मीराबाई चानू के पास मल्लेश्वरी की उपलब्धि दोहराने का मौका

टोक्यो जा रही एकमात्र भारतीय वेटलिफ्टर
खेलपथ संवाद
नयी दिल्ली।
विश्व और राष्ट्रमंडल खेलों की स्वर्ण पदक विजेता मीराबाई चानू के पास आगामी टोक्यो खेलों में पदक जीतकर भारोत्तोलन में ओलम्पिक पदक जीतने वाली एकमात्र भारतीय खिलाड़ी कर्णम मल्लेश्वरी की उपलब्धि को दोहराने का सुनहरा मौका होगा। क्लीन एवं जर्क में विश्व रिकॉर्ड धारक मीराबाई 49 किग्रा वर्ग में चुनौती पेश करेंगी जहां वह पदक की प्रबल दावेदारों में शामिल हैं। 
वह इस बार भारोत्तोलन में चुनौती पेश करने वाली एकमात्र भारतीय खिलाड़ी हैं। मल्लेश्वरी ने दो दशक से भी अधिक समय पहले सिडनी खेलों में 19 सितंबर 2000 को महिला 69 किलोग्राम भार वर्ग में स्नैच में 110 और क्लीन एवं जर्क में 130 किलोग्राम वजन उठाकर कांस्य पदक जीता था। वह ओलंपिक पदक जीतने वाली पहली भारतीय महिला खिलाड़ी और अकेली भारोत्तोलक हैं। इन खेलों में पहली बार महिला भारोत्तोलन को शामिल किया गया था। 
भारोत्तोलन में 2017 की विश्व चैंपियन मीराबाई ने अंतरराष्ट्रीय भारोत्तोलन महासंघ की रैंकिंग सूची के आधार पर कोटा हासिल करते हुए टोक्यो खेलों में जगह बनाई। वह इन खेलों की क्वालीफिकेशन रैंकिंग में दूसरे स्थान पर रहीं। मीराबाई वैसे रैंकिंग में चीन की हाउ झीहुई और जियांग हुईहुआ तथा उत्तर कोरिया की री सोंग गुम के बाद चौथे स्थान पर थीं लेकिन उत्तर कोरिया ने ओलंपिक में हिस्सा नहीं लेने का फैसला किया। भारोत्तोलन में एक देश एक खिलाड़ी को उतार सकता है और ऐसे में चीन की झीहुई ने टोक्यो खेलों में जगह बनाई, जबकि हुईहुआ बाहर हो गईं। 
महिला 49 किलोग्राम वर्ग में ओलम्पिक के लिए क्वालीफाई करने वाली खिलाड़ियों में मीराबाई से अधिक वजन सिर्फ झीहुई ही उठा पाई हैं और ऐसे में भारतीय खिलाड़ी पदक की प्रबल दावेदार है। झीहुई का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन 213 किग्रा है, जबकि मीराबाई ने अप्रैल में ताशकंद में एशियाई चैम्पियनशिप में क्लीन एंव जर्क में विश्व रिकॉर्ड 119 किग्रा और स्नैच में 86 किग्रा के साथ कुल 205 किग्रा वजन उठाया था और इस दौरान राष्ट्रीय रिकॉर्ड भी तोड़ा। 
दूसरी बार ओलंपिक में हिस्सा लेने जा रही मीराबाई अमेरिका में ट्रेनिंग कर रही हैं और पांच साल पहले रियो ओलंपिक की निराशा को भुलाना चाहेंगी जहां वह 48 किग्रा वर्ग में क्लीन एवं जर्क के तीनों प्रयासों में वजन उठाने में नाकाम रहने के कारण बाहर हो गई थी। ओलंपिक में भारोत्तोलन के इतिहास पर गौर करें तो 1896 में आधुनिक ओलंपिक की शुरुआत के बाद से यह प्रतियोगिता लगभग हर बार खेलों के महासमर का हिस्सा रही लेकिन भारत अब तक इस प्रतियोगिता में सिर्फ एक कांस्य पदक जीत पाया है। भारोत्तोलन सिर्फ 1900, 1908 और 1912 में ओलंपिक का हिस्सा नहीं रहा।

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