नए लड़ाकों की यह जीत बदलेगी हॉकी की तस्वीर

हार न मानने वाले जज्बे ने दिल बाग-बाग कर दिया
राजीव शर्मा
नई दिल्ली।
नए भारत के नए लड़ाकों की यह जीत देश में हॉकी की तस्वीर तो बदलेगी ही साथ ही खिलाड़ियों की तकदीर भी बदल देगी। युवा ब्रिगेड ने भारतीय हॉकी को नया जीवन दिया है। इस पदक का देश को 41 साल से इंतजार था। यह तो बस शुरुआत है। इसे अब आदत बनाना होगा। वाहे गुरु ने चाहा तो आगे सब अच्छा ही होगा। अब फिर बच्चे बल्ला पकड़ने की बजाय स्टिक थामेंगे।
यह कहना है मास्को 1980 में की स्वर्ण पदक विजेता टीम के हीरो सुरेंद्र सिंह सोढ़ी का। उन्होंने फाइनल में स्पेन के खिलाफ दो गोल दागने के अलावा टूर्नामेंट में कुल 15 गोल किए थे। यह किसी भारतीय खिलाड़ी के एक ओलम्पिक में अब तक के सर्वाधिक गोल हैं। सुरेंद्र ने कहा ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ मिली हार के बाद लड़कों ने जिस तरह का खेल खेला वो काबिलेतारीफ है। वो टूटे नहीं बल्कि और मजबूत हुए। टीम का हार नहीं मानने का जज्बा और जुझारूपन कमाल का है। घायल शेरों ने पलटवार कर दुनिया को दिखा दिया कि भारतीय हॉकी का स्वर्णिम युग फिर से लौट आया है।  
सुरेंद्र सिंह कहते हैं तब हमारा वापसी पर फूल मालाओं से जो स्वागत हुआ था उसे ताउम्र नहीं भूल सकते। तब पैसे तो मिलते नहीं थे पर देशवासियों का जो प्यार मिला वहीं हमारी सबसे बड़ी पूंजी बन गई जो आज तक संजोकर रखी हुई। उस पर भी जब हमें यह पता चला की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी हमसे चाय पर मिलना चाहती हैं तो हमारी खुशी और बढ़ गई। उनके साथ वो चाय जिंदगी का सबसे बड़ा ईनाम है। 
मास्को की जीत के हीरो सुरेंद्र मौजूदा खिलाड़ियों को मिल रही सुविधाओं से खुश हैं। उन्हें मलाल है तो बस पूर्व ओलम्पियनों को बिसरा देने का है। वह कहते हैं कई ऐसे खिलाड़ी हैं जिन्होंने कोई बड़ा टूर्नामेंट नहीं जीता पर उन्हें पद्मश्री और पद्म विभूषण तक मिल चुका है। लेकिन ओलम्पिक में देश का परचम फहराने वाले कई पूर्व खिलाड़ी अभी भी गुमनामी में हैं। उन्हें कोई याद नहीं करता सम्मान देना तो दूर की बात। मैंने मास्को में रिकॉर्ड 15 गोल दागे। फाइनल में जीत में दो गोल किए। दो बार पद्मश्री के लिए अप्लाई किया कुछ नहीं हुआ। अब तो शर्म आती है ऐसा लगता है मानो भीख मांग रहे हैं। ऐसा नहीं है कि हमारे पास किसी चीज की कमी है। पर सम्मान तो सम्मान होता है। मिले तो किसे खुशी नहीं होगी। युवाओं ने अच्छा मौका दिया है।
सरकार को चाहिए कि सभी पूर्व ओलम्पियनों को इस नई यंगिस्तान के साथ सम्मानित करे। पूर्व और मौजूदा खिलाड़ियों को एक मंच पर एकत्र करे। इससे युवाओं का भी उत्साह बढ़ेगा। सुरेंद्र कहते हैं कि लड़कियों ने तो कमाल ही कर दिया है। वे बेशक कांस्य पदक नहीं जीत पाईं लेकिन उन्होंने करोड़ों देशवासियों का दिल जरूर जीती है।
अब ऊपर वाले का बुलावा आ जाए तो दुख नहीं: चरणजीत 
अब ऊपर वाले का बुलावा भी आ जाए तो दुख नहीं होगा। इस कांसे ने दिल को सुकून दिला दिया। खुश हूं कि भारतीय हॉकी को उसके वारिस मिल गए। इन युवा लड़कों के हार न मानने वाले जज्बे ने दिल बाग-बाग कर दिया। हॉकी में तो नई जान फूूंकी ही हम जैसे भूले-बिसरों की भी याद लोगों को दिला दी। कम से कम आज के दिन के लिए ही सही। हम भी याद आए। नहीं तो हमें कौन पूछता है। फिर गहरी सांस लेते हुए अच्छा बेटा। शरीर वैसे भी साथ छोड़ चुका है। साढ़े छह साल से लकवे के चलते बिस्तर पर लेटकर तंग आ चुका हूं। पर इस जीत ने फिर से जीने की चाह पैदा कर दी और 57 साल पहले की याद ताज कर दी। तब हमने भी टोक्यो में ही 1964 में पीला तमगा जीतकर तिरंगा फहराया था।
बस इतना कहते ही तब के कप्तान चरणजीत सिंह मायूस हो जाते हैं। अगले ही पल हिमाचल प्रदेश के ऊना के 95 वर्षीय चरणजीत फिर से अपने पुराने अंदाज में लौट आते हैं। कहते हैं इस जीत ने मुझे फिर से जवान कर दिया। इन लड़कों को ही नहीं लड़कियों को भी बहुत-बहुत बधाई।

रिलेटेड पोस्ट्स