक्वांडो और बैडमिंटन को पहली बार पैरालम्पिक खेलों में शामिल किया गया है। भारतीय खिलाड़ियों से रियो के रिकॉर्ड को पीछे छोड़ने की उम्मीद है। पांच साल पहले रियो में हुए खेलों में भारत ने दो स्वर्ण सहित कुल चार पदक जीते थे जो अब तक का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन है।
सेना में हवलदार शिलांग के सोमन राणा पहली बार पैरालम्पिक में चुनौती पेश करेंगे। वह शॉटपुट की एफ 57 स्पर्धा में पदक के लिए दावा पेश करेंगे। सेना में भर्ती होने के बाद से ही खेलों को अपना कॅरिअर बनाने वाले सोमन अच्छे मुक्केबाज थे। करीब 14 साल पहले (2006) जम्मू-कश्मीर में एक माइन विस्फोट में उन्होंने दांया पैर गंवा दिया था। इसके बाद उन्होंने खेल से दूरी बना ली। पर कर्नल गौरव दत्त से मुलाकात के बाद उन्होंने अपना फैसला बदला और फिर से मैदान में वापसी की। 
इस बार हाथों में ग्लव्स की जगह शॉटपुट था। इसके अलावा वह अच्छे जेवलिन थ्रोअर भी हैं। उन्होंने कड़ी मेहनत से साल के शुरुआत ट्यूनिस विश्व पैरा एथलेटिक्स ग्रांप्री में स्वर्ण पदक जीता। इसके बाद राष्ट्रीय चैम्पियनशिप में दो स्वर्ण और एक रजत पदक जीता। दुनिया के नंबर दो शॉटपुटर सोमन ने जून में दिल्ली में हुए ट्रायल में टोक्यो का टिकट कटाया। वह कहते हैं कि पिछले दो साल काफी कठिन रहे। पर मैंने अपनी तैयारी नहीं छोड़ी। टोक्यो में पदक जीतकर अपने पहले ही खेलों को यादगार बनाने में कोई कसर नहीं छोडूंगा।
बीएसएफ में रहे रोहतक के विनोद कुमार (डिस्कस थ्रो एफ-56) पैर में गंभीर चोट के चलते करीब दस साल तक विस्तर पर रहे। वर्ष 2002 में लेह में ट्रेनिंग के दौरान उनके पैर में चोट लगी थी। इस दौरान उन्होंने अपने माता-पिता को भी खो दिया। उन्होंने चार साल पहले ही पैरा एथलीट दीपक मलिक से प्रेरित होकर डिस्कस थ्रो की प्रैक्टिस शुरू की थी। दिन में वह दुकान संभालते और सुबह-शाम अभ्यास करते थे। इसके बाद पीछे मुड़कर नहीं देखा। दुनिया के छठे नंबर के खिलाड़ी विनोद ने इसी दुबई में हुई फाजा पैरा एथलेटिक्स चैम्पियनशिप में कांस्य पदक जीता। 2019 में पैरा विश्व एथलेटिक्स चैम्पियनशिप में वह चौथे स्थान पर रहे।
रेवाड़ी के 37 वर्षीय टेक चंद (जेवलिन थ्रो एफ-54) ने न सिर्फ लकवे को मात दी बल्कि खेलों की दुनिया में अपनी अलग पहचान भी बनाई। वर्ष 2005 में एक सड़क हादसे के दौरान टेक की स्पाइनल कॉर्ड पूरी तरह से खराब हो गई थी और लकवाग्रस्त हो गए थे। उन्होंने विस्तर पर पड़ा रहने के जगह खेल की मैदान पर उतरने का मन बनाया और मात्र पांच साल में ही पैरालम्पिक में खेलने का सपना भी साकार कर डाला। 2016 में अभ्यास शुरू करने वाले टेक ने 2018 पैरा एशियाई खेलों में कांस्य पदक जीता। वह 2019 में विश्व पैरा एथलेटिक्स में छठे स्थान पर रहे।
सकीना जैसा कोई नहीं
पश्चिम बंगाल के बसिरहट की सकीना खातून ने पोलियो, गरीबी और तमाम बंदिशों को तोड़कर अपनी अलग पहचान बनाई। राष्ट्रमंडल खेलों में कोई भी पदक जीतने वाली देश की एकमात्र महिला पैरा एथलीट खातून की निगाह अब टोक्यो में पदक जीतकर पैरालंपिक में पदक जीतने के अपने सपने को साकार करने पर है। खातून टोक्यो पैरालंपिक में पावरलिफ्टिंग में चुनौती पेश करने वाली देश की एकमात्र भारतीय महिला हैं। 
सकीना बचपन में ही पोलियो की शिकार हो गई थी। यहां तक कि उनका जीवन बचाने के लिए चार ऑपरेशन करने पड़े। डॉक्टरों की सलाह पर उन्होंने घर के करीब तालाब में तैराकी का अभ्यास शुरू किया। इससे उनकी सेहत में सुधार होना शुरू हुआ। फिर एक स्कूल के जरिए उन्हें तैराकी में आगे बढ़ने का मौका मिला। उन्होंने 2010 में तैराकी छोड़कर पावरलिफ्टिंग शुरू की। इसमें कोच फरमान बाशा ने उनकी मदद की। इसके बाद उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा। उनकी मां खेतों में मजदूरी करती थी जबकि पिता रीढ़ की हड्डी में गंभीर दिक्कत के कारण चल नहीं सकते थे। पिता के इलाज कराने के पैसे नहीं थे लेकिन सकीना ने हौसला नहीं खोया।
कशिश ने कर दिया करिश्मा
कशिश लाकड़ा एक सड़क हादसे का शिकार हो गई। डाक्टरों ने माता-पिता से कह दिया कि वह 48 घंटे से ज्यादा नहीं जी पाएंगी। अगर बच भी गईं तो ताउम्र विस्तर पर रहेंगी। पर कशिश ठहरीं फाइटर। उन्होंने न सिर्फ मौत को मात दी बल्कि विस्तर भी छोड़ा। अपनी जिंदादिली से उन्होंने डॉक्टरों के दावों को झुठला दिया। 
कशिश कहती हैं कि मैं एक हफ्ते तक अस्तपाल में रही। मुझे लगा था कि मेरी जिंदगी खत्म हो गई। लेकिन साढ़े चार माह के उपचार के बाद मैं बैठने लायक हो गईं। इसके बाद मैंने सत्यपाल सिंह सर के कहने पर क्लब थ्रो में हाथ अजमाने शुरू किए। पिछले ढाई साल की मेहनत रंग लाई और अब में टोक्यो में चुनौती पेश करूंगी। दिल्ली की 18 वर्षीय कशिश जूनियर विश्व चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक जीत चुकी हैं और दुबई में 2019 में हुई सीनियर विश्व चैंपियनशिप में पांचवें स्थान पर रही। 

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