जापान में 1964 के ओलम्पिक जैसा उत्साह नहीं

तब हर हाथ को था काम 
नई दिल्ली। जापान 57 साल पहले ओलम्पिक की मेजबानी की थी और तब वह ऐसा करने वाला एशिया का पहला देश बना था। खेलों के महाकुंभ के आयोजन से उसकी अर्थव्यवस्था में बड़ी मजबूती आई थी। अब हालात जुदा हैं, कोविड-19 की महामारी ने मेजबानी के उत्साह पर असर डाला है।
जापान में अब दिशा और दशा बदल गई है। जब 1964 में उसने आयोजन किया था तब यह देश के लिए गौरव की बात थी जब द्वितीय विश्व युद्ध की हार के बीस साल बाद ये खेल उल्लास का सबब बन गए थे। उस समय जापानी परिवार बड़े थे। उस समय वार्षिक औसत वेतन अब के मुकाबले दस गुना कम था। खाने-पीने की चीजें भी कम महंगी थी। 
1964 में जापान में बेरोजगारी लगभग न के बराबर थी। कामकाजी लोगों में ज्यादातर पुरुष थे, शादी के बाद महिलाएं घरेलू कामकाज में व्यस्त हो जाती थीं। तीस प्रतिशत से ज्यादा लोग निर्माण से जुड़े थे। इलेक्ट्रॉनिक और कार निर्माण में जापान का सिक्का जमा रहे थे।
हालांकि एक चौथाई लोग कृषि, मत्स्य पालन आदि से जुड़े थे। अब ज्यादातर लोग नौकरीपेशा हैं और 25 प्रतिशत ही निर्माण में लगे हैं। केवल 4 प्रतिशत ही खेती और उससे जुड़ा कामकाज कर रहे हैं।
पहली बार प्रसारित हो रहे खेलों को देखने का इतना चाव था कि बहुत लोगों ने ब्लैक एंड व्हाइट टीवी सेट खरीद लिए थे जबकि उनकी कीमत एक महीने की तनख्वाह के बराबर थी। ओलंपिक की उमंग में लोगों ने कार, कूलर और रंगीन टीवी के लिए अन्य इच्छाओं की तिलांजलि दे दी थी।
तब पुरुषों की औसत आयु 67 और महिलाओं की 72 थी और चार में एक व्यक्ति 15 या उससे कम उम्र का था। केवल मुट्ठी भर ही 65 से अधिक थे। अब पुरुषों की औसत आयु 81 जबकि महिलाओं की 87 है। राष्ट्र अपनी आबादी का लगभग एक तिहाई 65 से अधिक होने के बोझ से दब गया है।  
उस समय जापान की अर्थव्यवस्था सकल घरेलू उत्पाद के लिहाज से अमेरिका, फ्रांस और ब्रिटेन के बाद चौथे नंबर पर थी। ओलंपिक के चार साल बाद जापान दूसरे नंबर पर आ गया था और सत्तर के दशक के कुछ शुरुआती वर्षों को छोड़ दें तो इस पोजिशन को उसने लंबे तक कायम रखा था। उसके बाद चीन का दबदबा कायम हो गया। तब जापान की मुद्रा येन की कीमत 360 थी जो अब 109.5 रह गई है।
1964 के ओलंपिक वर्ष में जापान में 2,70,000 विदेशी आए थे। यहां तक कि 2019 में  विदेशी पर्यटकों की संख्या 31.9 मिलियन थी जिससे अर्थव्यवस्था को मजबूती मिली थी लेकिन 2020 में कोविड-19 के दौर में पर्यटकों की संख्या 22 वर्ष में सबसे कम हो गई। इस बार तो ओलंपिक में विदेशी पर्यटकों पर रोक ही लगा दी गई है।
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पिछले साल आयोजकों ने कहा था कि खेलों पर कुल 15.4 अरब डॉलर (लगभग एक लाख 12 हजार करोड़ रुपये) खर्च हो जाएंगे, जिसमें 2020 में खेलों को स्थगित करने की 2.8 अरब डॉलर की कीमत शामिल है। अब कहा जा रहा है कि स्थगित करने का खर्च बढ़ कर तीन अरब डॉलर (लगभग 21 हजार करोड़ रुपये) हो चुका है। दिसंबर में कहा गया था कि टिकटों की बिक्री से 80 करोड़ डॉलर (5844 करोड़ रुपये) की कमाई होगी। लेकिन अब स्थिति बिल्कुल बदल चुकी है। विदेशी दर्शक तो आने ही नहीं हैं और स्थानीय दर्शकों को अनुमति मिली तो भी उनके सीमित ही रहने का अनुमान है।
60 से भी ज्यादा जापानी कंपनियों ने खेलों के प्रायोजन के लिए रिकॉर्ड तीन अरब डॉलर दिए थे। खेल स्थगित हो जाने के बाद अनुबंध को आगे बढ़ाने के लिए उन्होंने अतिरिक्त 20 करोड़ डॉलर दिए। ऐसा नहीं लग रहा कि खेल रद्द होंगे लेकिन अगर ऐसा होता है तो अंतरराष्ट्रीय बीमा कंपनियों को भारी भुगतान करना पड़ेगा। 
विदेशी पर्यटकों के नहीं आने की वजह से पर्यटन उद्योग में जिस उछाल की उम्मीद थी, वो मिट्टी में मिल चुकी है। नोमुरा शोध संस्थान के मुताबिक अगर खेल अभी भी रद्द हो जाते हैं तो करीब 16 अरब डॉलर का नुकसान होगा लेकिन नोमुरा के मुताबिक यह घाटा उस नुकसान के सामने कुछ भी नहीं है जो देश को तब उठाना पड़ेगा जब अगर खेल सुपर-स्प्रेडर बन गए और फिर से आपात कदम उठाने पड़े।

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