खेल के लिए काफी बलिदान दिया, अब उसे भुनाना चाहता हूंः श्रीजेश

टोक्यो जाने से पहले भावुक हुए भारतीय गोलकीपर
खेलपथ संवाद
नई दिल्ली।
भारतीय हॉकी टीम के अनुभवी गोलकीपर पीआर श्रीजेश टोक्यो रवाना होने से पहले भावुक हो गए। लगातार तीसरे और संभवत: अपने आखिरी ओलम्पिक में भाग ले रहे इस गोलकीपर ने कहा कि उन्होंने खेल के लिए काफी बलिदान दिया है, जिसे वह टोक्यो में हर कीमत पर भुनाना चाहते हैं। 
23 जुलाई से शुरू होने वाले आगामी ओलम्पिक में आठ बार की चैम्पियन भारतीय टीम अपने चार दशक से अधिक समय के खिताबी सूखे को खत्म करना चाहेगी। सीनियर टीम के लिए 2006 में पदार्पण करने के बाद से श्रीजेश का केवल एक ही सपना है, ओलम्पिक पदक विजेता बनना। दुनिया के सर्वश्रेष्ठ गोलकीपरों में शामिल 35 साल के श्रीजेश ने कहा कि कोविड-19 महामारी के बीच इतने लम्बे समय तक अपने परिवार से दूर रहना उनके लिए मानसिक रूप से कठिन था।
उन्होंने कहा, 'जब आप इस तरह का त्याग करते हैं, तो मैं हमेशा उसके बाद खुद से सवाल पूछने की कोशिश करता हूं, जैसे मैं अपने बच्चों, अपने परिवार से दूर क्यों रह रहा हूं? लेकिन मुझे जवाब पता है।' इस पूर्व कप्तान ने कहा, 'हॉकी में हमारा इतिहास बहुत शानदार रहा है और जब मैं अपने करियर में पीछे मुड़कर देखता हूं, तो मुझे पता है कि मेरे पास बहुत सारे एफआईएच पदक हैं, मेरे पास लगभग हर टूर्नामेंट के पदक हैं, लेकिन विश्व कप या ओलम्पिक का एक भी पदक नहीं है।'
उन्होंने कहा, 'यह मेरा आखिरी ओलंपिक खेल हो सकता है। मेरे लिए यह इस बारे में है कि मैं खिलाड़ी के तौर पर इससे क्या हासिल कर सकता हूं, मुझे इस ओलंपिक से क्या मिल सकता है? यह केवल एक पदक हो सकता है। यह ऐसा सपना है, जिसने मुझे सब कुछ त्यागने में मदद की।' उन्होंने कहा, 'यही (ओलम्पिक पदक का सपना) मुझे अतिरिक्त ऊर्जा दे रहा है। यह वही है जो हमें हर सुबह अपने बिस्तर से उठने और कड़ी मेहनत करने में मदद कर रहा है। यह एक सपना है जिसे मैं पिछले 15 वर्षों से जी रहा हूं और अगले 15 वर्षों तक ऐसा करने को तैयार हूं।'
श्रीजेश ने टोक्यो रवाना होने से पहले कहा, 'यह हमारे लिए भारतीय हॉकी के इतिहास का हिस्सा बनने, ओलंपिक पदक विजेता सूची का हिस्सा बनने का अवसर है और यही मुझे अपने खेल पर ध्यान केंद्रित करने में मदद कर रहा है।' बता दें कि ओलंपिक में भारत को आखिरी पदक 1980 मास्को खेलों में मिला था।

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