तीरंदाज प्रवीण जाधव के लिए आसान नहीं रही ओलम्पियन बनने की राह

दिहाड़ी मजदूर न बने इसके लिए उठा लिया धनुष-बाण
प्रशिक्षक विकास भुजबल ने बदल दी उसकी जिन्दगी
खेलपथ संवाद
नई दिल्ली।
सातारा के प्रवीण जाधव के पास बचपन में दो ही रास्ते थे या तो अपने पिता के साथ दिहाड़ी मजदूरी करते या बेहतर जिंदगी के लिए ट्रैक पर सरपट दौड़ते। लेकिन उसने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि ओलम्पिक में तीरंदाजी जैसे खेल में वह कभी भारत का प्रतिनिधित्व करेगा।
सातारा के सराडे गांव के इस लड़के का सफर संघर्षों से भरा रहा है। वह अपने पिता के साथ मजदूरी पर जाने भी लगे थे लेकिन फिर खेलों ने जाधव परिवार की जिंदगी बदल दी। परिवार चलाने के लिए उनके पिता ने कहा कि स्कूल छोड़कर उन्हें मजदूरी करनी होगी। उस समय वह सातवीं कक्षा में थे। ओलम्पिक में तीरंदाजी जैसे खेल में भारत का प्रतिनिधित्व करने वाले जाधव ने कहा, ‘हमारी हालत बहुत खराब थी। मेरा परिवार पहले ही कह चुका था कि सातवीं कक्षा में ही स्कूल छोड़ना होगा ताकि पिता के साथ मजदूरी कर सकूं।’ आठ घंटे की कड़ी मेहनत के बाद उनके पिता रमेश को बमुश्किल 200 रुपये की दिहाड़ी मिलती थी। कई बार वह खेतों में खाद डालने के काम में पिता की मदद भी करते थे।  
एक दिन जाधव के स्कूल के खेल प्रशिक्षक विकास भुजबल ने उनमें प्रतिभा देखी और एथलेटिक्स में भाग लेने को कहा। जाधव ने कहा,‘विकास सर ने मुझे दौड़ना शुरू करने को कहा। उन्होंने कहा कि इससे जीवन बदलेगा और दिहाड़ी मजदूरी नहीं करनी पड़ेगी। मैंने 400 से 800 मीटर दौड़ना शुरू किया।’ अहमदनगर के क्रीड़ा प्रबोधिनी हॉस्टल में वह तीरंदाज बने। जब एक अभ्यास के दौरान उन्होंने दस मीटर की दूरी से सभी दस तीर निशाने पर लगाए। उसके बाद से उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा और परिवार के हालात भी सुधर गए। वह अमरावती के क्रीड़ा प्रबाोधिनी गए और बाद में पुणे के सैन्य खेल संस्थान में दाखिला मिला।

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