यूपी के अंशकालिक खेल प्रशिक्षकों के चेहरे पर लौटी मुस्कान

निदेशालय खेल उत्तर प्रदेश आठ अप्रैल तक नहीं कर सकेगा कोई नियुक्ति

खेलपथ प्रतिनिधि

लखनऊ। कहते हैं जिसका कोई नहीं होता उसकी ऊपर वाला मदद जरूर करता है। पिछले एक साल से अपने हक की लड़ाई लड़ रहे उत्तर प्रदेश के लगभग साढ़े चार सौ अंशकालिक खेल प्रशिक्षकों के चेहरे पर आज हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने मुस्कान लौटा दी है। लखनऊ पीठ ने आनन-फानन में ठेके पर प्रशिक्षकों की नियुक्ति करने की खेल निदेशालय की कुचेष्टाओं पर आठ अप्रैल तक रोक लगा दी है।

उत्तर प्रदेश के लगभग साढ़े चार सौ अंशकालिक खेल प्रशिक्षकों के लिए आज मंगलवार का दिन काफी मंगलकारी सिद्ध हुआ जब हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने निदेशालय खेल उत्तर प्रदेश को आठ अप्रैल तक किसी भी प्रकार की भर्ती नहीं करने का फैसला सुनाया। लखनऊ पीठ का फैसला सुनते ही अंशकालिक प्रशिक्षकों के चेहरे पर न केवल मुस्कान लौट आई बल्कि उन्हें उम्मीद बंध गई कि देर सबेर उन्हें न्याय जरूर मिलेगा।

गौरतलब है कि खेल निदेशालय उत्तर प्रदेश ने पिछले साल मार्च महीने में कोरोना संक्रमण की आड़ में प्रदेश के लगभग साढ़े चार सौ अंशकालिक प्रशिक्षकों को सेवा से पृथक कर दिया था। तभी से अंशकालिक प्रशिक्षक दर-दर की ठोकरें खा रहे हैं। खेल निदेशालय के इस हिटलरशाही फरमान से खेल प्रशिक्षकों के परिवार आर्थिक संकट से जूझ रहे हैं।

इन्हें इंसाफ देने की बजाय खेल निदेशालय ने मुंबई की कम्पनी टी एण्ड एम सर्विस कंसल्टिंग प्राइवेट लिमिटेड एवं यूपी की मेसर्स अवनि परिधि एनर्जी एण्ड कम्युनिकेशन प्राइवेट लिमिटेड को प्रशिक्षकों की नियुक्ति की जिम्मेदारी सौंप दी। मरता क्या न करता आखिर इन प्रशिक्षकों ने इंसाफ के लिए अदालत की शरण ली और अदालत ने आज खेल निदेशालय को आठ अप्रैल तक किसी भी चयन प्रक्रिया को अंतिम रूप देने पर फिलहाल रोक लगा दी है। बेहतर होगा खेल निदेशालय अपनी भूल सुधारते हुए खेल प्रशिक्षकों की पुनः बहाली कर उत्तर प्रदेश में खेलों का सत्यानाश होने से बचाए।  

 

 

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