और नीरज ने अपना पदक अपनी मां के गले में पहना दिया!

खेलपथ संवाद
नई दिल्ली।
सोमवार नौ अगस्त की सावन की भीगी हुई शाम सभी के दिलों में हमेशा के लिए दर्ज हो जाएगी। देश की राजधानी दिल्ली के अशोक होटल के सभागार के पास के प्रतीक्षा कक्ष का ये दृश्य जीने के लिए ही शायद हर खिलाड़ी जन्म लेता है और हर माता-पिता उसे अरमानों से बड़ा करते हैं। अरमान अपने बेटी या बेटे को यों सम्मान पाते हुए देखने के। सपने उसका नाम बुलंदियों के आसमान पर देखने के। इच्छा- दुनिया सम्मान करे और हम देखें।
हरियाणा के खांडरी गांव के 23 वर्षीय नीरज चोपड़ा ने ये सपना साकार कर दिया। नीरज ने अपने भाले से सफलता के आसमान पर अपना नाम स्वर्णाक्षरों में लिख दिया। नीरज का भाला तो जमीन पर गिरा, पर 131 करोड़ के हिंदुस्तान को उसने गर्व से सिर ऊंचा करने का मौका दिया। भाला जमीन पर गिरा और तिरंगा आसमान में सबसे ऊपर चढ़ गया। 
सफलता की बुलंदी छूने वाले नीरज कितने जमीन से जुड़े हैं ये उन्होंने वतन लौटते ही दिखा दिया। अशोक होटल में सम्मान समारोह के पहले उन्होंने अपने माता-पिता के पैर छूकर भरपूर आशीर्वाद लिया। उनके अगले कदम ने तो मानों सबकी आंखें नम कर दीं। नीरज ने अपना स्वर्ण पदक उतार कर अपनी मां के गले में पहना दिया। 
हर मां ऐसा बेटा चाहेगी। धन्य होगी। मां ने तो संकोच से पदक उतारकर बेटे को लौटा दिया। फिर नीरज ने ये पदक अपने पिता के गले में पहना दिया। पिता भी अत्यंत भावुक हो गए। पिता ने पदक उतारा नहीं, बल्कि लम्बे समय तक पहने रहे। मानो इस लम्हे को भरपूर जी लेना चाहते हों। इन भावुक क्षणों का जो भी साक्षी बना वो उसी भाव-प्रवाह में शामिल हो गया। 
नीरज के परिवार को जितना देखो उतना ही सुकून मिलता है। इनकी सादगी इनके व्यवहार से झलकती है। एकदम सीधे और सच्चे। कोई लाग-लपेट या दिखावा नहीं। और यही शायद नीरज की सबसे बड़ी ताकत है! अपनी माटी और अपने संस्कारों से जुड़ाव। ये क्षण अनमोल हैं। खिलाड़ियों को पदक मिलने पर जो पैसे मिल रहे हैं वो अपनी जगह, पर खिलाड़ी जीता इसी लम्हे के लिए है जो अमूल्य है।

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