उत्तराखंड में पुश्तैनी खेल हॉकी की सुविधाएं नहीं

खिलाड़ी निकलें भी तो आखिर कैसे
खेलपथ संवाद
देहरादून।
भले ही हम टोक्यो ओलम्पिक या अन्य अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में खिलााड़ियों से पदक की उम्मीद करते हैं, लेकिन उत्तराखंड राज्य के किसी भी जिले में खेलों की पर्याप्त सुविधाएं नहीं हैं। खेल सुविधाएं न होने से खिलाड़ी निराश रहते हैं। अभी तक किसी सरकार ने खेलों के विकास की तरफ ध्यान नहीं दिया है।
राजधानी देहरादून में रायपुर स्थित महाराणा प्रताप स्पोर्ट्स कॉलेज में एस्ट्रो टर्फ लगाई गई है। इसके अलावा राष्ट्रीय इंडियन मेडिकल कॉलेज, फॉरेस्ट रिसर्च इंस्टीट्यूट , एमकेपी, गुरु नानक इंटर कॉलेज में भी हॉकी के मैदान हैं। वहीं, ज्यादातर प्राइवेट स्कूलों व कॉलेज में बड़े मैदान हैं, जिनकी बाउंड्री छोटी कर वहां हॉकी खेली जाती है। ज्यादातर स्कूलों की अपनी हॉकी टीम भी है, जो अलग-अलग स्तरों पर आयोजित होने वाली प्रतियोगिताओं में हिस्सा भी लेती रही है। लेकिन देहरादून का कोई भी खिलाड़ी आज तक भारतीय हॉकी टीम में शामिल नहीं हो सका है।
हरिद्वार की वंदना ने रचा इतिहास 
वंदना कटारिया टोक्यो ओलम्पिक में हैटट्रिक लगाकर पहली भारतीय महिला होने का खिताब अपने नाम कर इतिहास रच चुकी हैं। हॉकी खिलाड़ियों की तैयारियों के लिए भले ही मैदान एक हो, लेकिन राज्यस्तरीय टीमों के चयन में हरिद्वार का दबदबा रहता है। हरिद्वार में सामान्य हॉकी खिलाड़ियों को तैयारी करने के लिए महज एक हॉकी स्टेडियम रोशनाबाद में है। यह भी शहर से 16 किलोमीटर दूर होने से खिलाड़ियों को पहुंचने में परेशानी होती है। 
हॉकी आयोजन के लिए नहीं उचित व्यवस्थाएं
रुद्रप्रयाग जिले में हॉकी प्रतियोगिता के लिए अलग से कोई मैदान नहीं हैं। ब्लॉक मुख्यालय अगस्त्यमुनि के खेल मैदान में ही बीते वर्षों में अंडर-16 राज्य स्तरीय हॉकी प्रतियोगिता का आयोजन हुआ है। जिले में माध्यमिक व कॉलेज स्तर पर हॉकी खेल की उचित संसाधन नहीं हैं। लेकिन जिले से महेंद्र रावत, विक्की कुमार और रोहित बिष्ट ने उत्तराखंड की तरफ से राष्ट्रीय स्तरीय हॉकी प्रतियोगिताओं में प्रतिभाग किया है।
नई टिहरी: नरेंद्रनगर में ही एकमात्र हॉकी का खेल मैदान
हॉकी के लिए सिर्फ नरेंद्रनगर में ही एकमात्र खेल मैदान है। अलबत्ता जिले के दो माध्यमिक स्कूल जीआईसी नरेंद्रनगर और जीआईसी किलकिलेश्वर में ही हॉकी खेली जाती है। खेलप्रेमियों का कहना है कि यदि जिले में सुविधाएं बढ़ाई जांए, तो खिलाड़ियों की संख्या में बढ़ोत्तरी हो सकती है। खेल प्रशिक्षक कमल नयन रतूड़ी का कहना है कि टोक्यो में मिली सफलता रातों-रात की नहीं है। खिलाड़ियों ने कठिन परिश्रम कर यह मुकाम हासिल किया है।
चमोली: हॉकी में राष्ट्रीय स्तर पर प्रतिभाग कर चुके चमोली के खिलाड़ी
स्पोर्ट्स स्टेडियम गोपेश्वर और गौचर में हॉकी मैदान है, जबकि अन्य कहीं भी हॉकी खेलने के लिए मैदान नहीं है। जीआईसी गोपेश्वर व गौचर से ही हॉकी टीमें बनाई गई हैं। जिले से एक भी खिलाड़ी ने अंतरराष्ट्रीय हॉकी में प्रतिभाग नहीं किया है, लेकिन वर्ष 2011 में उत्तराखंड खेल संघ की ओर से जूनियर हॉकी में जिले के हॉकी खिलाड़ी अवतार सिंह ने राष्ट्रीय स्तर पर हॉकी प्रतियोगिता में प्रतिभाग किया था।
ऊधमसिंह नगर : घास के मैदान में हॉकी खेलकर कैसे निखरेंगे खिलाड़ी
जिले में बीते छह सालों से हॉकी एस्ट्रोटर्फ तक नहीं बन सका है। खेल अधिकारियों की ओर से कई बार हॉकी एस्ट्रोटर्फ का प्रस्ताव शासन में भेजा गया, लेकिन आज तक सरकार की ओर से इसे मंजूरी नहीं मिल सकी है। 
पिथौरागढ़ : 1785 स्कूलों में से कुछ में ही खेली जाती है हॉकी
जिले में 1785 स्कूल हैं। इन सभी में कुछ बच्चे हॉकी खेलते हैं। मगर भारतीय हॉकी टीम के ओलम्पिक इतिहास की उन्हें कोई जानकारी नहीं है। हॉकी के जादूगर मेजर ध्यान चंद के बारे में हॉकी खेल से संबंधित खिलाड़ी तो जानते हैं, मगर 70 फीसदी बच्चे हॉकी के जादूगर को नहीं जानते हैं। जिले में हॉकी खिलाड़ियों के खेलने के लिए हॉकी मैदान नहीं है। जिले के अंतरराष्ट्रीय हॉकी खिलाड़ियों में  दिगांस (वड्डा) निवासी महेंद्र सिंह बोहरा, धनौड़ा के स्व. रमेश चंद्र पटियाल, हरिप्रिया रौतेला कनालीछीना के उमरी गांव की मंजू बिष्ट, पिथौरागढ़ निवासी विनय प्रमुख नाम हैं।
नैनीताल में हॉकी के दो ही मैदान
जिले में हॉकी के दो ही मैदान हैं। इनमें एक फ्लैट्स नैनीताल और दूसरा हल्द्वानी स्टेडियम। जिले में टर्फ मैदान एक भी नहीं है। लगभग एक दर्जन से अधिक स्कूलों में हॉकी खेली जाती है। हॉकी के लिए स्कूलों में कोई विशेष मैदान नहीं हैं। जिले में सैयद अली और राजेंद्र सिंह रावत दो ओलंपियन हैं और राकेश टंडन, ललित साह, एनडी बिष्ट, हरीश भाकुनी समेत आधा दर्जन खिलाड़ी अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी हैं। हॉकी के ओलंपिक इतिहास से अधिकतर बच्चे अनजान हैं। 
चंपावत जिले में एक भी हॉकी मैदान नहीं
1980 के मास्को ओलंपिक में मिले स्वर्ण पदक के 41 साल बाद भारतीय हॉकी टीम को टोक्यो ओलंपिक में मिले कांस्य पद से हर किसी की बांछें खिली हैं। इसे लेकर हर ओर जश्न तो है लेकिन यहां के खिलाड़ियों को चंपावत में हॉकी खेल के लिए आधारभूत सुविधाओं के अभाव का मलाल भी है। डीएसओ आरएस धामी का कहना है कि चंपावत जिले में हॉकी का एक भी खेल मैदान नहीं है। जिले के 144 स्कूलों में से पांच प्रतिशत में ही हॉकी खेली जाती है।
बागेश्वर : अधिकतर बच्चे राष्ट्रीय खेल से अनजान
यहां हॉकी एसोसिएशन ने वर्ष 2000 में नुमाइशखेत मैदान में कारगिल शहीदों के सहायतार्थ मैच कराया। खेल प्रेमी मानते हैं कि हॉकी को बढ़ावा दिलाने के लिए सुविधाओं का होना बेहद जरूरी है। यहां अधिकतर बच्चों को हॉकी के राष्ट्रीय खेल होने के बारे में भी पता नहीं है। हॉकी एसोसिएशन बागेश्वर के जिला सचिव कमल साह जगाती का कहना है कि जिले में हॉकी मैदान और सुविधाओं की सख्त दरकार है।
अल्मोड़ा : 10 फीसदी स्कूलों में ही खेली जाती है  हॉकी
जिले में हॉकी खेल का अस्तित्व नाम भर के लिए है। एकमात्र अल्मोड़ा स्टेडियम ही हॉकी खेल की सुविधा देता है। जिले में अन्य कहीं भी इस खेल से संबंधित मैदान नहीं है। स्कूलों में भी हॉक बहुत कम प्रचलित है। जिले के 10 प्रतिशत स्कूलों में ही हॉकी खेल की सुविधा है। अब तक यहां से मीररंजन नेगी के अलावा हॉकी में कोई भी खिलाड़ी अंतरराष्ट्रीय स्तर में नहीं पहुंचा है। 
अपने पैसे से खरीदनी पड़ती है हॉकी स्टिक
राष्ट्रीय हॉकी खिलाड़ी आंचल का कहना है कि घास के मैदान में हॉकी का प्रशिक्षण लेते हैं, इस वजह से अच्छा परफार्म नहीं कर पाते हैं। हाल ये है कि खुद के पैसे से हॉकी स्टिक खरीदनी पड़ती है। राष्ट्रीय हॉकी खिलाड़ी रोहन रावत के अनुसार सरकार अगर एस्ट्रोटर्फ की सुविधा दे तो यहां के खिलाड़ी भी अंतरराष्ट्रीय स्तर तक राज्य का नाम रोशन कर सकते हैं। राष्ट्रीय हॉकी खिलाड़ी दीपांशु असवाल और रितिक सैनी ने भी कहा कि उन्हें भी सुविधाएं मिलें तो वे देश का नाम रोशन कर सकते हैं।

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