गरीबों की बेटियों ने बदल दी भारतीय हॉकी की सूरत

हॉकी बेटियों की फिटनेस की हर कोई कर रहा तारीफ
खेलपथ संवाद
नई दिल्ली।
हॉकी जैसे खेल में अधिकांशतः गरीब घरों की बेटियां ही भाग्य आजमाती हैं। गुरबत से गुजरते हुए इन बेटियों ने अपने आपको न केवल अब फौलाद का बना लिया है बल्कि दुनिया की मजबूत से मजबूत टीमों को टक्कर देने की कूबत भी रखती हैं। टोक्यो में हमने देखा कि किस तरह भारतीय बेटियों ने मजबूत आस्ट्रेलिया को पराजय स्वीकारने को मजबूर कर दिया।
भारतीय टीम उन लड़कियों से मिलकर बनी है जिन्होंने जब हॉकी की स्टिक थामी थी तो ज्यादातर को दो वक्त की घर की रोटी भी नसीब नहीं थी। किसी की मां मजदूरी करती थी तो किसी के पिता दर्जी थे। किसी के पिता तांगा चलाते थे और हॉकी की स्टिक दिलाने तक के पैसे नहीं थे तो किसी के पिता फिटर थे। हॉकी पकड़ी तो किसी ने यह नहीं सोचा कि एक दिन ओलम्पिक के सेमीफाइनल में पहुंचेंगे। बस खुशी इतनी थी कि पहनने के लिए जूते और टी शर्ट जो मिल रहे हैं। ये वही लड़कियां हैं जिन्हें पूरा खाना नहीं मिलने के चलते उनके प्रारम्भिक प्रशिक्षक उन्हें शुरुआत में हॉकी पकड़ाने की हिम्मत नहीं जुटा पाए। सुविधाएं मिलीं तो आज यही लड़कियां दुनिया की सबसे फिट टीमों में शुमार हो गईं।
हैरान होने की बात नहीं है। भारतीय महिला हॉकी टीम के यो-यो टेस्ट का औसत स्कोर 19 से 21 के बीच का है। भारत से मुंह की खाने वाला ऑस्ट्रेलिया भी इस मामले में उनके आगे मात खाता है। रियो ओलम्पिक के दौरान चीनी पहलवान से पैर तुड़वाने वाली विनेश फोगाट को ठीक करने वाले दक्षिण अफ्रीकी फिजिकल ट्रेनर वायने लोंबार्ड ने महिला हॉकी टीम की सूरत बदलकर रख दी है। नेहा गोयल, निशा वारसी, शर्मिला की कोच पूर्व भारतीय कप्तान प्रीतम रानी सिवाच कहती हैं कि टोक्यो में ह्यूमिडिटी स्तर जितना है उसमें बिना उच्चस्तरीय फिटनेस के नहीं खेला जा सकता। आज के समय में हॉकी खेल का खिलाड़ी नहीं बना जा सकता है। फिटनेस बेहद जरूरी है। ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ हम फिटनेस में नहीं मार खाए बल्कि इस मामले में आस्ट्रेलियाई टीम हमसे मात खा गई।
लड़कियों की फिटनेस पर पहले भी काम होता था, लेकिन उनकी रिकवरी नहीं होने के चलते वे चोटिल हो जाया करती थीं। लोंबार्ड ने इसकी अनोखी काट निकाली। उन्होंने फिटनेस कराने के बाद रिकवरी के लिए सभी खिलाड़ियों को नंबर देने का फैसला लिया। हायड्रोथेरेपी, मसाज, आधे घंटे की नींद, कूलिंग बैग, स्वीमिंग पूल जाने के लिए अलग-अलग नंबर निर्धारित किए गए। गूगल डॉक्यूमेंट पर जाकर खिलाड़ियों को एंट्री करनी होती थी और उसके बाद सभी को लोंबार्ड नंबर देते थे। इससे यह हुआ कि चोटिल होने की समस्या पर रोक लगी।
टोक्यो में ह्यूमिडिटी का स्तर और गर्मी काफी ज्यादा है। महिला को बंगलूरू में दोपहर में सर्दियों की जैकेट पहनाकर प्रैक्टिस कराई गई। जिससे टोक्यो में उन्हें ज्यादा परेशानी नहीं आए। लॉकडाउन के चलते टीम बंगलूरू में बायो सिक्योर बबल में तैयारी कर रही थी। यह काफी कठिन समय था। ऐसे में टीम मैनेजमेंट ने खिलाड़ियों को प्रेरित करने के लिए हिंदी फिल्म मैरीकॉम, दंगल और माइकल जार्डन की बायोपिक दिखाने का फैसला लिया। इन फिल्मों ने खिलाड़ियों को इस दौरान खूब प्रेरित किया। बंगलूरू शिविर में एक समय में कप्तान रानी रामपाल समेत सात से आठ खिलाड़ी कोरोना संक्रमित हो गए। बावजूद इसके इन सभी खिलाड़ियों ने कठिन समय का सामना करते हुए जबरदस्त वापसी की।

रिलेटेड पोस्ट्स